मार्च 23, 2023

हम सब ईमानदार शरीफ़ लोग हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   हम सब ईमानदार शरीफ़ लोग हैं  ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

मुझे कोई तीस साल पुरानी खबर याद आई आल इंडिया रेडियो पर सीधा प्रसारण हो रहा था जिस में इक बच्चे ने कविता नुमा बोल दिया था गली गली में शोर है .............. चोर है । तब अख़बार में बहुत कुछ हुआ राजनेताओं ने भाषण में जाने क्या क्या कहा सब हुआ यहां तक की पुरानी कहानी पढ़ने को मिली जो हमने नहीं सुनी थी तब तक , " राजा नंगा है " । लेकिन अब समझ आया है कि उस पर मुकदमा दायर किया जाना चाहिए था और चोरी साबित नहीं होने पर सज़ा मिलनी चाहिए थी । बच्चा होने से कोई बच नहीं सकता है और ढूंढना होगा अब तक वो लड़की या लड़का चालीस से ऊपर का हो गया होगा उस पर अभियोग चला कर न्याय की मिसाल कायम की जा सकती है । ऐसा किसी व्यक्ति की मान सम्मान की खातिर नहीं बल्कि हर  की इज़्ज़त समान होती है इस खातिर किया जाना ज़रूरी है । क्या आपको ये हंसी मज़ाक की बात लगती है जी नहीं विषय बेहद गंभीर है । 
 
हमारे समाज में देश में जब जिस को जो लगता है बिना डरे झिझके बोल देता है , दुकानदार चोर है , पुलिस से लेकर किसी भी सरकारी विभाग यहां तक कि आयकर विभाग से डॉक्टर अस्पताल सभी को लोग बिना कोई प्रमाण चोर हैं घोषित कर देते हैं । आज तक किसी अधिकारी को राजनेता को या व्यौपारी उद्योगपति को ईमानदार कहना किसी ने ज़रूरी नहीं समझा । अन्यथा तमाम लोगों को अपनी अच्छाई सच्चाई ईमानदारी के लिए अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा विज्ञापन पर खर्च नहीं करना पड़ता । कमाल ये है कि जो जितने अधिक विज्ञापन टीवी अखबार पर देता है देखने वाले उसको उतने ही ज़्यादा शक की नज़र से देखते हैं । कहते हैं मुजरिम गुनहगार अपराधी को बढ़ावा देना उसकी सहायता करना भी पाप और अपराध करना ही होता है । अर्थात जो टीवी अखबार जानते समझते हुए झूठे विज्ञापन दिखलाते छापते हैं वो भी संगी साथी हैं अनुचित कार्य करने वालों के मौसेरे भाई हैं । 
 
हम सब सच्चे देशभक्त हैं और पूरी तरह से ईमानदार हैं न कोई किसी पर कोई आरोप लगा सकता है न देश को बदनाम कर सकता है । शायद समय आ गया है कि सरकार आधारकार्ड की तरह हर नागरिक को ईमानदार होने का भी सर्टिफ़िकेट जारी करे ताकि अपने पर आरोप लगाने वाले पर हर कोई रिपोर्ट दर्ज करवा सके । सब भले हैं कोई किसी को बुरा कहता है तो उसको साबित करना होगा अन्यथा दंड मिलने का भय होगा तो चलते फिरते कोई किसी पर आरोप नहीं जड़ सकेगा । आप सोच रहे होंगे ऐसा करने से क्या लूट अपराध चोरी हेराफेरी भ्र्ष्टाचार नहीं रहेगा तो जवाब साफ है बुरा होना बुरा नहीं होता है हर कोई बुराई की तरफ जाना पसंद करता है लेकिन बुरा कहलाना कोई नहीं चाहता । सबसे फायदे की बात विश्व में ईमानदारी के आंकड़ों में हमारा देश मालूम नहीं अभी किस पायदान पर है मगर सबको ईमानदार घोषित करते ही हम सबसे ऊंचाई पर पहले पायदान पर दिखाई दे सकते हैं । होना आवश्यक नहीं समझा जाना आवश्यक है । देश में कितने बड़े बड़े घोटाले हुए कभी कोई साबित नहीं हुआ ये दुनिया काजल की कोठड़ी है दाग़ लग जाता है और सरकारी जांच एजंसी बेदाग़ साबित करती रहती है लोग तब भी शंका करते रहते हैं । गोरे काले का भेदभाव मिटाना है तो सबको एक रंग में रंगना होगा , किसी धोबी ने कहा था कपड़े पर गहरा दाग़ लगा हो तो उसे काले रंग में रंग देना चाहिए । अब आजकल काला रंग फ़ैशन में बहुत चलन में है तो आखों में काजल सुरमे की तरह उस कालिख़ से सुंदरता बढ़ाने जैसा कुछ किया जा सकता है । जब कोई अपराधी नहीं तो अपराध भी नहीं होते हैं आंकड़े अपने आप बनते जाएंगे।
 
पाँच लिंकों का आनन्द: 1717....हम-क़दम का एक सौ तेरहवाँ अंक.. काजल

मार्च 22, 2023

खुद को देखना समझना ( आईने के सामने ) डॉ लोक सेतिया

खुद को देखना समझना  ( आईने के सामने ) डॉ लोक सेतिया 

आज खुद को दुनिया में अकेला खड़ा पाया तो सोचा क्या हुआ क्यों सब लोग मिले बिछुड़ गए बस कुछ खट्टी मीठी यादें बाकी हैं । भीड़ से हमेशा घबराता रहा हूं दोस्ती हर किसी से निभाता रहा हूं , चोट हर बार खाता रहा हूं फिर से तकदीर को आज़माता रहा हूं । महफ़िल कितनी सजाता रहा हूं रौशनी को घर अपना जलाता रहा हूं । दुश्मन को भी अपना बनाता रहा हूं रूठे को मनाता गले लगाता रहा हूं , बस इक भूल दोहराता रहा हूं जहां नहीं जाना था अजनबी लोगों के पास जाकर ख़ाली लौट आता रहा हूं । मतलब की यारी करने वाले लोग मिलते रहे हैं उनकी चाहत पर खरा नहीं उतरा तभी किसी को नहीं भाता रहा हूं । कभी जो कहते थे आपके हैं हमको अपना बना लो दिल से दिल मिला लो वक़्त बदलते मुझसे कतराने लगे हैं हाथ पकड़ने वाले हाथ छुड़ाने लगे हैं । समझने में इक बात कितने ज़माने लगे हैं हक़ीक़त से लोग बचने लगे हैं सच से नज़रें चुराने लगे हैं । हर किसी के हमीं पर निशाने लगे हैं हम तीर पर तीर खाने लगे हैं ज़ख़्म पर मरहम लगाने वाले ज़ख्मों को और बढ़ाने लगे हैं नमक छिड़कने को बहाने बनाने लगे हैं ।  

राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल )

 डॉ लोक सेतिया "तनहा"

राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं
झूठे ख्वाबों पे विश्वास करते नहीं ।

बात करता है किस लोक की ये जहां
लोक -परलोक से हम तो डरते नहीं ।

हमने देखी न जन्नत न दोज़ख कभी
दम कभी झूठी बातों का भरते नहीं ।

आईने में तो होता है सच सामने
सामना इसका सब लोग करते नहीं ।

खेते रहते हैं कश्ती को वो उम्र भर
नाम के नाखुदा पार उतरते नहीं । 
 
कभी कभी ऐसा करते रहना ज़रूरी है खुद अपने आप को परखना कसौटी पर कसना और समझना । सोचा इक बार फिर से दर्पण का सामना किया जाए और इक भजन है तोरा मन दर्पण कहलाए । भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए , जग से चाहे भाग ले कोई मन से भाग न पाए । मन का दर्पण आत्मा है ज़मीर कहलाता है वहां झूठ बनावट नहीं चलती है खुद अपने आप को धोखा देने की कोशिश अपनी ही नज़र में नीचे गिरना होता है । मैं दुनिया को नहीं जानता जो भी जानता हूं समझता हूं काफी नहीं है लेकिन खुद अपने आप को मैं जानता हूं समझता भी और परखता भी रहता हूं कि जो सोचता समझता कहता हूं वही करता भी हूं या फिर कथनी करनी में अंतर है । मैंने जीवन भर जो भी किया है जैसा भी कर पाया हूं बढ़िया या लाजवाब नहीं मगर सच्चाई से पूरी ईमानदारी से किया है । स्वार्थी ख़ुदगर्ज़ बनकर कभी झूठ बोलना शहद की तरह मिठास भरे बोल बोलकर अपना उल्लू सीधा करना जैसा किया नहीं है । समस्याओं का हल निकालने को आसान रास्ते छोड़ सच का दामन पकड़े रखा है और मुश्किलों का डटकर सामना किया है । 
 
डॉक्टर का किरदार निभाते समय जितना संभव हुआ सभी का उपचार उचित ढंग से किया है और पैसे बनाने को कभी अधिक महत्व नहीं दिया है । समाज में दोस्ती या अन्य संबंधों में बनावट और चतुरता से कभी ऐसा आचरण नहीं किया कि दिल में बैर रखना और सामने हितैषी बनकर धोखा देते रहना । मुझ से बहुत लोग ऐसा करते रहे हैं और मैं समझता भी रहा हूं लेकिन बुराई का बदला बुरा बनकर कभी नहीं किया है । झूठ नहीं कहूंगा कि मैंने सबको आसानी से माफ़ किया है मन में एहसास रहा है और निराशा भी मगर कभी व्यवहार में कटुता नहीं लाना चाहा है । छोड़ दिया है अनुचित व्यवहार करने वालों को ये सोच कर कि जिनकी जैसी सोच विचारधारा है उनको बदला नहीं जा सकता पर उन की तरह बनना भी नहीं  छल कपट धोखा करने से खुद अपनी अंतरात्मा पर बोझ लेकर ज़िंदा रहना मुझे मंज़ूर नहीं है । 
 
लिखना मेरा शौक नहीं ज़रूरत है जो जुनून बन गया है लेकिन मैंने साहित्य के बाज़ार में बेचा नहीं कलम को । नाम शोहरत ईनाम पुरूस्कार आदि की दौड़ में शामिल नहीं हुआ कभी । किसी विधा का बड़ा जानकार नहीं बस जब कुछ लिखना होता है खुद ही जिस विषय की चर्चा होती है कोई आकार बनता गया है । शर्त एक ही है सच लिखना निडरता पूर्वक लिखना और खुद अपनी मौलिकता को बनाए रखना । इधर उधर से कुछ लिया और बदलाव कर अपनी रचना घोषित किया जैसा गुनाह नहीं कर सकता हूं जैसा बहुत लोग करते हैं । मैं भसोसा करता हूं की मैंने जो लिखा समाज की वास्तविकता को दिखलाने में सक्षम है कुछ घटाया बढ़ाया नहीं है । इस डर से कि कोई खुश या नाराज़ होगा अपनी कलम को रुकने नहीं दिया कभी भी ।   


मार्च 21, 2023

जो हक़ीक़त नहीं दिखता दिखाई देता जो होता नहीं ( दिलचस्प रोग ) डॉ लोक सेतिया

 जो हक़ीक़त नहीं दिखता दिखाई देता जो होता नहीं ( दिलचस्प रोग ) 

                                     डॉ लोक सेतिया 

ये कोई पहेली नहीं है आपको इस की जानकारी होनी बेहद ज़रूरी है , मुझे अभी अभी पता चला तो आपको तुरंत बताना मुनासिब समझा । जल्दी ही पूरी जानकारी विस्तार से दी जाएगी मगर शोध करने के उपरान्त कि इस में कितनी सच्चाई है और कितनी सोशल मीडिया की झूठी अफ़वाह । इक नामुराद रोग है जिस ने देश के सामान्य नागरिक को छोड़ दिया है और बड़े ख़ास वीवीआईपी वर्ग समझे जाने वाले अधिकांश लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है । देखने में भले चंगे तंदरुस्त लगते हैं मगर भीतर से खोखले हो चुके हैं उनकी आन - बान- शान सभी झूठी है वास्तव में उन की दशा बेजान चलते फिरते शरीर की है जिन में दिल की धड़कन से आत्मा की आवाज़ तक जाने कब की मर चुकी है । शासक बन सरकारी अधिकारी बन कर्मचारी बन कर बिना सोचे विचारे व्यवस्था का सत्यानाश करते हैं और दावे करते हैं देश सेवक जनता के कल्याण विकास और समाज कल्याण करने के । लोकतांत्रिक व्यस्था का तमाशा बना दिया है और गांव शहर से महानगर तक असंख्य व्यक्ति राजा बन खुद को जनता का मालिक समझते हैं और चाहते हैं हर कोई उनको सलाम करे उनकी तिजौरी भरने में सहयोगी बने और अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई लुटवाने पर सहमत हो । बदले में अराजकता मनमानी लूट और सत्ता के गुणगान का तमाशा देख तालियां बजा स्वागत करे । देश की बागडोर ऐसे ही असाध्य नामुराद रोग से ग्रस लोगों के हाथ है जिनको वास्तविकता दिखाई नहीं देती मगर किसी सपने की तरह जो वास्तव में नहीं नज़र आता है लेकिन कोई उनको समझा नहीं सकता जैसे सावन के अंधे को चारों तरफ हरियाली दिखाई देती है । 
 
