मेरे ब्लॉग पर मेरी ग़ज़ल कविताएं नज़्म पंजीकरण आधीन कॉपी राइट मेरे नाम सुरक्षित हैं बिना अनुमति उपयोग करना अनुचित व अपराध होगा। मैं डॉ लोक सेतिया लिखना मेरे लिए ईबादत की तरह है। ग़ज़ल मेरी चाहत है कविता नज़्म मेरे एहसास हैं। कहानियां ज़िंदगी का फ़लसफ़ा हैं। व्यंग्य रचनाएं सामाजिक सरोकार की ज़रूरत है। मेरे आलेख मेरे विचार मेरी पहचान हैं। साहित्य की सभी विधाएं मुझे पूर्ण करती हैं किसी भी एक विधा से मेरा परिचय पूरा नहीं हो सकता है। व्यंग्य और ग़ज़ल दोनों मेरा हिस्सा हैं।
मार्च 25, 2023
होने वाली है सहर शायद ( बहस जारी है ) डॉ लोक सेतिया
मार्च 24, 2023
मुक़द्दर का सिकंदर लोग ( तीखी-मीठी ) डॉ लोक सेतिया { पिछली पोस्ट से आगे }
मुक़द्दर का सिकंदर लोग ( तीखी-मीठी ) डॉ लोक सेतिया
{ पिछली पोस्ट से आगे }
सब से पहले आपकी बारी ( ग़ज़ल )
सब से पहले आप की बारीहम न लिखेंगे राग दरबारी ।
और ही कुछ है आपका रुतबा
अपनी तो है बेकसों से यारी ।
लोगों के इल्ज़ाम हैं झूठे
आंकड़े कहते हैं सरकारी ।
फूल सजे हैं गुलदस्तों में
किन्तु उदास चमन की क्यारी ।
होते सच , काश आपके दावे
देखतीं सच खुद नज़रें हमारी ।
उनको मुबारिक ख्वाबे जन्नत
भाड़ में जाये जनता सारी ।
सब को है लाज़िम हक़ जीने का
सुख सुविधा के सब अधिकारी ।
माना आज न सुनता कोई
गूंजेगी कल आवाज़ हमारी ।
मार्च 23, 2023
हम सब ईमानदार शरीफ़ लोग हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
हम सब ईमानदार शरीफ़ लोग हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

मार्च 22, 2023
खुद को देखना समझना ( आईने के सामने ) डॉ लोक सेतिया
खुद को देखना समझना ( आईने के सामने ) डॉ लोक सेतिया
राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहींझूठे ख्वाबों पे विश्वास करते नहीं ।
बात करता है किस लोक की ये जहां
लोक -परलोक से हम तो डरते नहीं ।
हमने देखी न जन्नत न दोज़ख कभी
दम कभी झूठी बातों का भरते नहीं ।
आईने में तो होता है सच सामने
सामना इसका सब लोग करते नहीं ।
खेते रहते हैं कश्ती को वो उम्र भर
नाम के नाखुदा पार उतरते नहीं ।
मार्च 21, 2023
जो हक़ीक़त नहीं दिखता दिखाई देता जो होता नहीं ( दिलचस्प रोग ) डॉ लोक सेतिया
जो हक़ीक़त नहीं दिखता दिखाई देता जो होता नहीं ( दिलचस्प रोग )
डॉ लोक सेतिया
सरकार है बेकार है लाचार है ( ग़ज़ल )
सरकार है , बेकार है , लाचार हैसुनती नहीं जनता की हाहाकार है ।
फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को
कहने को पर उनका खुला दरबार है ।
रहजन बना बैठा है रहबर आजकल
सब की दवा करता जो खुद बीमार है ।
जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को
अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है ।
इंसानियत की बात करना छोड़ दो
महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है ।
हैवानियत को ख़त्म करना आज है
इस बात से क्या आपको इनकार है ।
ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां
देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है ।
है पास फिर भी दूर रहता है सदा
मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है ।
अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे
"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है ।
मार्च 20, 2023
सफ़र साहित्य की डगर पर मुसाफ़िर का ( मेरी दास्तां ) डॉ लोक सेतिया
सफ़र साहित्य की डगर पर मुसाफ़िर का ( मेरी दास्तां ) डॉ लोक सेतिया
1 दोस्त की तलाश
रोये हैं वो हाल हमारा सुनकर
जिनसे दुःख दर्द छिपाए हमने ।
ऐसा इक बार नहीं , हुआ सौ बार
खुद ही भेजे ख़त पाए हमने ।
उसने ही रोज़ लगाई ठोकर
हम फिर भी रहे जहां में "तनहा"
मेले कई बार लगाए हमने ।
या कोई बज़्म ही सजाएं हम ।
छेड़ने को नई सी धुन कोई
साज़ पर उंगलियां चलाएं हम ।
आमदो - रफ्त होगी लोगों की
आओ इक रास्ता बनाएं हम ।
ये जो पत्थर बरस गये इतने
क्यों न मिल कर इन्हें हटाएं हम ।
है अगर मोतियों की हमको तलाश
गहरे सागर में डूब जाएं हम ।
दर- ब- दर करके दिल से शैतां को
इस मकां में खुदा बसाएं हम ।
हुस्न में कम नहीं हैं कांटे भी
कैक्टस सहन में सजाएं हम ।
हम जहां से चले वहीं पहुंचे
अपनी मंजिल यहीं बनाएं हम ।
3 दीप जलता ही रहा ( गीत )
आंधियां चलती रहीं , दीप जलता ही रहा ।
ज़िंदगी के फासले कम कभी हो न सके
दर्द तो मिलते रहे हम मगर रो न सके
ग़म से पैमाना भरा जब न खाली हो सका
वो समंदर बन गया बस उछलता ही रहा ।
आंधियां चलती ........................
पूछते सब से रहे आपका हम तो पता
है हमारा ख्वाब कोई तो देता ये बता
छोड़ कर हम कारवां आ गए खुद ही यहां
इक सफ़र था ज़िंदगी जो कि चलता ही रहा ।
आंधियां चलती ...........................
जब किसी ने साथ छोड़ा ,नहीं कुछ भी कहा
शुक्रिया आपका आपने जो भी दिया
जब भी वो देता रहा जाम भर भर के हमें
जाम हाथों से मेरे बस फिसलता ही रहा ।
आंधियां चलती ............................
पास हमको लोग सारे बुलाते तो रहे
और हम रस्मे वफा कुछ निभाते तो रहे
दिल हमारा तोड़ डाला किसी ने जब भी
आंसुओं का एक सागर निकलता ही रहा ।
आंधियां चलती रहीं ,दीप जलता ही रहा ।
4 दोहे ( देश की वास्तविकता पर )
शासक बन कर दे रहा सेवक देखो सीख ।
मचा हुआ है हर तरफ लोकतंत्र का शोर
कोतवाल करबद्ध है डांट रहा अब चोर ।
तड़प रहे हैं देश के जिस से सारे लोग
लगा प्रशासन को यहाँ भ्रष्टाचारी रोग ।
दुहराते इतिहास की वही पुरानी भूल
खाना चाहें आम और बोते रहे बबूल ।
झूठ यहाँ अनमोल है सच का ना व्योपार
सोना बन बिकता यहाँ पीतल बीच बाज़ार ।
नेता आज़माते अब गठबंधन का योग
देखो मंत्री बन गए कैसे कैसे लोग ।
चमत्कार का आजकल अदभुत है आधार
देखी हांडी काठ की चढ़ती बारम्बार ।
आगे कितना बढ़ गया अब देखो इन्सान
दो पैसे में बेचता यह अपना ईमान ।
5 बेचैनी ( नज़्म )
पढ़ कर रोज़ खबर कोई मन फिर हो जाता है उदास ।
कब अन्याय का होगा अंत
न्याय की होगी पूरी आस ।
कब ये थमेंगी गर्म हवाएं
आएगा जाने कब मधुमास ।
कब होंगे सब लोग समान
आम हैं कुछ तो कुछ हैं खास ।
चुनकर ऊपर भेजा जिन्हें
फिर वो न आए हमारे पास ।
सरकारों को बदल देखा
हमको न कोई आई रास ।
जिसपर भी विश्वास किया
उसने ही तोड़ा है विश्वास ।
