अक्तूबर 05, 2024

POST : 1903 आईने के सामने : पीत पत्रकारिता ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

   आईने के सामने : पीत पत्रकारिता ( आलेख )  डॉ लोक सेतिया

अब इस पर कभी कोई चर्चा ही नहीं होती , क्या पीत पत्रकारिता अब कोई समस्या नहीं रही या फिर इसको स्वीकार कर लिया गया है । जैसे कई साल पहले मलेरिया रोग को लेकर स्वस्थ्य विभाग ने दीवारों पर लिखवा दिया था मच्छर रहेंगे मलेरिया नहीं । डीडीटी का छिड़काव करवा विभाग चैन की नींद सोया रहा मगर मच्छरों ने उस संदेश को पढ़ा नहीं अनदेखा किया नतीजा यह हुआ कि मलेरिया और भी खतरनाक ढंग से वापस सामने खड़ा था जानलेवा बनकर । हमने भी पीत पत्रकारिता को लेकर आंखें मूंद ली हैं आशंका है कि किसी दिन ये भी इतना गंभीर रूप धारण कर ले कि पत्रकारिता के घर को बचाना मुश्किल हो जाये । जिनको इसका अर्थ नहीं मालूम उनको जानना होगा कि खबरें सही मकसद को छोड़ कर किसी अन्य कारण से छापना आर्थिक लाभ या अन्य किसी स्वार्थ की खातिर या किसी को खुश करने या परेशान करने के मकसद से करना पीत पत्रकारिता कहलाता है जैसे कोई अपराध किया जाये । खबरों को तोड़ मरोड़ कर अथवा झूठ को सच बना कर पेश करना भी शामिल है इस में ही । पत्रकारिता के पतन को लेकर अख़बार पत्रिका टीवी चैनल से सोशल मीडिया तक ख़ामोशी है , ये तो होता ही है ऐसा होना ही था इक दिन आखिर कब तक ज़माने भर का भलाई ईमानदारी का बोझ अकेले ढोते रहते , दुनिया जैसी ये भी वैसे बनते गए । 
 
अखबार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आम लोगों से लेकर प्रशासन सरकार राजनेताओं तक सभी को नैतिक मूल्यों ईमानदारी का सबक भले पढ़ाते रहते हैं खुद अपने लिए कोई सीमा स्वीकार नहीं करते और जब कोई उन पर सवाल खड़े करता है तो अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में कहकर शोर करने लगते हैं । अजीब पैमाना है दुनिया की गलतियां सामने लाने का अधिकार है जब अपनी कमियां देखने की बारी आये तो कहते हैं हम खुद निर्धारित करेंगे क्या करना है । आरोप आप पर गवाही खुद आप की न्यायधीश भी खुद निर्णय क्या होगा भला ऐसा कहीं मुमकिन है निष्पक्षता से बताना । दो तरह के बाट नहीं हो सकते न्याय के तराज़ू पर पलड़े बराबर रखने को ये ज़रूरी है नैतिकता सभी पर लागू होनी चाहिए । अब अख़बार टेलीविज़न के अलावा सोशल मीडिया भी शामिल हो गया है बिना किसी मापदंड किसी अंकुश किसी मर्यादा के नागरिक को सूचना देने की आड़ में गुमराह करने का कार्य कर रहे हैं । यूट्यूब चैनल पर शीर्षक कुछ अंदर बात किसी विषय पर जैसा धोखा अक्सर देखते हैं संख्या बढ़ाने को झूठ का सहारा पागलपन है आत्मचिंतन करना छोड़ दिया है सभी ने लगता है । मीडिया का दुरूपयोग किया जाने लगा है किसी राजनीतिक दल का समर्थक बन कर उनका प्रचार या बचाव करने में भौंपू की तरह काम करना पत्रकारिता को रसातल में ले जाना है ।
 
सरकारी विज्ञापनों के मोहजाल में ये सभी कठपुतली बनकर किसी से धनलाभ या कोई अन्य सुविधा या कोई अनुकंपा पाने की खातिर नैतिक मूल्यों को ताक पर रख नतमस्तक हैं । विज्ञापन से लोग दर्शक प्रभावित हो कर छल कपट ठगी का शिकार हों या असली समझ नकली खरीद रहे हों क्या आपका कोई कर्तव्य नहीं है कि भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापन नहीं प्रकाशित करें जनहित को देखते हुए । टीआरपी और विज्ञापन का मोह आपको कितना नीचे ला सकता है क्या पैसा ही आपका भगवान है । अख़बार टेलीविज़न खुद अपने लिए विचारों की अभिवक्ति की स्वतंत्रता चाहते हैं लेकिन अपनी आलोचना पर तिलमिला उठते हैं बल्कि अपना बचाव नकारात्मक ढंग से करते दिखाई देते हैं अपनी गलती स्वीकार करना मंज़ूर नहीं उनको । किसी अख़बार पत्रिका का ऐसे विज्ञापन को किसी अलग ढंग से छापना या टीवी पर दिखाना जो प्रतिंबधित हो शराब जुआ जैसी सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा देता हो कितना अनुचित है । 
 