  इक समिति का गठन किया गया इस रोग की वास्तविकता को समझने के लिए । मनोचिकित्सक राजनैतिक विश्लेषक  संविधान और न्याय के जानकार शामिल किए गए । शोध करने पर परिणाम चौंकाने वाले सामने आये हैं सत्ता के पदों पर निर्वाचित मनोनीत नियुक्त सभी किसी दीवार पर टांगी हुई तस्वीर की तरह हैं । सब का चेहरा रंग रूप पहनावा लगता अलग अलग है लेकिन आचरण भाषा व्यवहार सभी का मानव की तरह नहीं किसी मशीन या रॉबेट जैसा है । कठपुतली की तरह नाच रहे हैं जाने कौन नचाता है सबको अपनी उंगलियों से बंधे धागे से इशारों पर , फ़िल्मी डायलॉग याद आ गया है सिम्मी ग्रेवाल कहती है कठपुतली करे भी तो क्या धागे किसी और के हाथ में हैं नाचना तो पड़ेगा ही । धन दौलत नाम शोहरत और पद प्रतिष्ठा हासिल करने की खातिर जब आत्मा ईमान और खुद अपनी पहचान तक को गिरवी रखने लगे हैं और बड़ा होना नहीं कहलाना उनका मकसद बन जाये तब वही होता है जब किसी ज़ालिम से रहम की इंसाफ की झूठी उम्मीद का कोई ख़्वाब देखने लगे कोई । देश की जनता का दर्द उसकी समस्याएं संवेदनशील इंसान समझ सकता है वो नहीं जो इंसान होकर भी मशीन बन कर रह गए हैं । आदमी जब तलवार बन गया हो तब उस को क्या खबर जिस किसी के हाथ ने उसे पकड़ा है वो सुरक्षा करता है या बेगुनाह लोगों पर वार कर अपनी सत्ता की हवस महत्वांकाक्षा में अपने विरोधी को सज़ा देना चाहता है , ख़ुदपरस्ती में बाकी सबका अस्तित्व नमो निशान मिटा कर समझता है अमर होकर शासक बना रहता है , मगर कब तक । इक पुरानी ग़ज़ल फिर से पढ़ता हूं । 17 सितंबर 2012 को ब्लॉग पर लिखी हुई है ये बताना आवश्यक है क्योंकि हालात बदले नहीं बदलने होते हैं कोशिश जारी है ।

सरकार है बेकार है लाचार है ( ग़ज़ल ) 

सरकार है  , बेकार है , लाचार है
सुनती नहीं जनता की हाहाकार है ।

फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को
कहने को पर उनका खुला दरबार है ।

रहजन बना बैठा है रहबर आजकल
सब की दवा करता जो खुद बीमार है ।

जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को
अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है ।

इंसानियत की बात करना छोड़ दो
महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है ।

हैवानियत को ख़त्म करना आज है
इस बात से क्या आपको इनकार है ।

ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां
देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है ।

है पास फिर भी दूर रहता है सदा
मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है ।

अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे
"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है ।
 


 

मार्च 20, 2023

सफ़र साहित्य की डगर पर मुसाफ़िर का ( मेरी दास्तां ) डॉ लोक सेतिया

 सफ़र साहित्य की डगर पर मुसाफ़िर का ( मेरी दास्तां ) डॉ लोक सेतिया 

शुरुआत कुछ रचनाओं से करता हूं जो मुझसे परिचित ही नहीं करवाती बल्कि मेरा सही परिचय हैं अपनी पहचान को और कोई निशानी मेरे पास नहीं है । 

 1        दोस्त की तलाश  

 

ये सबने कहा अपना नहीं कोई
फिर भी कुछ दोस्त बनाए हमने ।
 
फूल उनको समझ कर चले कांटों पर
ज़ख्म ऐसे भी कभी खाए हमने ।
 
यूं तो नग्में थे मुहब्बत के भी
ग़म के नग्मात ही गाए हमने ।

रोये हैं वो हाल हमारा सुनकर
जिनसे दुःख दर्द छिपाए  हमने ।

ऐसा इक बार नहीं , हुआ सौ बार
खुद ही भेजे ख़त पाए  हमने ।

उसने ही रोज़ लगाई ठोकर 
जिस जिस के नाज़ उठाए हमने । 

हम फिर भी रहे जहां में "तनहा"
मेले कई बार लगाए  हमने । 
 
 
2       ग़ज़ल 
 
 
फिर कोई कारवां बनाएं हम
या कोई बज़्म ही सजाएं हम ।

छेड़ने को नई सी धुन कोई
साज़ पर उंगलियां चलाएं हम ।

आमदो - रफ्त होगी लोगों की
आओ इक रास्ता बनाएं हम ।

ये जो पत्थर बरस गये  इतने
क्यों न मिल कर इन्हें हटाएं हम ।

है अगर मोतियों की हमको तलाश
गहरे सागर में डूब जाएं हम ।

दर- ब- दर करके दिल से शैतां को
इस मकां में खुदा बसाएं हम ।

हुस्न में कम नहीं हैं कांटे भी
कैक्टस सहन में सजाएं हम ।

हम जहां से चले वहीं पहुंचे
अपनी मंजिल यहीं बनाएं हम ।
 

  3        दीप जलता ही रहा ( गीत ) 

 

आंधियां चलती रहीं , दीप जलता ही रहा ।

ज़िंदगी के फासले कम कभी हो न सके 
दर्द तो मिलते रहे हम मगर रो न सके
ग़म से पैमाना भरा जब न खाली हो सका
वो समंदर बन गया बस उछलता ही रहा ।
आंधियां चलती ........................

पूछते सब से रहे आपका हम तो पता
है हमारा ख्वाब कोई तो देता ये बता
छोड़ कर हम कारवां आ गए खुद ही यहां
इक सफ़र था ज़िंदगी जो कि चलता ही रहा ।
आंधियां चलती ...........................

जब किसी ने साथ छोड़ा ,नहीं कुछ भी कहा
शुक्रिया आपका आपने जो भी दिया
जब भी वो देता रहा जाम भर भर के हमें
जाम हाथों से मेरे बस फिसलता ही रहा ।
आंधियां चलती ............................

पास हमको लोग सारे बुलाते तो रहे
और हम रस्मे वफा कुछ निभाते तो रहे
दिल हमारा तोड़ डाला किसी ने जब भी
आंसुओं का एक सागर निकलता ही रहा ।
आंधियां चलती रहीं ,दीप जलता ही रहा ।

( मेरे दोस्त जवाहर लाल ठक्क्र जी ने मिसरा दिया था गीत का । )
 

4     दोहे   ( देश की वास्तविकता पर ) 

 

नतमस्तक हो मांगता मालिक उस से भीख
शासक बन कर दे रहा सेवक देखो सीख ।

मचा हुआ है हर तरफ लोकतंत्र का शोर
कोतवाल करबद्ध है डांट रहा अब चोर ।

तड़प रहे हैं देश के जिस से सारे लोग
लगा प्रशासन को यहाँ भ्रष्टाचारी रोग ।

दुहराते इतिहास की वही पुरानी भूल
खाना चाहें आम और बोते रहे बबूल ।

झूठ यहाँ अनमोल है सच का ना  व्योपार
सोना बन बिकता यहाँ पीतल बीच बाज़ार ।

नेता आज़माते अब गठबंधन का योग
देखो मंत्री बन गए कैसे कैसे लोग ।

चमत्कार का आजकल अदभुत  है आधार
देखी हांडी काठ की चढ़ती बारम्बार ।

आगे कितना बढ़ गया अब देखो इन्सान
दो पैसे में बेचता  यह अपना ईमान ।  
 

   5           बेचैनी ( नज़्म )  

पढ़ कर रोज़ खबर कोई
मन फिर हो जाता है उदास ।

कब अन्याय का होगा अंत
न्याय की होगी पूरी आस ।

कब ये थमेंगी गर्म हवाएं
आएगा जाने कब मधुमास ।

कब होंगे सब लोग समान
आम हैं कुछ तो कुछ हैं खास ।

चुनकर ऊपर भेजा जिन्हें
फिर वो न आए हमारे पास ।

सरकारों को बदल देखा
हमको न कोई आई रास ।

जिसपर भी विश्वास किया
उसने ही तोड़ा है विश्वास ।

बन गए चोरों और ठगों के
सत्ता के गलियारे दास ।

कैसी आई ये आज़ादी
जनता काट रही बनवास । 
 
 
  मैं इक ख़्वाब देखता था , कहीं कोई ऐसी दुनिया जहां प्यार दोस्ती और अपनापन हो , इक ऐसा घर कोई गांव कोई ठिकाना जहां सब बराबर हों छोटा बड़ा कोई नहीं हो , जिस में कोई ऊंच नीच की दीवार नहीं हो और हर किसी के मन की खिड़की खुली रहती हो । आपस में कहना कुछ दिल में रखना कुछ और जैसा कोई मुखौटा किसी चेहरे पर कभी नहीं रहे । दोस्ती का इक मंदिर जिस में समाज की भलाई की सामाजिक बुराईयों को मिटाने की सिर्फ बात नहीं कोशिश भी हो बदलाव करने की । समझाया था ज़माने ने कि पूरी कायनात में कहीं कोई ऐसा जहां नहीं है मगर मुझे तलाश करना था कितने भंवर कितने तूफां से टकराना था उस पार जाना था जहां मेरे सपनों का जहां है । मेरे माझी ने पतवार फैंक दी थी घबरा कर तब भी मैंने कह दिया था मेरे माझी हो तुम लगाओ पार या चाहे डुबो दो भंवर में ये नहीं कहो कि उस पार कुछ नहीं है । कह दो झूठा था वो बहाना मुझे अभी भी है उस पार जाना । 

             हम को ले डूबे ज़माने वाले         ,   नाख़ुदा खुद को बताने वाले । 

याद नहीं कैसे कैसे कितनी बार कितने लोगों को मिल कर घर बुलाकर उनके पास जाकर साथ देने इक कारवां बनाने की चर्चा की और बहुत बार कारवां बनाए भी । लोग मिलते बिछुड़ते रहे कुछ मज़बूर थे कुछ मगरूर थे कुछ अपनी मस्ती में चूर थे करीब होकर भी मुझसे खुद अपने आप से बहुत दूर थे । हम जहां से चलते घूम फिर कर वहीं पहुंचते ये हालात थे जो मुझको नहीं होते मंज़ूर थे । लोग सभी लाजवाब थे बड़े ही कमाल थे बस उन सभी के वही कुछ सवाल थे कहने को मालामाल थे फिर भी बेहाल थे जाने किस किस से क्या क्या मलाल थे । सबको किसी मंज़िल की चाह थी कठिन बड़ी ये राह थी , हम नई राह बनाते रहे रास्ते से पत्थर हटाते रहे कुछ फूल राहों में खिलाते रहे पर लोग समझदार बन किसी मोड़ से मुड़ जाते रहे । कहा यही इक तपता रेगिस्तान है तुम मृगतृष्णा के शिकार हो तुम किसी काम के नहीं आदमी बेकार हो । 
 
कोई किसी सड़क पर चला गया कोई राष्ट्रीय महामार्ग की तरफ गया मैं अपनी गांव की पगडंडी पर बढ़ता रहा कभी थक कर आराम किया बैठा किसी पेड़ की छांव में फिर हौंसला कर चल पड़ा चलता रहा चलता ही जा रहा हूं । मेरे सफर के कुछ हमसफ़र अभी भी अक़्सर मुझसे पूछते हैं मंज़िल अपनी का कोई पता और मैं समझा नहीं पाता कि मुझे रास्तों से प्यार है मंज़िल की चाह नहीं है बस ख़्वाब है जिस को हक़ीक़त में बदलना है सबको सबसे मिलवाना है खुद को भी समझाना है सभी अपने हैं यहां नहीं कोई बेगाना है । आज भी आपसे हर किसी से जिसको दोस्ती प्यार इंसानियत की खूबसूरत दुनिया की आरज़ू है मेरा यही कहना है कि इस पैग़ाम को समझना और समझाना , घर दोस्तों के दूर नहीं होते , आना चाहो जब भी चले आना । ख़ाली है अभी इस दिल का ठिकाना । 
 

 
 

मार्च 18, 2023

गूगल सर्च महान , खुद से अनजान ( हक़ीक़त का अफ़साना ) डॉ लोक सेतिया

   गूगल सर्च महान , खुद से अनजान ( हक़ीक़त का अफ़साना ) 