बन गए चोरों और ठगों के
सत्ता के गलियारे दास ।
कैसी आई ये आज़ादी
जनता काट रही बनवास ।
हम को ले डूबे ज़माने वाले , नाख़ुदा खुद को बताने वाले ।
मार्च 18, 2023
गूगल सर्च महान , खुद से अनजान ( हक़ीक़त का अफ़साना ) डॉ लोक सेतिया
गूगल सर्च महान , खुद से अनजान ( हक़ीक़त का अफ़साना )
डॉ लोक सेतिया
कोई शायर कहता है " मुहब्बत ही न जो समझे वो ज़ालिम प्यार क्या जाने , निकलती दिल के तारों से जो है झनकार क्या जाने । करो फरियाद सर टकराओ अपनी जान दे डालो , तड़पते दिल की हालत हुस्न की दीवार क्या जाने । उसे तो क़त्ल करना और तड़पाना ही आता है , गला किस का कटा क्योंकर कटा तलवार क्या जाने " ।
मार्च 16, 2023
एंटी-रिश्वतखोरी वायरस औषधि ( तीर निशाने पर ) डॉ लोक सेतिया
एंटी-रिश्वतखोरी वायरस औषधि ( तीर निशाने पर ) डॉ लोक सेतिया
मार्च 11, 2023
ख़ूबसूरत लगते हैं गुनाहगार लोग ( ये मुहब्बत है ) डॉ लोक सेतिया
ख़ूबसूरत लगते हैं गुनाहगार लोग ( ये मुहब्बत है ) डॉ लोक सेतिया
मार्च 10, 2023
सत्ता का राक्षस ख़्वाब में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
सत्ता का राक्षस ख़्वाब में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
मार्च 09, 2023
सुबह का इंतिज़ार कब तक ( दर्द की दास्तां ) डॉ लोक सेतिया
सुबह का इंतिज़ार कब तक ( दर्द की दास्तां ) डॉ लोक सेतिया
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
कोशिश
है जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण मुख्य बातों पर संक्षेप में साधारण शब्दावली
में विचार विमर्श करना ताकि साधारण व्यक्ति समझ कर अपना सके और फ़ायदा उठा
सके । सबसे पहले अच्छा जीवन बिताने के लिए जो बातें अतिआवश्यक हैं उनकी
चर्चा , शारीरिक और मानसिक के साथ सामाजिक स्वास्थ्य के बिना कुछ भी संभव
नहीं है । खुश रहना मौज मस्ती करना शानदार रहन-सहन साधन सुविधाएं वास्तव
में अच्छे जीने के लिए उस सीमा तक ज़रूरी हैं जहां तक पहले वर्णित शारीरिक
मानसिक सामाजिक स्वस्थ्य हासिल करने में कोई बाधा उतपन्न नहीं करते ये सब
अन्यथा भौतिक चीज़ों की दौड़ में वास्तविक जीवन चौपट हो जाता है । आजकल यही
होने लगा है और समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है । देश की समाज की व्यवस्था जर्जर हो चुकी है सब कुछ जैसा होना चाहिए उस के विपरीत हो गया है । बदलाव का शोर है बदलाव हो नहीं रहा क्योंकि खुद को कोई भी बदलना नहीं ज़रूरी समझता है।
सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो , गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।
सबको है उनपे ही एतबार भी , रात को दिन जो लोग बता रहे ।
लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर , दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।
घर बनाने के वादे कर रहे , झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।
हक़ दिलाने की बात को भूलकर , लाठियां हम पर आज चला रहे ।
बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं , हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