 पत्रकारिता में सभी विचारों की बात इक समान होनी चाहिए किसी तरफ इकतरफ़ा झुकाव उचित नहीं होता है । बदले की भावना से पत्रकारिता का उपयोग करना तो बेहद आपत्तिजनक है मूल्यहीन पत्रकारिता जैसे किसी बंदर के हाथ उस्तरा होना है कभी खुद भी घायल हो सकते हैं समाज को दहशत में डराना धमकाना क्या सभ्य समाज में होने दिया जा सकता है । बाज़ार में बिकना ही सफलता समझना और जो भी बिकता है उसे बेचना परोसना किसी अन्य कारोबार में हो सकता है पत्रकारिता में कदापि नहीं । जागरूक करना समाज को सही दिशा दिखलाना आपका पहला मकसद होना चाहिए न कि नंगापन बिकता है तो उसे बेचना । कभी पत्रकारिता ने बहुत सार्थक योगदान दिया है देश की आज़ादी की लड़ाई से लेकर बाद में राजनीति के पतन और सत्ता की मनमानी पर अंकुश लगाने में जिस से भटक कर सत्ता की चाटुकारिता और महिमामंडन करने लगे हैं । कहां से चले थे कितने महान आदर्शों को लेकर और आज किस जगह खड़े हैं चिंतन नहीं चिंता का विषय है गंभीर दशा लगती है । सामाजिक सरोकार जनहित देश कल्याण की अनदेखी कर जो पत्रकारिता होती है वो जिस डाल पर बैठे उसी को काटना है । आज आवश्यकता है स्वच्छ पत्रकरिता के मूल्यों को पुन: स्थापित करने के लिए किसी भगीरथ प्रयास की ।  आखिर में इक पुरानी ग़ज़ल पेश है ।  
 
 

इक आईना उनको भी हम दे आये ( ग़ज़ल )

 डॉ लोक सेतिया "तनहा"

इक आईना उनको भी हम दे आये
हम लोगों की जो तस्वीर बनाते हैं ।
 
बदकिस्मत होते हैं हकीकत में वो लोग
कहते हैं जो हम तकदीर बनाते हैं ।

सबसे बड़े मुफलिस होते हैं लोग वही
ईमान बेच कर जो जागीर बनाते हैं ।

देख तो लेते हैं लेकिन अंधों की तरह
इक तिनके को वो शमशीर बनाते हैं ।

कातिल भी हो जाये बरी , वो इस खातिर
बढ़कर एक से एक नज़ीर बनाते हैं ।
मुफ्त हुए बदनाम वो कैसो लैला भी
रांझे फिर हर मोड़ पे हीर बनाते हैं । 
 

 

POST : 1902 सच नहीं दिखाता आईना ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        सच नहीं दिखाता आईना ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

टीवी चैनल अख़बार सोशल मीडिया सभी खुद को सच का झंडाबरदार और समाज का दर्पण बताते हैं हक़ीक़त ये है कि ये सच से डरते हैं घबराते हैं झूठ का शोर मचाते हैं क़ातिल को मसीहा बनाते हैं । आपको इक ऐसी दुनिया दिखाते हैं कि देख कर आप खुद अपनी सूरत भूल जाते हैं उनकी बनाई भूल भुलैयां में आप जाने कहां गुम हो जाते हैं । कल्पनालोक की ऐसी दुनिया आपको नज़र आती है जिस में हर तरफ बड़े बड़े महल रंगीनियां शानदार वातावरण कारें हवाई जहाज़ आलीशान मॉल सभी सुरक्षा बढ़िया स्कूल अस्पताल बहुमंज़िला इमारतें बाज़ार की रौनक चहल पहल देख कर आप अपनी सच्चाई भूल कर ख़ुशी से झूमने गाने लगते हैं । आपको जानते भी नहीं पहचानते भी नहीं मीडिया वाले आपको अपने लगते हैं जो लोग आपके होते हैं बेगाने लगते है आपको हक़ीक़त सभी झूठे अफ़साने लगते हैं । बर्बाद बदहाल होकर भी आप सारे जहां से अच्छा गाने लगते हैं अपनी वास्तविकता से नज़रें चुराने लगते हैं । आपको कभी वास्तविक समाज की कोई खबर मिलती है पढ़ने को जिस में किसी घटना का ज़िक्र होता है कि गरीबी भूख बेबसी से तंग आकर एक वक़्त की रोटी पेट भरने को किसी ने मात्र थोड़ी हल्दी मुट्ठी भर चावल के बदले अपनी संतान को बेच दिया । हमको महत्वपूर्ण नहीं लगती ऐसी खबर हम जानकर उस को समझना क्या जानना तक नहीं चाहते और ब्रेकिंग न्यूज़ में खो जाते हैं जिस में करोड़ों रूपये की काली कमाई हिंसा लूट की खबर से किसी ज़ालिम को बड़ा दिखाया जाता है जुर्म करने को किसी का शौक साबित किया जाता है साधरण आदमी को भेड़ बकरी समझ चलाया जाता है । 
 