                                    डॉ लोक सेतिया 

गूगल सर्च पर खुद को ढूंढना हैरान हो जाओगे जानकर कि आप जो तलाश कर रहे हैं वो बहुत कुछ और है बस जो आप हैं वही नहीं है । पिता की नज़र से बेटा बेटे की निगाह से बाप पत्नी के आधार पर पति दोस्तों की समझ से आपका कोई ऐतबार नहीं ज़रूरत को देख अच्छा बुरे लगते हैं । सरकार के हर विभाग ने आपका नाम लिखा हुआ है अपने हिसाब से करदाता हैं या कर्ज़दार हैं उपभोक्ता हैं या उनके लिए कुछ भी नहीं ज़िंदा हों कि मुर्दा उनको खबर नहीं बस बेकार लोगों में शुमार हैं । चिंता बढ़ जाएगी अगर और आगे बढ़ कर जानकारी चाहोगे कि अगर जो आप बता रहे हैं वो सही है तो जो मुझे पता है मैं वास्तव में कौन क्या हूं उस का क्या करूं । गूगल आपको निर्देश देगा वो सब अपनी हिस्ट्री मेमरी से मिटा दो हमेशा को । गूगल भी सब जानता है खुद क्या है क्या से क्या क्यों हो गया और कल क्या होगा उसे भी नहीं पता अपने बुने जाल में खुद हर कोई उलझा है गूगल भी इस से बच नहीं सकता है । हर शख़्स की समस्या यही है दुनिया भर को जानता समझता है खुद से अजनबी है क्या है इस से अनजान है । आपकी नज़र से लोग अच्छे ख़राब हैं बस खुद नज़र से आप कमाल हैं लाजवाब हैं सब का हिसाब रखते हैं कुछ बेहिसाब हैं । ये नशा है मदहोशी है आपको कुछ नहीं सूझता है जबकि आप पीते ही नहीं शराबी नहीं हैं लेकिन अपनी ही मस्ती में चूर हैं जो चढ़ कर कभी नहीं उतरती वही शराब हैं । आप कितने अच्छे हैं मुझसे सच्ची मुहब्बत करते हैं जाओ कितने झूठे हैं मुझे बनाते हैं बड़े ही खराब हैं । बेग़म जी समझती हैं आप कहां के नवाब हैं शादी से पहले देखा वही खूबसूरत ख़्वाब हैं हक़ीक़त नहीं अफ़साना हैं जिस को पढ़ा नहीं जा सकता वो दिल की किताब हैं ।   
 
सोशल मीडिया की लत ऐसी लगी कि मीरा की तरह सभी पर दीवानगी चढ़ गई है , तन मन की सुध-बुध नहीं रही और बेबस और लचर हो गए हैं कैलाश खेर का गाया सूफ़ी संगीत जैसी हालत है मीरा मतवारी थी दिल हारी थी पिया पर बलिहारी थी यहां कोई भी नहीं सब मशीनी है गूगल भी इक सर्च इंजन है मशीन है । जब आदमी मशीन को अपने इशारों पे चलाता था मशीन ज़रूरत पर काम आती थी आजकल मशीन इंसान को अपने निर्देश पर चलाने लगी है और आदमी कठपुतली बन कर चल रहा है । खुद अपना वजूद खोकर सभी जाने किस की तलाश को भटकते फिरते हैं । आदमी कहता है आदमी का कोई भरोसा नहीं मशीन पर यकीन रखते हैं और मशीन या कोई सॉफ्टवेयर या ऐप्प किसी न किसी आदमी ने बनाई है जैसे उसने प्रोगरामिंग की है खराबी या वायरस आने तक उसी ढंग से चलती है और गड़बड़ होने पर क्या करेगी किसी का बस नहीं चलता । देश की सरकार तक मशीनी ढंग से काम करती है और मशीन को क्या खबर उस ने सही किया या गलत किया । हथियार तीर तलवार बंदूक चाकू छुरी जिस हाथ में उसकी मर्ज़ी से चलते हैं । 

 कोई शायर कहता है " मुहब्बत ही न जो समझे वो ज़ालिम प्यार क्या जाने , निकलती दिल के तारों से जो है झनकार क्या जाने । करो फरियाद सर टकराओ अपनी जान दे डालो ,  तड़पते दिल की हालत हुस्न की दीवार क्या जाने । उसे तो क़त्ल करना और तड़पाना ही आता है , गला किस का कटा क्योंकर कटा तलवार क्या जाने " ।  

सरकार से हर शाहकार तक खुद क्या है अपने खुद की बढ़ाई करते हैं दिया क्या क्या गिनवाते हैं कभी ये नहीं बतलाते लिया क्या क्या है छीना कितना चैन नींद आज़ादी जीने का हक़ सभी , उनके पर अपने ज़ुल्मों का कोई हिसाब नहीं रहता है । यही सरकारी मशीनी तौर तरीका गूगल से सोशल मीडिया और ऐप्स का है ऑनलाइन लेन देन करते करते कब कौन जालसाज़ी का शिकार हो कंगाल हो किसी ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया अगर जुर्म की सज़ा मिलती तो सब दिवालिया हो जाते जो भी मालामाल हैं ।   

सईद राही जी की ग़ज़ल है :-

तुम नहीं , गम नहीं , शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं

गाहे - गाहे इसे पढ़ा कीजिये ,
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
ऐसी तन्हाई...

जाने किस - किस की मौत आई है
आज रुख पे कोई नकाब नहीं
ऐसी तन्हाई...

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं
ऐसी तन्हाई... 


 

मार्च 16, 2023

एंटी-रिश्वतखोरी वायरस औषधि ( तीर निशाने पर ) डॉ लोक सेतिया

 एंटी-रिश्वतखोरी वायरस औषधि ( तीर निशाने पर ) डॉ लोक सेतिया 

आख़िर देश को लूटने वालों घूसखोरों घोटालेबाज़ों से जनता को बचाने का उपाय खोज लिया गया ।  ये एक औषधि है जिस का उपयोग सिर्फ भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए ही नहीं बल्कि अदालत में झूठी गवाही से लेकर जाली दस्तावेज़ नकली नोट और किसी की भी झूठी गलत रिपोर्ट को परखने उसे पूरी तरह से जड़ से मिटाने का काम कर सकती है । सफलता पूर्वक आज़माने के बाद सरकार से इस का उपयोग करने की इजाज़त मांगी गई है । शोध से प्रमाणित हुआ है कि एक बार इस औषधि की खुराक देने के बाद महारिश्वतख़ोर भी पूरी तरह से ईमानदार बन कर अपना फ़र्ज़ बिभाने लगता है और रिश्वत शब्द सुनते ही उस के भीतर उसकी आत्मा उसका विवेक उसको रोकने में कामयाब हो जाता है । मन में काली कमाई की बात आते ही उसको घबराहट बेचैनी होने लगती है और चेहरे का रंग बदरंग लगने लगता है जिस से सामने खड़ा व्यक्ति आस पास के लोग पहचान सकते हैं कि उसकी नीयत खराब है । किसी तरह इन सब को अनदेखा करते हुए कोई भूलकर गलती से भी रिश्वत लेता है तो औषधि का असर सामने आता है और उसको सीने पर भारी बोझ लगने लगता है जिस के कारण वो कुछ भी खा पी नहीं सकता है । बस सभी सरकारी विभाग के हर एक अधिकारी हर इक कर्मचारी को ये औषधि लेना अनिवार्य किया जा सकेगा और जो इनकार करेगा उस को नौकरी छोड़नी पड़ेगी । सरकारी कर्मचारियों के अलावा निजी कंपनी तमाम बड़े उद्योग या निकाय के स्टॉफ  से लेकर अदालत के सभी न्यायधीश वकील से स्टाफ़ तक को औषधि की खुराक देने से न्याय बिल्कुल सही और बिना देरी मिलने लगेगा क्योंकि सबकी सच्चाई या कोई चालाकी तुरंत पकड़ी जाएगी । ठीक कोरोना की वैक्सीन की तरह औषधि देश की जनता को देने से देश समाज से बेईमानी अपराध धोखाधड़ी का अंत हो जाएगा और कोई भी न रिश्वत मांगेगा न कोई रिश्वत दे कर अनुचित ढंग से फायदा उठाएगा । भूखे मरने का भय किसी को कुछ भी अनुचित नहीं करने देगा । 
 
विषय अति संवेदनशील है सरकार को हर कदम संभल संभल कर रखना पड़ता है , गोपनीय ढंग से उच्च स्तर की समिति गठित की गई है जो इस पर कैसे कारवाई हो से लेकर सभी पहलुओं पर विचार करेगी । सरकार ने चिंता जताई है कि कहीं औषधि नेताओं पर सांसदों विधायकों पर उपयोग करनी पड़ गई तब देश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है । शोध करने वाले विशेषज्ञों ने चौंका दिया है ये सुझाव देकर कि पहले इस समिति के सभी सम्मानित सदस्यों को औषधि की खुराक दी जाए ताकि उनका निर्णय शत प्रतिशत सही और निष्पक्ष होकर जारी हो सके , साथ ही प्रमाणित भी हो जाएगा कि सरकार दल या शासक किसी का कोई दबाव उन पर कोई प्रभाव नहीं कर सकेगा । सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचा दिया है ये अनहोनी घटना लग रही है जिस से चर्चा की कोई समिति का सदस्य बनने को तैयार नहीं है , सभी का कहना है उनका ऐसा कोई अनुभव नहीं है इस पर जानकार लोगों को नियुक्त किया जाए । हैरानी है लोग खुद को नाक़ाबिल घोषित कर रहे हैं । जैसा होता है मीडिया के जासूस भीतर की खबर ले आते हैं और ब्रेकिंग न्यूज़ बना देते हैं इस बात पर खबर सवालिया निशान लगाकर फैलाई गई है कि क्या वास्तव में ऐसा कोई प्रयोग सफल हो गया है । 
 
सरकार को मामला गंभीर लगा है इसलिए ख़ास ख़ास टीवी अखबार मीडिया वालों को बुलाया गया है ।  उन से कहा गया है कि जिस किसी को इस पर सवाल पूछना है उसको लिखित देना होगा कि अगर सच में ऐसी कोई औषधि बनाई गई है तो वो औषधि की खुराक लेने पर सहमत हैं और तभी सवालात की झड़ी लगा सकते हैं । अब आया ऊंठ पहाड़ के नीचे सभी सकते में हैं इतनी ख़ामोशी छाई है कि सबकी घटती बढ़ती सांसों की आवाज़ सुनाई देने लगी है । सरकारी प्रवक्ता ने चटखारा लेते हुए कहा है कि आपको सांप क्यों सूंघ गया है ज़रा सा मज़ाक सुन कर सिट्टी पिट्टी गुम हो गई सोचो इतनी ऊल - जुलूल खबरें बनाते रहते बेसिर पैर की जनता की क्या हालत होती होगी । पहली बार सवाल करने वालों से सवाल किया गया तो उनको लगा जैसे नीचे से ज़मीन खिसक गई है । 
 
 सरकार भी चलती नहीं है कोई और कहीं से चलाता है जो कभी किसी को सामने दिखाई नहीं देता उसको बिग बॉस कहते हैं । बिग बॉस का हर आदेश आखिरी होता है जिनको समझ नहीं आया उनको टीवी शो बिग बॉस की पुरानी कड़ियां देखनी चाहिएं । इस साल बिग बॉस के लिए इक गाना भी सुबह जागते ही गाया जाता था उसकी महिमा का वर्णन करते हुए । सरकार को अपने इशारे पर चलाने वाले बिग बॉस ने आकाशवाणी की तरह निर्णय सुनाया है कि हमारा देश कोई इतना बड़ा जोखिम नहीं उठा सकता है और जिस औषधि की खोज की गई है उस पर प्रतिबंध लगाया जाता है और भविष्य में कभी ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जाएगा ये तय किया जाता है । जितनी औधधि बनी थी नष्ट कर दी गई है लेकिन बिग बॉस ने औषधि का फॉर्मूला अपनी तिजोरी में बंद कर रख लिया है क्या करना है वही जानता है आखिर बिग बॉस सबका मालिक है जो उसकी मर्ज़ी कर सकता है । सभी लोग जिनको इस की जानकारी मिल गई किसी तरह से चाहते हैं कि इस को झूठी अफ़वाह की तरह भुला देना अच्छा है सबकी भलाई इसी में है ।  राज़ की बातें खुलने लगीं तो अंजाम क्या होगा ये सच सब को डराता है । 



 
 

मार्च 11, 2023

ख़ूबसूरत लगते हैं गुनाहगार लोग ( ये मुहब्बत है ) डॉ लोक सेतिया

 ख़ूबसूरत लगते हैं गुनाहगार लोग ( ये मुहब्बत है ) डॉ लोक सेतिया  

मैंने सोचा सोच सोच कर बार बार सोच कर समझा तब जाकर समझ पाया कि  अपराध क्या है अपराधी कौन नहीं है और यकीन हुआ कि दुनिया में मुजरिम हर शख़्स है । किसी शायर ने कहा भी इक फुर्सत ए गुनाह दी वो भी चार दिन , देखे हैं हौंसले परवरदिगार के । ऊपरवाले के दरबार में हम सब खड़े होते हैं गुनाहगार की तरह । जुर्म अपराध पर चर्चा बहुत की जाती है पर खुद अपने गिरेबान में कोई नहीं झांकता । कहने को हर कोई कह देता है जीना गुनाह है पर क्या क्या गुनाह नहीं किया कोई किसी को नहीं बताता है । गुनाह करने से जो लज़्ज़त जो ख़ुशी मिलती है उसका लुत्फ़ ही और है । यहां सभी ग़ालिब की तरह कह नहीं सकते कि मस्जिद के ज़ेरे साया घर बना लिया है , ये बंदा ए कमीना हमसाया ए खुदा है । शराफ़त बस इक मुखौटा है असली चेहरा दिखाई दे जाता तो आदमी चेहरा दिखाने के काबिल नहीं होता । दुनिया बनाने वाले ने अच्छा किया या खराब किया पर उस ने सब की भीतर मन की बात को किसी और तो क्या खुद को भी पता नहीं चलने दिया तभी भगवान भी आदमी की असलियत को समझ नहीं पाया । उसके सामने आकर भूल अपराध जाने अनजाने किए सब की क्षमा याचना करता है और पल भर बाद वही दोहराता है क्योंकि बुरे कर्म करने में बड़ा मज़ा आता है । क्या कमाल की बात है हम अपने आप से अपनी वास्तविकता को छुपकर जीते हैं नहीं तो शर्म से ही मर जाते । दार्शनिक लोग सब समझते हैं उनको मालूम है कि दुनिया में सभी अच्छे-सच्चे होते तो दुनिया बेरंगी और बोझिल लगती ये तो अपराधी लोग ही हैं जिन्होंने दुनिया को कितने रंगों से भरा है लाल रंग खून की निशानी है और काला रंग घनी ज़ुल्फ़ों से लेकर काला टीका नज़र लगने से बचाने से काजल की कोठरी वाला बहुरंगी होता है । गोरा और काला दोनों भाई भाई हैं और हरा लाल नीला पीला जामुनी गुलाबी उनका परिवार हैं ज़रा आगे ध्यान से पढ़िये सरकारी इश्तिहार हैं अपराधी सांसद विधायक हैं शासक शानदार किरदार हैं यहां राजनीति में सभी दिलदार हैं दोस्त हैं दुश्मनी को हमेशा तैयार हैं । 
 
अपराध जगत के महारथी समझे जाने वाले से राजनीति के अपराधीकरण विषय पर साक्षात्कार करने का अवसर मिला उन्होंने बहुत सारा व्याख्यान दिया उनकी बात को संक्षेप में वर्णन करते हैं । सत्ता की बहती गंगा में कितनी तरह से कहां कहां से आया है सब काम गंदे ख़राब छल कपट धोखा हेराफेरी लूटपाट से क़त्ल करने के करने के बाद सत्ता की चौखट पर सर झुकाया है सब पाप धुल गए हैं बेगुनाह साबित हुआ जब इस में नहाया है । झूठ को सच बताकर सच को अफ़वाह बताया है हमने धर्म देशभक्ति को अपना हथियार बनाया है रंगे हाथ पकड़े गए हाथ ख़ाली लेकर आए थे राजनीति में सभी पर हर कोई झोली भर घर लाया है । पाप क्या पुण्य क्या है ये भेदभाव मिटाया है बस इतना समझ लो हमको नहीं उसने बनाया जिस को भगवान हमने बनाया है । दुनिया कहती है झूठी मोह माया है हमने सिर्फ ईमान को बेचा है बदले में जो भी चाहा खूब पाया है । सबको उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करने का हुनर राजनीति कहलाती है ये वो डायन है जो सबका लहू पीती है और अपनी प्यास बुझाती है क्या कभी किसी धनवान को शासक को शर्म ओ हया आती है । ये भी इक तपस्या है जो बंद खिड़कियों दरवाज़ों में चुपके से की जाती है सरकार चलाना आसान नहीं है गंगा उलटी बहती है नीचे से ऊपर को जाती है । ध्यान से पढ़ना सब इतने में सार की बात समझाई है राजनेता की चतुराई है हर शख़्स हरजाई है ।    
 
मुझे अपने गुनाह स्वीकार हैं मैंने कोई अपराध छोड़ा नहीं है , सबसे मुहब्बत करना भी गुनाह होता है और सच लिखना सच कह देना भी जुर्म ही है जो रोज़ किया है और सज़ा भी मंज़ूर की है । आखिर में मुझे हमेशा दस्तक़ फिल्म की ग़ज़ल पसंद रही है उसी से अपनी बात ख़त्म करते हैं । सब सच कहा लिखा है और कुछ भी झूठ नहीं शपथ लेता हूं ।
 

 


मार्च 10, 2023

सत्ता का राक्षस ख़्वाब में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

         सत्ता का राक्षस ख़्वाब में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

इक चारों तरफ फैली बड़ी ऊंची लंबी चौड़ी दैत्याकार छवि मुझे अक्सर रातों को जगाती है । चैन से सोया नहीं जब से सोचने समझने लगा हूं अपने समाज की वास्तविक तस्वीर को लेकर । शब्दों से चित्र बनाना चाहता हूं तो हर शब्द आकार खोने लगता है जैसे किसी फिल्म में आधुनिक तकनीक से दिखलाया गया था । तारे ज़मीं पर फिल्म जैसे , बनाई तस्वीर शब्दों की लिखावट डगमगाती दिखती है धुंधली नज़र है या तस्वीर के रंग फीके पड़ गए हैं समझ नहीं आता मुझे । मनोचिकित्सक उपचार बताता है मस्तिष्क को आराम की ज़रूरत है समाज की देश की चिंता करने को सरकार बहुत है आपको खुद जीने की चिंता करनी है मौत के आ जाने तक । इक दार्शनिक वहीं बैठे थे सुनकर कहने लगे आपको ख़्वाब में जो दिखाई देता है कोई व्यक्ति नहीं है सरकार का साकार रूप है । सरकार से डरना ज़रूरी है जनता की यही सबसे बड़ी मज़बूरी है मगर डरावने सपने दिल की धड़कन को बढ़ा देते हैं कभी लगता है सोते सोते शायद धड़कनें बंद ही हो जाएं ।  
 
 पंडित जी सपनो का अच्छा बुरा फल बतलाते हैं ज्योतिष से समस्या का कोई हल बताते हैं । इक गुरु जी मिले जिनसे मेरी कोई जान पहचान नहीं इक दोस्त उनके अनुयाई हैं साथ लेकर गए मुझे तो सब जानते समझते हैं ऐसा दावा करने वाले बोले आज नहीं सोच विचार कर कल बताते हैं । आज दोबारा जाकर वही सवाल उनका भी वही जवाब कल बताते हैं । कल कब आएगा उनको नहीं पता मुझको भी नहीं खबर कल तक कौन जीता है पल में प्रलय आएगी सुना है कल कभी नहीं आता है हमेशा आज होता है गुज़रा हुआ कल और आने वाला कल कोई अस्तित्व नहीं होता दोनों का । फिर उसी पुरानी किताब निकाली तो इक कथा पढ़ने को मिली सरकार क्या होती कैसी होती है । कुछ मिलती जुलती कहानी इक बड़े लेखक का उपन्यास भी है अरुण प्रकाश जी की कोंपल कथा , वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है , मगर ये किताब किसी और की है । 
 
सरकार इक कल्पना है और कल्पना सुंदर भी हो सकती है और बेहद बदसूरत भी लेकिन सरकार कभी जनता की नहीं होती है सरकार जनता के लिए कभी कुछ नहीं करती जनता को सरकार की खातिर जीना मरना होता है । जनता वरमाला पहनाती है ये भी उसकी ख़ुशी मर्ज़ी से नहीं बल्कि विवशता होती है उसको खुद आज़ाद रहने की अनुमति नहीं है सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था यही है आपको गुलामी स्वीकार करनी होगी दूजा कोई विकल्प नहीं है । पत्नी बनकर दासी होना दासता को अपना भाग्य समझना और जनता का राजनेताओं को वोट देकर शासक बनाना उनकी जीहज़ूरी करना एक जैसे हालात हैं । नियम कायदे कानून सरकारी मशीन के हाथ हैं और कार्यपालिका न्यायपालिका सभी सुरक्षा को तैनात लोग संस्थान आदि किसी तलवार बंदूक एटम बंब की तरह हैं । अधिकारी कर्मचारी इंसान नहीं संवेदना रहित हथियार हैं जिनको जो भी शासक जो भी सरकार जो भी विभाग उपयोग कर अपनी हर मनोकामना को पूर्ण करवा सकता है । नियम कायदे कानून जनता पर सख्ती से लागू होते हैं लेकिन सरकार अधिकारी ख़ास लोगों पर लचीले और नर्मदिली से हाज़िर होते हैं । नतीजा समझ आया है कि मौत की गहरी नींद आने तक मुझ जैसी जनता को सत्ता का राक्षस ख़्वाब में आकर डराता रहेगा । 
 

 

मार्च 09, 2023

सुबह का इंतिज़ार कब तक ( दर्द की दास्तां ) डॉ लोक सेतिया

 सुबह का इंतिज़ार कब तक  ( दर्द की दास्तां  ) डॉ लोक सेतिया 

   क्या बतलाएं हम ने कैसे सांझ सवेरे देखे हैं , सूरज के आसन पर बैठे घने अंधेरे देखे हैं । किसी बड़े शायर का शेर वर्तमान समाज की दशा को परिभाषित करने में सक्षम है । शासक वर्ग ईश्वर धर्म के नाम पर जनता को ठगने का कार्य करते हैं छलिया बन कर भेस बदलते रहते हैं और अधिकारी कमाल का अभिनय करते हैं जब नागरिक उन को मिलते हैं उनसे समस्याओं पर बात करने को छोड़ उपदेशात्मक रवैया अपना कर अपना पल्ला झाड़ कर सरकार की मनमानी की परेशानी बताते हैं जबकि सिफ़ारिश घूस वालों के लिए सब आसान हो जाता है । आम नागरिक को ऊपरवाले पर अर्थात भगवान पर भरोसा करने की बात कहते हैं और जतलाते हैं कि जैसे उनके अधिकार होते हुए भी सही फैसला करने की अनुमति  नहीं है । निर्णय उनको लेना है नियम यही है मगर उनका विवेक कोई काम तभी करता है जब उनका फायदा या मज़बूरी हो । राजनेता अफ़्सर कर्मचारी सभी आपस में मिले हुए होते हैं मगर जिनको न्याय नहीं मिलता उनको दूसरे का दोष बताकर खुद को मासूम दिखलाने की कोशिश करते हैं । आम जनता सब समझती है मगर खामोश रहती है क्योंकि  जानती है कि तलवार से घाव मिलता है मरहम नहीं । 
 
   संत बनकर उपदेश देने वाले सरकारी अनुकंपा पा कर अनुचित को उचित करवा लेते हैं वोट का गणित काम आता है और देश राज्य की सरकार उनकी चरण वंदना करते हैं जबकि सामन्य नागरिक पर बेरहमी से जब चाहे जो नियम बनाकर लूट का अवसर खोजते रहते हैं । अधर्म धर्म बन गया है और मानवीयता का वास्तविक धर्म किसी सरकार किसी प्रशासन किसी संगठन किसी संस्था यहां तक कि किसी न्यायालय को याद तक नहीं है । बड़े ख़ास लोगों पर सरकार की अनुकंपा रहती है और उसी कार्य के लिए साधारण व्यक्ति पर कोई तरस नहीं खाता उसको दर दर ठोकरें खाने को विवश किया जाता है । टीवी पर सोशल मीडिया पर सभी शासक सरकारें लोक कल्याण और जनता की सेवा भलाई की चर्चा भाषण करते हैं जबकि वास्तविकता विपरीत मिलती है जब किसी आम नागरिक को अनावश्यक परेशानी होती है । गुरु नानक जी ने इक शासक को कहा था एती मार पई करलाने तैं कि  दर्द न आया । बाबर के ज़ुल्म की बात थी शायद ।   





अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

   अब तो इस तालाब का पानी बदल दो  ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

   कोशिश है जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण मुख्य बातों पर संक्षेप में साधारण शब्दावली में विचार विमर्श करना ताकि साधारण व्यक्ति समझ कर अपना सके और फ़ायदा उठा सके । सबसे पहले अच्छा जीवन बिताने के लिए जो बातें अतिआवश्यक हैं उनकी चर्चा , शारीरिक और मानसिक के साथ सामाजिक स्वास्थ्य के बिना कुछ भी संभव नहीं है । खुश रहना मौज मस्ती करना शानदार रहन-सहन साधन सुविधाएं वास्तव में अच्छे जीने के लिए उस सीमा तक ज़रूरी हैं जहां तक पहले वर्णित शारीरिक मानसिक सामाजिक स्वस्थ्य हासिल करने में कोई बाधा उतपन्न नहीं करते ये सब अन्यथा भौतिक चीज़ों की दौड़ में वास्तविक जीवन चौपट हो जाता है । आजकल यही होने लगा है और समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है । देश की समाज की व्यवस्था जर्जर हो चुकी है सब कुछ जैसा होना चाहिए उस के विपरीत हो गया है । बदलाव का शोर है बदलाव हो नहीं रहा क्योंकि खुद को कोई भी बदलना नहीं ज़रूरी समझता है।

   ये कोई मनघडंत कहानी नहीं है बहुत पुरानी इक किताब है जो धर्म शासन व्यवस्था सामाजिक मान मर्यादा को लेकर लिखी गई है और जिस में नीति-कथाओं बोध-कथाएं लोक-कथाएं से सही गलत अच्छे बुरे की व्याख्या की गई है । इक बोध कथा संत महात्मा और राक्षस का अंतर समझाती है , साधु जीवन भर जितना भोजन खा कर जीवित रहता है राक्षस का पेट उतना खाने पर एक बार भी भरता नहीं है । देवता कहते हैं उन को जो देते हैं सबको बांटते हैं थोड़ा पास रखते है आवश्यकता भर को जमा कर रखते नहीं कल की खातिर । दान और पुण्य की परिभाषा भी है कि धनवान भूखे गरीब की सहायता करते हैं रास्ते पर मुसाफिर की सुविधा पानी छांव रात भर आराम करने को मुसाफिरखाना बनाते हैं तभी ईश्वर का धन्यवाद करते हैं कोई नाम शोहरत पाने को दिखाने को कुछ नहीं करते कभी । वास्तविक धर्म समाज का कल्याण और उपकार की भावना से कर्म करना है जब कोई मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर दानपेटी में किसी भी तरह अर्जित धन को देकर ऐसा समझता है ऊपरवाला खुश होगा आशीर्वाद वरदान देगा तो वो खुद को औरों को धोखे में रख रहा होता है । शायद यही सबसे बड़ी अज्ञानता की बात है कि कोई खुद को दाता और ईश्वर को भिखारी समझता है । विधाता ने सभी को सब आवश्यकता का मिले ये व्यवस्था की है अगर ध्यान पूर्वक समझा जाए तो , लेकिन बाक़ी सब तौर तरीके मतलबी लोगों ने अपने स्वार्थ हासिल करने को लागू कर के सब से उनका अधिकार छीन कर वही किया है जो दानव किया करते थे कथाओं में पढ़ते हैं देवताओं पर अन्याय अत्याचार कर अपनी भूख अपनी हवस मिटाने को । वास्तव में ऐसे लोग धर्म को ईश्वर को न तो मानते हैं न समझते हैं  सिर्फ आडंबर करते हैं । अधिक कहना ज़रूरी नहीं विचार करेंगे तो सब खुद अपने विवेक से जान जाओगे , आखिर में महात्मा गांधी जी की समझाई बात । हमें खुद वो बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं , तभी हम अंधेरे में रौशनी की किरण फैला सकते हैं । 
 
 हैं उधर सारे लोग भी जा रहे  ,    रास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।

सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो ,   गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।

सबको है उनपे ही एतबार भी ,    रात को दिन जो लोग बता रहे ।

लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर  ,        दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।

घर बनाने के वादे कर रहे  ,        झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।

हक़ दिलाने की बात को भूलकर ,  लाठियां हम पर आज चला रहे ।

बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं  ,   हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
 
 
 कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं: दुष्यंत कुमार - YouTube








मार्च 08, 2023

होली का सरकारी फ़रमान ( राज़ की बात ) डॉ लोक सेतिया

     होली का सरकारी फ़रमान ( राज़ की बात ) डॉ लोक सेतिया  

आपने क्या समझा कि ये आपके हमारे लिए कोई खुशखबरी की बात है , जी नहीं हज़ूर ये उनकी आपस की बात है । सरकार ने ये इश्तिहार सरकारी विभागों को भेजा है होली पर सभी अधिकारी कर्मचारी सबको ये संदेश  ध्यान पूर्वक पढ़ना है बिल्कुल उसी तरह जैसे शपथ उठाई जाती है । लिखा है सरकार जो चाहे सब संभव है कुछ भी नहीं जो सरकार नहीं कर सकती है लेकिन क्या सरकार को जो करना चाहिए वो सब करना है गंभीर विषय यही है । सरकार को सब नहीं करना चाहिए सिर्फ वही करना चाहिए जिस से सरकार के सरकार होने का मतलब समझ आता रहे हर किसी को । सरकार चाहती है जैसा हो ये शब्द लिखने से मंशा साफ नहीं हो जाती है मगर सरकार चाहती है ऐसा होना लाज़मी है लिखने का अर्थ है कुछ भी हो आपको आदेश का अनुपालन करना ही होगा अन्यथा आप दोषी समझे जाएंगे । 75 साल से सभी राजनेताओं अधिकारियों ने यही किया है बस सरकार चलती रहनी चाहिए भले सब रुक जाए और सरकारी तौर तरीका कभी किसी हाल में बदलना नहीं चाहिए । साकार जनता चुनती है बनाती है लेकिन आज तक कभी किसी ने नहीं समझा कि सरकार जनता की या जनता की खातिर है । सरकार किसी शासक नेता की कहलाती है या किसी राजनैतिक दल की अथवा गठबंधन की मिली जुली खिचड़ी जैसी सरकार । खिचड़ी अमूमन मज़बूरी से खाई जाती है शौक से अधिकांश लोग नहीं खाते हैं । जिनको खिचड़ी पसंद भी होती है उनको भी खिचड़ी के हैं चार यार घी , पापड़ ,  दही , अचार साथ चाहिएं ही । गठबंधन भी कुछ मिलता जुलता होता है यारी निभाने में सरकार अक्सर खुद और बीमार होने लगती है । 

     विषय की बात करते हैं जो भी कुछ बनाता है वो उसकी होना आवश्यक नहीं है , घर कोई बनाता है उस में रहना किसी और को होता है । जनता सरकार को बनाती है पर जनता सरकार की मालिक नहीं सरकार को जनता अपनी गुलाम लगती है । शासक बनकर जनता के पैसे से शानो शौकत ठाठ-बाठ राजनेताओं का अधिकार होता है और जनता को उसका हक़ भी सरकारी ख़ैरात की तरह मिलता है । होली पर सरकारी फ़रमान जारी हुआ है कि सरकार की धूमिल होती छवि को झाड़ पौंछ कर सुथरा नहीं चमकदार बनाया जाना चाहिए । सोशल मीडिया पर ध्यान पूर्वक निगाह रखनी है और गरीबी भूख बेरोज़गारी से लेकर बेदर्दी एवं तानाशाही को भला किया जा रहा घोषित करना ज़रूरी है । उदाहरण स्वरूप एमरजेंसी को आपात्काल इक अनुशासन पर्व है के इश्तिहार चरों तरफ दिखाई देते थे । सब को यकीन होने लगा था देश कोई त्यौहार मना रहा है बस उसको दोहराना है सुशासन लाना घोषित करना है जनता को उल्लू बनाना है । जनता को देशभक्ति का सबक पढ़ाना है खुद देश को बर्बाद कर जश्न मनाना है , नीरो की तरह बंसी बजाना है । अगला चुनाव जीतना है शतरंज का खेल खेलते हैं हर दांव आज़माना है । सबसे ज़रूरी मोहरा वज़ीर है फ़िल्म का नाम भी वज़ीर है ये आख़िर में राज़ बताना है जो खुद को राजा रानी घोड़े हाथी समझते रहे उनको प्यादों से पिटवाना है । मौसम भी आशिक़ाना है कहीं से सत्ता को अपने पास लाना है पाक़ीज़ा का युग नहीं कोठे पर मुजरा नहीं देखने जाते ठेकेदार से नवाब साहब तलक सरकार का जिनसे गहरा याराना दोस्ताना है उनका दिल क्या मांगता है समझना है उनको समझाना है । सत्ता की नर्तकी को दरबार में नचवाना है आइटम सॉन्ग का लुत्फ़ उठाना है महिला दिवस को होली संग मिलाना है औरत को बस इक इस्तेमाल की चीज़ बनाकर उसका भविष्य उज्जवल बनाना है इक्कीसवीं सदी का आधुनिक ज़माना है । राज़ खुला तो बात ये निकली है कि सरकार महिला दिवस पर होली का हास्य कवि सम्मेलन आयोजित करवाना चाहती थी इस लिए इक व्यंग्यकार जो महिलाओं की बड़ी चिंता करता है उसी से ये फ़रमान लिखवा कर भिजवा दिया लेकिन समय पर गंभीर बात को इक मज़ाक़ था कहकर पीछा छुड़ा लिया है । 



 
  


मार्च 07, 2023

भगवान परेशान मैं हैरान ( होली की ठिठोली ) डॉ लोक सेतिया

     भगवान परेशान मैं हैरान ( होली की ठिठोली ) डॉ लोक सेतिया 

नशे का चढ़ा हुआ खुमार था 
मैं था फुटपाथ पर खड़ा हुआ
 
कर रहा नहीं आने वाले का
बड़ी बेताबी से इंतिज़ार था । 
 
होली के रंगों का सजा इक 
हुड़दंग का खुला बाज़ार था 
 
अजनबी जाना पहचाना वही 
घोड़े पर शान से सवार था । 

उसने मुझे आवाज़ देकर बुला 
नाम पता ठिकाना पूछ लिया  
 
याद नहीं देखा लगते कहा तो
बतलाया कलयुगी अवतार था । 
 
कहने लगा मुझे लिखते हो क्या 
किसलिए भला मिलता है क्या 

मैंने कहा खुद क्या तुमने किया 
दुनिया बना नहीं बंदा खुश था ।
 
ऐसा लगा परेशान था ख़ुदा बड़ा
थोड़ा सा घबरा गया शरमा गया
 
कोई जवाब नहीं देने को सूझा
बेबस बेचारा हुआ लाचार था । 

उसने सुनाई दास्तां ज़ुबानी तब
दुःखी आवाज़ भरा हुआ गला 

दुनिया ज़माने से इंसानों से
भगवान हो गया बेज़ार था । 

दिल में छुपा कर रखते हैं 
मुहब्बत जिस को कहते हैं  

सोशल मीडिया पर क्योंकर 
तमाशा बनाया दिलदार था ।
 
बस शोर है हर तरफ मचा यही
भगवान है धर्म क्या चीज़ क्या
 
वजूद बदल गया कोई बोलो
कब भला मैं कहीं सरकार था । 
 
जिस ने जैसा चाहा मर्ज़ी से
खिलौना बना खेला है मेरे संग 

हैरान हूं परेशान हूं इंसाफ़ करो 
बेख़ता सज़ा का न हक़दार था ।  
 

तस्वीरों तकरीरों सोशल मीडिया
के जंगल में भटका दिया मुझको 
 
नहीं जानता कौन भगवान बना हुआ
मैं तो ऐसा नहीं बस रूहानी प्यार था ।
 
 









मार्च 06, 2023

भांग पड़ी कुंएं में आग लगी धुंएं में ( होली कथा ) डॉ लोक सेतिया

 भांग पड़ी कुंएं में आग लगी धुंएं में ( होली कथा ) डॉ लोक सेतिया  

   अच्छा हुआ कि खराब हुआ अब इस पर सोचना बेकार है बस जो होना था हुआ हो गया । शोध चल रहा था जिस रोग की दवा खोजने का वो रामबाण दवा आखिर बन ही गई ये अलग बात है वक़्त तो लगता ही है और वक़्त इतना लग गया कि दवा की ज़रूरत नहीं रही रोग खुद ही ख़त्म हो गया । होली का शुभ दिन है उस नामुराद का नाम भी नहीं लेना अच्छा है । बड़े साहब से आदेश मिला होली मनानी है कोई बढ़िया चीज़ असरदार बना कर भेजनी है । शोध पर ध्यान देकर गहन विचार विमर्श किया तो बेहद अद्भुत जानकारी मिली कि बनाई गई दवा आदमी को पिला कर सच्चाई और ईमानदारी पैदा हो जाती है और इंसान को सही गलत की पहचान होने लगती है मुर्दा ज़मीर ज़िंदा हो जाता है । अपनी प्रयोगशाला में सभी साथी कर्मचारियों पर आज़माया और परिणाम सफल रहा । बड़े साहब को गोपनीय जानकारी दी गई और भरोसा दिलवाया गया कि होली पर आपके सभी साथी सहयोगी अधीनस्थ कर्मचारियों अधिकारियों को भांग में मिलाकर ये दवा पिलाई जाए तो सभी अच्छे सच्चे ईमानदार बन जाएंगे । भांग का नशा उतरेगा लेकिन दवा का असर साल से अधिक अवधि तक रहेगा ही रहेगा और उस के बाद अगली होली पर दूसरी खुराक पिलाई जा सकेगी ।  
 
बड़े साहब समझदार हैं उन्हें भलीभांति मालूम है कि खास कुछ लोगों और खुद अपने आप को ईमानदारी की दवा कदापि नहीं पिलानी है बाकी सभी को वफ़ादार और ईमानदार बनाना फायदे की बात है । साहब ने उस दवा को देश भर में जहां जहां उनकी महिमा का विस्तार था भिजवा दी ताकि सभी उनके समर्थक उनको मसीहा समझने वाले उनके ही बनकर जीवन सफल करने की धारणा बनाए रखें । असंख्य लोगों को दवा पिलाई गई जो भांग या नशा नहीं करते थे उनको भी साहब की सलामती की शपथ देकर पीने को मनवा लिया गया । 
 
चार दिन बाद परिणाम सामने था जिन्होंने दवा मिली भांग पी थी वो जब भी झूठ बेईमानी हेराफेरी घूसखोरी का कार्य करने लगते आस पास सभी को इक दुर्गंध का आभास होता और इक घबराहट बेचैनी भ्र्ष्टाचार अनुचित कार्य करने वाले को महसूस होने लगती । दवा बनाने वालों से इस पर सपष्टीकरण मांगा गया क्योंकि साहब को अपने आस पास हर किसी से दुर्गंध आने लगी थी । दवा बनाते समय ये उपाय किया गया था कि जिन्होंने दवा की ख़ुराक ली उनको रोग करीब आने की आहट इक सुगंधित खुशबू की तरह लगे लेकिन फिर से चपेट में आने का खतरा होने पर दुर्गंध का एहसास जहां तक हवा की पहुंच हो वहां तलक पता चल जाए ।
साहब को बताया गया कि ये तो खुद एक जांच की तरह है रिश्वतखोर चोर अनुचित कार्य करने वालों से दुर्गंध मिलते ही लोग समझ जाएंगे कि आदमी खराब है । निकलो न बेनकाब ज़माना ख़राब है ग़ज़ल की तरह है । साहब की समस्या ख़त्म नहीं हुई बढ़ गई है अब किसी पर भी भरोसा करना तो क्या अपना हुक़्म चलाना कठिन होने लगा है । जैसे साहब कोई काम करने को आदेश देते हैं गुलाम जी हज़ूर कहते हैं और उनका कमरा ही नहीं घर से मीलों दूर तक बदबू लोगों को परेशान करने लगती है जैसे उनके आलीशान भवन जैसे महल में दुनिया भर की गंदगी का ढेर पड़ा हुआ है । कालीन जिन को ढके छुपाए रहते थे सब को खबर हो रही है । 
 

होली पर स्वदेशी गीत : - 

सबको हमने फूल बनाया , फूल उगाना था बेकार 

( उल्लू - अप्रैल फूल )   

लाये हैं कांटों की बहार , इक हूं मैं दूजे मेरे यार । 

तुम हो सत्ता की कुर्सी , खाती वफ़ादारी की कसमें 

कौन चोर कौन साहूकार , कुछ मत पूछो मुझसे यार । 

दोनों लगा कर रंग बेशर्मी का , राजनीति की होली खेलें 

लोकलाज को छोड़ो भी अब , टीवी की नकली तकरार । 

मैं करता हर किसी से छेड़छाड़ , रोक सकेगा मुझे कौन 

डुबोकर सबको जाना पार है , मेरी जीत सभी की हार । 

जोड़ी क्या  खूब बनाई अपनी , तुम हो झूठी मैं मक्क़ार । 


 

मार्च 03, 2023

मुन्नाभाई को आदर्श बना लिया है ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

    मुन्नाभाई को आदर्श बना लिया है ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया 

दिल को  बहलाने को वक़्त बिताने को ग़म को छुपा कर मुस्कराने को खेल तमाशा देखना दिखलाना ठीक बात हो सकती है लेकिन जनता के दर्द को समस्याओं को सुलझाने की जगह दिखावा करने को तमाशा करना ज़ुल्म की इंतिहा है । सरकार का काम लोकतंत्र के शासन में खेल तमाशे करना नहीं ईमानदारी निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन करना होना चाहिए मगर अफ़सोस है सत्ता पर चयन होने निर्वाचित होने या नियुक्त होने पर जो शपथ उठाई जाती है निभाई नहीं जाती अन्यथा समस्याओं का समाधान होना असंभव नहीं था । भेड़चाल की तरह देश की सरकार से राज्य की सरकारों विभागों एवं अन्य संगठनों संस्थाओं ने मुन्नाभाई को आदर्श बना लिया है और रोगग्रस्त समाज को उपचार की जगह जादू की झप्पी से लेकर मरने से पहले आखिरी आरज़ू पूरी करने को अस्पताल में अर्धनग्न नर्तकी का नाच गाना करवाया जाता है और विडंबना देखिए दर्शक से फ़िल्मी भर्ती रोगी तक किसी की मौत पर तमाशा देख तालियां बजाते हैं । लेकिन राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी शायद भूल रहे हैं कि नाटक में किरदार वास्तव में नहीं मरता जबकि यहां आपकी व्यवस्था की बदहाली से लोग रोज़ बेमौत मरते हैं । जब कोई अधिकारी कानून व्यवस्था की नाकामी पर कोई आडंबर करता है जनता को दिखाने को समारोह की तरह आयोजित करता है विभाग को मुस्तैद करने का तमाशा शहर भर में मीडिया में दिखाने को तब अपराधी खलनायक की अट्ठास करते हैं और जिनको दर्द हुआ उनके ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का कार्य होता है । ऐसा कोई नेक दिल इंसान नहीं कर सकता और वही कर सकता है जिसका विवेक उसको रोकता नहीं गंभीर समस्या को उपहास बनाकर झंडी दिखा कर जुलूस की तरह परेड करवाने का खेल करने से ।  
 
शासक बनते ही भला चंगा आदमी कैसे बदल जाता है और कर्तव्य निभाना भुलाकर अपने पद का उपयोग अधिकारों की लाठी से बेहरम बन सामान्य नागरिक को डराने धमकाने और शोषण करने लगता है जबकि ख़ास वर्ग धनवान रसूखदार लोगों से दोस्ती निभाता है उनको मनमानी करने की आज़ादी देता है । देश क्या सच इस तरह से आज़ाद है कि कुछ मुट्ठी भर लोग मनमर्ज़ी कर सकते हैं बाक़ी जनता बेबस लाचार ज़ुल्म सहकर ज़ालिमों से गुहार लगाती है दया रहम की भीख याचक बन कर मांगती खड़ी उनके दरवाज़े पर । जनता से नेता अधिकारी ऐसे पेश आते हैं जैसे कोई मुजरिम बिना अपराध क्षमा की विनती करता है । जो नियम कानून देश की जनता की भलाई नहीं करते बल्कि उनका जीना मुश्किल करते हैं उनको बदला हटाया जाना चाहिए था लेकिन यहां हर शासक सत्ता मिलते ही और तानाशाही करने की खातिर अपनी साहूलियत से कानूनों को सख्त बनाता जनता पर थोपने को और शासक वर्ग धनवान सुविधा संपन्न लोगों से भाईचारा निभाते हुए उनके लिए हर कायदा कानून लचीला मुलायम और जब चाहे तोड़ने की राह बनाता है । 
 
कहीं पढ़ा था कुछ लोग रोमंच और आनंद महसूस करते हैं किसी को तड़पता रोता बिलखता देख कर जबकि कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनको ज़ुल्म सहने की आदत पड़ जाती है और समय गुज़रते उनको अपने दर्द से भी लगाव हो जाता है । आशिक़ी मुहब्बत की बात और है लेकिन न्यायपालिका कार्यपालिका निष्ठुर और असंवेदनशील हों तो समाज और इंसानियत पर खतरा मंडराने लगता है । डॉक्टर अगर मरीज़ की व्यथा सुनता नहीं तो रोग ठीक नहीं हो सकता और बढ़ता ही जाता है । 75 साल से देश की जनता ही नहीं बल्कि संविधान तक से यही होता रहा है । कुछ लोगों ने सत्ता धन और शोहरत ताकत हासिल करने के मकसद से संसद संविधान अन्य संस्थानों को असाध्य रोग का बीमार बना दिया है । लाशों पर खड़े होकर हंसने वाले क्या कहलाते हैं जानते हैं सभी । सबसे अधिक महत्वपूर्ण सवाल इक चिंता का विषय यही है कि फिल्म का मुन्नाभाई खुद को समाजसेवक समझता था जबकि था इक गुंडा मवाली जिस को हमने नायक समझ लिया । लेकिन भूल गए उसका अस्पताल फ़र्ज़ी था रोगी भी फ़र्ज़ी थे वास्तव में बीमार नहीं थे । जबकि यहां फ़र्ज़ी डॉक्टर की तरह खुद को देश समाज जनता का सेवक कहने वाले शासक असली समस्याओं को उपहास समझने लगे हैं । उनकी समस्या सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ ऐशो-आराम और शासकीय अधिकार शानदार राजसी जीवन की आकांक्षा ही है ।  
 
मुहब्बत ही न जो समझे वो ज़ालिम प्यार क्या जाने , 
 
किसी फ़िल्म में महबूबा पर लिखी ग़ज़ल मौजूदा समय के हालात में सरकार पर खरी लगती है । 
 
उसे तो क़त्ल करना और तड़पाना ही आता है  , गला किस का कटा क्योंकर कटा तलवार क्या जाने । 
 

 

फ़रवरी 21, 2023

भगवान का व्हाट्सएप्प नंबर ( अद्भुत-अविश्वसनीय ) डॉ लोक सेतिया

  भगवान का व्हाट्सएप्प नंबर ( अद्भुत-अविश्वसनीय ) डॉ लोक सेतिया 

     आखिर ऊपरवाले को सोशल मीडिया अकॉउंट बनवाना ही पड़ा , दुनिया बदल चुकी है साधु संत तक आधुनिक ढंग से पूजा ईबादत आरती से लेकर घर बैठे साक्षात दर्शन धार्मिक स्थल के ऑनलाइन करने करवाने लगे हैं ।  इधर सब नकली बाज़ार में बिकता है भगवान तक असली हैं इसकी पहचान मुश्किल हो गई है । काफी समय पहले मैंने खुद ईश्वर से विनती की थी आधुनिक संचार माध्यम का उपयोग कर अपनी बनाई दुनिया की असलियत वास्तविकता सच्चाई को देखने समझने की । इसलिए कि मुझ जैसे नासमझ लोग रोज़ सुबह फेसबुक मेसेंजर व्हाट्सएप्प पर धर्म की बातें देवी देवताओं की तस्वीरें और चौंकाने वाले आपको विवश करने वाले संदेश पढ़ पढ़ कर घबराने लगे हैं कि यहां सोशल मीडिया वाले भगवान को नाराज़ किया तो कुछ भी हो सकता है । बाक़ी चाहे जो भी हो जाए कोई चिंता नहीं मगर अगर कहीं सोशल मीडिया का अकॉउंट बंद कर दिया उस ने तब कैसे ज़िंदा रह सकते हैं । 
 
     ठीक से जांच परख लिया कि व्हाट्सएप्प पर असली भगवान से वार्तालाप हो रहा है तब जाकर उन से खुल कर अपने मन की बात कहनी पड़ी । मैंने पूछा भगवान दुनिया में करोड़ों करोड़ों लोग आपसे विनती करते हैं उनकी प्रार्थनाएं उनकी फ़रियाद पर जाने क्यों लगता है कि आप सुनवाई ही नहीं करते हैं । भगवान ने जो बताया बिल्कुल सच है इसलिए आपको सभी को उनकी कही बात बतानी आपकी भलाई में आवश्यक है । भगवान ने बताया जब कोई आदमी किसी भी आदमी के पास जाकर अपनी समस्या बताता है या सहायता मांगता है या फिर परेशान होकर हाथ जोड़कर विवशता पूर्वक निवेदन करता है कि आप धनवान बलवान और ताकतवर हैं मगर मैं कमज़ोर बेबस लाचार इंसान हूं कृपया मुझ पर रहम करें मुझे बिना अपराध सज़ा देना छोड़ दें और जीने दें चैन से । लेकिन अहंकार और अपनी दौलत शासकीय अधिकार शारीरिक ताकत के कारण वो उस का दर्द नहीं समझता और मनमानी करता है तब मुझे ऐसे लोगों को ब्लॉकलिस्ट करना पड़ता है । भला ऐसा कैसे संभव है पूछा तो कहने लगे साधारण सी बात है आपको कितने संदेश मिलते हैं लेकिन जिनको चाहते हैं उनको छोड़ बाकी को एक क्लिक से डिलीट कर देते हैं इतना ही नहीं जिनकी बात से आप सहमत नहीं जिनको पसंद नहीं करते उनको नाराज़ होकर ब्लॉक कर देते हैं ।  सोचते तक नहीं आप कौन हैं कोई नेता डॉक्टर या भाई बंधु हैं जिनकी ज़रूरत किसी को पढ़ सकती है कभी भी लेकिन आपकी सुविधा आपकी मनमानी उनको आपसे बात तक नहीं करने देती और वो व्यक्ति निराश बेबस होकर रह जाता है कुछ भी नहीं कर सकता है । विधि का यही विधान है जो दूसरों से जैसा व्यवहार करता है उसको उसकी करनी का वैसा ही फल मिलता है जब कोई मेरे बनाए इंसानों की बात अनसुनी करता है तब उस उस की बात मुझ तक नहीं पहुंचती जैसे आपने टीवी का फोन का म्यूट बटन दबाया होता है तब आवाज़ बंद हो जाती है ।
 
  भगवान से इस विषय का कोई संबंध तो रत्ती भर भी नहीं फिर भी उत्सुकतावश मैंने सवाल किया , भगवान क्या आपके संचालन में भी कोई साइट्स या ऐप्प्स हैं जो कभी ठीक काम नहीं करती कभी रुकावट की बात पर खेद जताती हैं । नहीं मैंने कभी अपने को मशीनों का गुलाम नहीं बनाया है अन्यथा सोचो अगर मैंने हवा पानी सूरज चांद रात दिन को उजाले-अंधेरे को शासकों सरकारों के हवाले कर दिया होता तो जनता को किस किस की क्या कीमत चुकानी पड़ती और कभी किसी कारण सरकारी साइट ऐप्प्स बंद हो जाती हो लोग कुछ ही पलों में बेमौत मर जाते । कभी अमिताभ बच्चन जी ने ब्लॉग पर सूचित किया था कि उनके पास ईश्वर का ईमेल है जिस पर संवाद किया करते हैं मगर उन्होंने बताया नहीं सबको क्योंकि सब उनके बराबर नहीं हो सकते हैं लेकिन मुझे कोई राज़ छुपाकर नहीं रखना है जिस को जब चाहिए मुझसे मिलकर नंबर मांग सकता है । थोड़ी ज़हमत उठानी पड़ती है कुछ पाने को बस इरादा कर कोशिश करने से क्या नहीं मिल सकता है ।  
 
व्हाट्सएप का नया फीचर, शेयर करे सभी फॉर्मेट की फाइल | Hari Bhoomi

फ़रवरी 18, 2023

राजनीति की लघुकथा ( हक़ीक़त भी अफ़साना भी ) डॉ लोक सेतिया

   राजनीति की लघुकथा ( हक़ीक़त भी अफ़साना भी ) डॉ लोक सेतिया 

   सरकार का संदेशा मिला है कितने साल हुए क्या किया पर जनता को संबोधित किया जाएगा । क्या हासिल होगा कोई नहीं जानता बस जनता को भरोसा दिलवाना है सरकार चल रही है । कितने दरवाज़े खोलने की बात होती है और अधिकांश ज़रूरत पड़ने पर पता चलता है आजकल बंद है  कुछ दिन बाद खुलेगा । सरकारी वेबसाईट ऐप्प खुद इक जाल है जो इंसान से इंसान को अलग कर मनमानी करता है लेकिन सरकार की साहूलियत है किसी सरकारी बाबू अधिकारी को जनता से बात कर परेशान नहीं होना पड़ता । सरकारी वेबसाईट पर लगाकर पिंड छुड़ाते हैं और दावा करते हैं आसानी होगी जबकि मुसीबत बढ़ती गई है । शायद कभी मंत्री अधिकारी नहीं कंप्यूटर साइट्स ऐप्स शासक बनकर काम का काम तमाम करेंगी । मशीन कभी संवेदना नहीं करती समझती और आजकल सरकारी लोग मशीन की तरह मानवीय संवेदनाओं से रहित हो गए हैं । मंदिर मस्जिद पूजा धर्म अनुष्ठान व्यर्थ हैं जब शासक बन कर अधिकारी नेता चुनाव से किसी पद पर बैठ कर जनता से उचित संवाद नहीं करते मनचाहे ढंग से जनता को रोज़ मुजरिम की तरह गुनहगार बनाकर खड़े करते हैं अनावश्यक नियम कानून से और फ़ायदा उठाने को जबकि बनाया जाता है राह आसान करने को ।   शासक बनते रोड़े बनकर परेशान करते हैं सामान्य नागरिक को और खुद जब जैसे मर्ज़ी करने को आज़ाद हैं ।  
    
     घटना कुछ दिन पहले की है जिनको चुनकर नगर का भाग्यविधाता बनाया था जनता ने बैठे थे किसी जगह अपना दुखड़ा सुना रहे थे । चलो थोड़ा पहेली बना कर आपको समझने या हल करने का कार्य करते हैं ताकि कुछ आनंद आप को आये और थोड़ा लुत्फ़ हम भी उठा सकेंगे । कहानी की रोचकता मज़ा देती है हम किरदार को भगवान और पुजारी एवं भक़्त का आवरण पहनाते हैं जैसे नाटक में रामलीला में किया जाता है । पुजारी जी के दफ़्तर गया था कि वहां साक्षात भगवान विराजमान थे । मेज़ पर मधुर मिष्ठान पड़ा था , नहीं मालूम भगवान को अर्पित किया था पुजारी जी ने अथवा स्वयं भगवान लाये थे पुजारी जी की खातिर , मगर मुझे क्या स्वादिष्ट मिष्ठान मिला खाकर धन्यवाद किया । 
 
    पुजारी जी कह रहे थे आपको बनाया जिन लोगों ने मालिक भाग्यविधाता सुना है दर दर भटक रहे हैं उनकी समस्याओं की सुनवाई नहीं होती है । भगवान के आधुनिक अवतार की आवाज़ में बेबसी दर्द छलक आया था , बोले आपको क्या बताएं लोग मुझसे मिलते ही नहीं । इधर उधर भटकते रहते हैं अन्य तमाम लोगों के पास जाकर समस्या बताते हैं जो समाधान नहीं करते उलझन बढ़ाते हैं । पुजारी जी कहने लगे आप सबको बतलाओ मुझसे मिलो अपनी समस्या की बात बताओ , भगवान खामोश हो गए फिर सोच कर बोले कोई तरीका बताओ कैसे सबको जानकारी मिले कि मैं चाहता हूं लोग सीधे मुझसे संवाद स्थापित करें । पुजारी जी ने अपने यूट्यूब चैनल पर उनका साक्षात्कार रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर जारी कर दिया ।   
 
  मुझे काम आन पड़ा तो ध्यान आया वो मुझ से दूर नहीं हैं और मैं उनसे बात कर उनसे मुलाक़ात करने उन्हीं के स्थल पर चला गया । चर्चा की परेशानी बताई तो जवाब मिला ये कोई कठिन समस्या ही नहीं है आप चिंतामुक्त होकर जाएं मेरा नियुक्त सहायक खुद आपकी समस्या सुलझवाने आपसे आकर मिलेगा । लेकिन समस्या का समाधान कब कौन करेगा अभी तक नहीं पता चला है । ऊपरवाले की शासन व्यवस्था इसी ढंग की है सबको दर्शन देते हैं हाथ उठाकर वरदान देने की तरह मगर उस के बाद क्या हुआ उनको फुर्सत नहीं मिलती क्योंकि खुद अपनी समस्याओं में फंसे हुए रहते हैं । भगवान भी मोह माया के जाल में उलझे हैं और उसके सभी  विभाग अधिकारी हर दिन उसकी महिमा का गुणगान करने से खाली ही होते , जनता की सुनवाई हो भी तो आखिर कैसे और समाधान करने की चाहत भी किस अधिकारी को है । जिसे देखो हर कोई अपनी उलझन में उलझा हुआ है । सरकार इसी को कहते हैं जो चलती रहती है किसी कोल्हू के बैल की तरह घूमती रहती है कहीं नहीं पहुंचती बस वहीं की वहीं रहती है । जनता को कोल्हू की ओखली में डालकर पीसते हैं उसका खून है जो पैसा बन कर अर्थव्यवस्था का संचालन कर रहा है । लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता की सेवा इसी ढंग से की जाती है । 
 
 कोल्हू के बैल के आंखों पर पट्टी क्यों बांधा जाता है और वह बिना हांके ही  कैसे चलता रहता है ? - Quora

जनवरी 29, 2023

दर्द भरी दास्तां ( अफ़साना ग़ज़ल का ) डॉ लोक सेतिया

       दर्द भरी दास्तां ( अफ़साना ग़ज़ल का ) डॉ लोक सेतिया 

ग़ज़ल की हालत देख कर आंसू निकल आए , इतने शानदार सभागार में मुशायरा आयोजित किया गया था , ग़ज़ल की उदासी देखी नहीं गई । देखा खड़ी थी अकेली इक कोने में अपने दर्द को अकेले सहती छुपती हुई , दुःख को छुपाती हुई । हाथ जोड़ निवेदन किया चलो आपकी जगह सामने सजे मंच पर है यहां नहीं आप को सुनने आये हैं हज़ारों चाहने वाले । ग़ज़ल कहने लगी ठीक से पढ़ो कहीं लिखा है मेरा नाम सब को किसी नाम वाले शायर को सुनना है देखो कितने शायरों के नाम उनकी तस्वीर लगी हैं बैनर पर ग़ज़ल की कोई तस्वीर कोई नाम होता नहीं है एहसास हुआ करते हैं । ग़ज़ल की बात कोई नहीं करता इन दिनों कुछ लोग जिनकी शोहरत है उनकी बात होती है मेरे अपने हैं लेकिन मुझसे अनजान हो गये हैं नाम शोहरत पहचान दौलत मिली तब से बेगाने बन गए हैं । ग़ज़ल ने अपनी दर्द भरी दास्तां मुझे सुनाई शायद किसी और को ग़ज़ल को क्या हुआ क्या क्यों हो रहा उसको घायल किया जा रहा कि क़त्ल किया जाने लगा है समझने की फुर्सत नहीं थी । तालियां बजती रहीं वाह वाह लोग कहते रहे और शायर लोग ग़ज़ल से बढ़कर जाने क्या क्या करते रहे । अब उसकी हिक़ायत खुद ग़ज़ल की ख़ामोश लबों की ज़ुबानी लिखी नहीं कही है उसने समझना चाहो तो समझना पढ़कर भूल मत जाना । 
 
महफ़िल में मुझे टुकड़े टुकड़े कर हिस्सों में बांटकर सुनाने वाले क्या मेरे आशिक़ हैं कोई शेर किसी ग़ज़ल का कोई मतला कोई बीच का भाग जैसे किसी महबूबा माशूका के मुखड़े जिस्म के अंगों की नुमाईश बाजार में कोई करे ।  ग़ज़ल आधी-अधूरी क्या मुकम्मल अच्छी नहीं लगती जैसे होंट आंखें कमर छाती हाथ पांव सब मिलाकर उसकी शख़्सियत की बात नहीं करते जिस्म को देखते हैं रूह से वाकिफ़ नहीं जो लोग । कोई किसी आयोजक को मुख़ातिब होकर पढ़ता है कोई अपनी किसी बात से जोड़ता है । ग़ज़लियत की ग़ज़ल की नफ़ासत की नाज़ुकी की ईशारों की मुहावरेदार भाषा की स्वभाव की बात को दरकिनार कर पथरीली आवाज़ में किसी जंग किसी नफरत की राजनीति से धर्म की चर्चा होती है जबकि ग़ज़ल का इस सब से कोई भी सरोकार कोई रिश्ता नहीं होता है । शासक राजनेता अधिकारी वर्ग संवेदना शून्य लोग मानवीय दुःख दर्द से जिनका कोई नाता नहीं मंच से शायरी करते हुए शायर और उसके अल्फ़ाज़ को बेरहमी से क़त्ल करते हैं । भला मेरा उनसे कोई संबंध मुमकिन है ग़ज़ल सच का आईना है सोने चांदी के गहनों से झूठ को सजाकर कुछ हासिल नहीं हो सकता हैं । अब न तो ग़ज़ल कहने का शऊर है शायरों में और न सुनने वालों में सुनने का सलीका और कोई पैग़ाम भी नहीं देती आधुनिक युग की रास्ता भटकी ग़ज़ल नाम की रचनाएं । 
 
ग़ज़ल किसी को बड़ा छोटा नहीं समझती और न किसी की महिमा का गुणगान करती है न ही किसी से टकराव करना जानती है ।  ग़ज़ल प्यार मुहब्बत इंसानियत का संदेश देती है उसको किसी सरहद की दिवारों में कैद करना मुमकिन ही नहीं है । ग़ज़ल ने इक सवाल पूछा है दुनिया भर में ग़ज़ल की महफ़िल सजाने वालों से कि वहां ग़ज़ल सुनने कहने पढ़ने कौन आते हैं और कौन किसी नाम वाले शायर को सुनने आते हैं । अगर ग़ज़ल की बात है ग़ज़ल से इश्क़ है तो बस ग़ज़ल का ज़िक्र हो बाक़ी सब को छोड़कर । ग़ज़ल कहने वालो मुझे अल्फ़ाज़ से बहर में छंद का ख़्याल रखते हुए बयां करना सीख लिया और मधुर स्वर में गाकर सुनने वालों को मुग्ध कर लिया लेकिन तौर तरीका अंदाज़ मेरे साथ मेल खाता नहीं तो बनाव श्रृंगार किस काम का । कवि सम्मेलन मुशायरे शोर लगते हैं ग़ज़ल से जो सुकून मिलता है वो नहीं दिखाई देता है । जो सुनकर लोग भीतर अंतर्मन तक महसूस कर स्तब्ध नहीं हो जाएं और ताली बजाना वाह वाह करना भूल खामोश रह जाएं वो लाजवाब ग़ज़ल सुनाई नहीं देती जो सभा से उठकर घर जाने पर भी ज़हन में गूंजती रहती हो ।  
 

 आखिर में मेरी डॉ लोक सेतिया 'तनहा' की इक ग़ज़ल पेश है  :-

दिल पे अपने लिख दी हमने तेरे नाम ग़ज़ल
जब नहीं आते हो आ जाती हर शाम ग़ज़ल ।

वो सुनाने का सलीका वो सुनने का शऊर
कुछ नहीं बाकी रहा बस तेरा नाम ग़ज़ल ।

वो ज़माना लोग वैसे आते नज़र नहीं
जब दिया करती थी हर दिन इक पैगाम ग़ज़ल ।

आंसुओं का एक दरिया आता नज़र मुझे
अब कहूँ कैसे इसे मैं बस इक आम ग़ज़ल ।

बात किसके दिल की , किसने किसके नाम कही
रह गयी बन कर जो अब बस इक गुमनाम ग़ज़ल ।

जामो - मीना से मुझे लेना कुछ काम  नहीं
आज मुझको तुम पिला दो बस इक जाम ग़ज़ल । 
 

 

जनवरी 23, 2023

दुनिया बनाने वाला हैरान परेशान ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     दुनिया बनाने वाला हैरान परेशान ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

कुछ बात ऐसी हुई कि ऊपरवाला खुद अपने निवास स्थान को छोड़ नीचे धरती पर चला आया । सोचा था शायद वहीं चैन सुकून मिला तो वापस आसमानों की तरफ भूले से भी देखना नहीं । धरती पर आकर देखा तो दुनिया बदल चुकी थी जैसी उसने बनाई और जिस भविष्य की कल्पना कर धारणा बनाकर छोड़ दिया था दुनिया को खूबसूरत से भी बढ़कर शानदार सभी के जीने ख़ुशी से रहने को तमाम चीज़ें उपलब्ध करवा कर उसका कोई वजूद ही नहीं था । उसने कभी ऐसी दुनिया बनाने की चाहत नहीं की थी ये कोई और किसी शैतान की बनाई दुनिया लगती है । घूमते फिरते अजनबी लोगों से पूछता रहा ये कौन सी दुनिया है किस ने बनाया है ये सब तबाही का मंज़र दिखाई देता है कोई भी यहां जितना भी हासिल है उस को पाकर संतुष्ट नहीं है । चलते चलते कितने बड़े बड़े महल जैसे मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरजाघर कितने धर्मों के धार्मिक स्थल नज़र आये काफी तहकिक़ात के बाद पता चला ईश्वर अल्लाह जीसस वाहेगुरु रहते हैं उन जगहों पर । देवी देवता पीर पय्यमबर फ़रिश्ते मसीहा संत साधु उपदेशक असंख्य नाम वाले गली गली शहर शहर बस्ती बस्ती गांव गांव विराजमान हैं जिनकी आराधना पूजा ईबादत आरती महिमा का गुणगान होता है । धन दौलत चढ़ावा तरह तरह के व्यंजन उनको भोग लगाए जाते हैं हीरे जवाहरात सोना चांदी के ज़ेवरात पहनाए जाते हैं । खुदा को अल्लाह को बंदे मनाए जाते हैं किस बात से खफ़ा हुआ दुनिया का मालिक कोई नहीं जानता भजन आरती अरदास क्या क्या नहीं जिस को रोज़ सुबह शाम दोहराए जाते हैं । इक पहेली है विधाता ईश्वर ख़ुदा कितने नाम हैं सभी सुलझाने की बात नहीं करते उलझन को बढ़ाए जाते हैं । इक दुनिया बनाने वाले के अनगिनत तस्वीरें बुत क्या क्या नहीं बनाकर बाज़ार में सिक्का जमाए मुनाफ़ा कमाए कारोबार चलाए जाते हैं ।  किसी कंपनी की तरह शाखाएं खोलते जाते हैं ख़रीददार को जो मांगोगे मिलेगा की तरह झांसा देकर उल्लू बनाए जाते हैं । 
 
आखिर उपरवाले को एहसास हुआ कि दुनिया को बनाकर उसे अपने हाल पर छोड़ आज़ादी से सबको मनमानी करने की छूट देना बड़ी गलती थी और उसको खुद हर दिन पल पल संभालना भी उसका दायित्व था । कुछ सहायकों को देखभाल करने को नियुक्त करने से सब सुचारु ढंग से नहीं चल सकता था । बहुत सोचने चिंतन करने के बाद विधाता ने निर्णय लिया जब तक तमाम समस्याओं को समझ नहीं लेते और समाधान नहीं खोज लेते उस आकाशलोक में नहीं लौटना है । बहुत दिन से दुनिया का मालिक फुटपाथ पर रह रहा है । उधर ऊपर जब मालिक बहुत समय तक दिखाई नहीं दिए तो उस लोक में सबको चिंता होने लगी ढूंढते ढूंढते थक गये सभी तब राज़ खुला किसी ने कटाक्ष किया था मालूम भी है जिस दुनिया को बनाया था किस हाल में है । भारत देश के लोकतंत्र की तरह सिंघासन पर विराजमान शासक अधिकारी सोचते हैं सब बढ़िया है शानदार है क्योंकि सरकारी आंकड़े योजनाएं सभी दिखलाते हैं चारों तरफ हरियाली है फूल ही फूल खिले हैं । भूख गरीबी बदहाली अन्याय अपराध भेदभाव जनता की समस्याएं कब की मिटाई जा चुकी हैं उन फाईलों को दीमक चाट गई है और अधिकारी कर्मचारी सरकारी अनाज के गोदामों को पेट भरकर खाते खाते मस्ती में झूमते रहते हैं । देश का सारा धन दौलत साधन पांच फ़ीसदी अमीरों का  है बाकी को कुछ नहीं मिला और उनको समझाया गया है कि ये उनकी फूटी किस्मत है बदनसीबी है । सरकार समाज का कोई दोष नहीं है दुनिया बनाने वाले ने सबको एक समान देने का प्रावधान नहीं किया है तभी जिसकी लाठी उसकी भैंस का शासन कायम है । मुश्किल अजीब है ऊपरवाला अपनी बनाई दुनिया को  देख कर दंग है और जिनको बनाया था वो बंदे उसको पहचानते नहीं मानते ही नहीं खुद ईश्वर धरती पर आया है अपने आप बगैर किसी कर्मकांड आयोजन किये ।  

उपरवाले को खोजते खोजते उस लोक वासी धरती पर पहुंचे और बदली दुनिया के हालात उसके आधुनिक अंदाज़ को देख समझ कर विधाता को मनाने लगे ज़िद छोड़ अपनी आसमानी दुनिया को लौट चलें । बस अब बहुत देर कर दी तुमने दुनिया को बनाकर सुध बुध नहीं ली अब सब ने अपने अपने भगवान खुदा देवी देवता बना लिए हैं । दुनिया  को उनके खुद के बनाये नकली भगवानों के रहमो करम पर छोड़ कोई और नई असली दुनिया बनाओ  ये सब मानते भी हैं कि असली दुनिया कहीं कोई और है । लेकिन ऊपरवाला नहीं माना उस से अब कोई नई दुनिया बन ही नहीं सकती अपनी गलती की सज़ा झेलनी पड़ेगी उसको फुटपाथ पर रहना होगा प्रायश्चित करने को ।  टीवी पर देखा कोई फ़िल्मी अदाकारा को आरती कर रहे थे कोई किसी शातिर अपराधी को मन की बात समझने वाला समझ उसके पांव पकड़े थे कोई किसी राजनेता की तस्वीर के सामने सर झुकाए खड़े थे , कितने लोग अपना भगवान खुदा कितनी बार बदल रहे थे । दुनिया असली कैसे रहती जब दुनिया वालों ने अपनी पसंद से साहूलियत को देख ईश्वर नकली बनाकर उनकी भक्ति शुरू कर दी है ।



जनवरी 20, 2023

पानी का सफ़र ज़िंदगी भर ( चलते-चलते ) डॉ लोक सेतिया 

     पानी का सफ़र ज़िंदगी भर ( चलते-चलते ) डॉ लोक सेतिया  

   न जाने किसकी कही बात पढ़कर अपनी ज़िंदगी के सफर को बयां करने को शब्द मिले शीर्षक की तलाश थी पूरी हुई । अब क्या लिखना सोचने की ज़रूरत नहीं है लेकिन आसान भी नहीं जीवन की कड़ियों-लड़ियों को तरीके से जोड़ना सिलसिलेवार शुरआत से अभी तलक जारी सफर तक । इक बहता हुआ पानी जिसे खुद अपने उद्गमस्थल  का पता नहीं किधर जाना कब तक कहां तक चलते रहना कोई खबर नहीं । कहीं किसी ने शब्द लिखे हुए थे , पत्थरों पर पानी के निशां रहते हैं मगर पानी पर कोई निशां पत्थरों का नहीं रहता है । पत्थर ही पत्थर मिलते रहे नसीब से कोई रास्ते में रुकावट बनकर कभी कोई किसी ने हाथ से उछाल कर फैंका मुझे आहत करने को । राह के रोड़े पत्थर से टकराता बचता राह बनाता बढ़ता गया और जितने भी जिस जिस ने मेरे भीतर हलचल पैदा करने को फैंके पत्थरों को अपने भीतर संजोता गया उछालने वालों पर कुछ फुहार की तरह छींटे देकर भिगोता हुआ । कोई किनारा किसी नदी की तरह मुझे नहीं मिला बांध कर रखने को मेरी फितरत आज़ाद सफर जिधर मर्ज़ी चलते रहने की बनी रही । अभिलाषा है किसी रेगिस्तान में मरु उद्यान बनकर कुछ फूल कुछ पेड़ पौधे कुछ पंछियों पशुओं राह चलते गुज़रते आते जाते मुसाफिरों की प्यास बुझाने को उपयोगी बन कर रहने की । 
 
     मैंने पहले बताया था मैं इक पौधा हूं जो उग आया किसी तपते रेगिस्तान में जैसा लगता है जिस को कितनी बार कुचला गया पैरों तले कभी आंधियों तूफानों ने बर्बाद किया कभी जानवर खाते उजाड़ते रहे । मैं जाने क्यों और कैसे दोबारा उग जाता रहा भले बौना रहा कद मेरा और फ़लदार नहीं बन पाया हालात की सौग़ात के कारण । मैं प्यासा हूं खुद पानी होकर भी अपनी नियति पर हैरान भी हूं , मेरा कोई ठिकाना नहीं मेरा घर है जिस में दुनिया बसती है कितने अपने पराये रहते हैं बस अनचाहा महमान भी मैं ही हूं । बहता पानी बनकर अपने निशां सभी पर छोड़े हैं ऊबड़ खाबड़ पत्थरों को सलीके से तराशा है उनकी शक़्ल को कितना नर्म मुलायम बना दिया है । कभी कभी तो कोई पत्थर कीमती बन कर ऊंचे आलीशान भवनों की शान बन गया या किसी महल की गुंबद होकर खुद पर इतराने लगा है । पत्थर को देवता भगवान बनाया मैंने अपने हाथ से तराशकर और वही मुझ से मेरी निशानी मांगते हैं जब मैं उनको नहलाने को लाया जाता हूं पावनता की कसौटी पर जांचा परखा जाता हूं । कितने नामों से जाना जाता हूं लेकिन इन्हीं सब बातों में वास्तविक अस्तित्व को खो जाता हूं । 
 
   इक हरियाणवी लोक कथा की बात याद आई पानी और प्यास को लेकर । अपने खेत पर कुंवे पर पानी की गागर भरती पणिहारिन से राह चलते चार राही पानी पिलाने की बात कहते हैं तो पणिहारिन पहले अपना परिचय बताओ तभी पिला सकती हूं अजनबी अनजान लोगों बात नहीं करती । पहला व्यक्ति जवाब देता है कि हम मुसाफ़िर हैं , पणिहारिन बोलती है कि मुसाफिर तो दो ही हैं सूरज और चांद तुम कैसे मुसाफिर कहला सकते हो । तब दूसरा व्यक्ति जवाब देता है कि हम प्यासे हैं , पणिहारिन बोलती है कि दुनिया में प्यासे तो दो ही हैं एक चातक पंछी और दूसरी धरती माता तुम प्यासे कैसे कहला सकते हो । तब तीसरा व्यक्ति जवाब देता है कि हम तो बेबस हैं ,  पणिहारिन बोलती है कि तुम बेबस कैसे कहला सकते हो बेबस तो दो हैं दुनिया में इक गाय और दूसरी कन्या । ऐसे में चौथा व्यक्ति कहता है कि हम तो मूर्ख हैं , तब पणिहारिन बोलती है कि मूर्ख तो दो होते हैं जगत में इस का जवाब कहानी के आखिर में देती है पणिहारिन न्यायधीश को । पानी को लेकर बहुत कुछ समझाया गया है फिर भी समझना बहुत बाक़ी है ।  तू पी - तू पी राजस्थानी लोक कथा है तो इक नीति कथा धरती का रस भी है मगर हम पानी पानी रटते हैं प्यास कैसे बुझेगी बिना पिये पानी । धरती समंदर पर पानी ही पानी है फिर भी पीने को पानी काफ़ी नहीं खारा और खराब प्रदूषित पानी बेकार है । कभी आंख का शर्म का पानी हुआ करता था इंसानों में सबसे मूलयवान आजकल ढूंढने से दिखाई नहीं देता । ज़िंदगी भर जारी रहता है जो सफर उस में पानी की अहमियत बहुत है । पानी और प्यास का रिश्ता क्या है कोई समझ नहीं सका अभी भी , ये किस की बात है कौन जाने ।