तथकथित इस समाज के दर्पण में वो समाज कभी दिखाई नहीं देता जो जनसंख्या का बड़ा भाग है जिसे ज़िंदा रहने की खातिर पल पल मरना पड़ता है । उसकी बात सरकार तो क्या भगवान भी सुनता नहीं कभी चाहे कितनी आहें कितने अश्क़ बहाता रहता हो उसकी प्रार्थना का कोई असर नहीं होता मगर ख़ास बड़े लोगों की कोई ईश्वर भी शीघ्र ही सुनता है और प्रशासन न्यायपालिका भी हमेशा तैयार है । कौन हैं ऐसी दुनिया का विधान बनाने वाला जिस में कोई भाई गोरा है कोई काला , अजब है जिस का घोटाला गरीबों का नहीं कहीं भी कोई रखवाला । अमीर गरीब की बढ़ती जाती है खाई इंसान को डराने लगी खुद की परछाई , कहते हैं जिनको देश से प्यार है जनता की भलाई करते हैं खुद शाहंशाह की तरह जीवन बिताते हैं जनता के पैसे से भाषण देते हैं बड़ा उपकार करते हैं । टीवी फिल्म सोशल मीडिया सभी उच्च वर्ग की बातें करते हैं अधिकांश जनता की ज़िंदगी की कहानी कोई लेखक भी आजकल नहीं लिखता है जैसे उनका वजूद उनका अस्तित्व तक दिखाई नहीं देता है । 
 
शरीफ़ नहीं ईमानदार नहीं मूर्ख और ज़ाहिल कहलाते हैं वो सभी जो वक़्त की इस दौड़ में तेज़ी से नहीं चल पाए खुद को ज़माने की तरह नहीं बदल पाए । दुत्कारते हैं धनवान और ख़ास लोग उनको जिनके जिस्म पर फ़टे पुराने कपड़े हैं भूख से जिनका बदन हड्डी का कंकाल लगता है रात दिन मेहनत कर भी जिनको बदले में उचित मज़दूरी नहीं मिलती फटकार मिलती है ले लो जितना देते हैं अधिकार भी भीख की तरह मिलते हैं । शिक्षा स्कूल कॉलेज उनके लिए नहीं हैं उनके लिए फुटपाथ तक सोने की जगह नहीं है वो किसी और दुनिया में चले जाएं लगता है मगर कहां विश्व में उनकी ज़रूरत किसी को नहीं है । करोड़ों अरबों जिनकी तिजोरियों में बंद है उनको क्या मतलब कोई जिये चाहे ख़ुदकुशी करने को विवश हो जाये इस असमानता ही से परेशान हो कर । लेकिन शोर हैं सभी देशवासी इक समान हैं कैसे कोई दाता कोई भिखारी ये बंटवारा कितना अनुचित है कभी कोई चर्चा नहीं कोई चिंतन नहीं तो बदलेगा कैसे कुछ भी । सावन के अंधे बनकर हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही है बताओ और खुद को संविधान का रक्षक कहलाओ । अपने को समाज का आईना घोषित करने वाला उसी बीस तीस प्रतिशत समाज का हिस्सा है जिसे सच नहीं दिखाने और झूठ को सच साबित करने का ईनाम मिलता है कुछ सिक्के झोली फैली हुई भरने को मिल रहे हैं । 
 
जो कभी इक रौशनी करता था उस ने अंधकार से अनुबंध कर लिया है और अंधियारी काली रात को दिन है बतला रहा है । नकली चकाचौंध से प्रभावित होकर समाज में धुंवा फैला रहा है बैसाखियों के सहारे चलता हुआ आगे बढ़ता जा रहा है खुद अपने आप को महान घोषित कर इतरा रहा है । कभी कभी उसे शायद अपराधबोध होता है तब महंगाई और गरीबी के भूख से मरने वालों के आंकड़े समझा कर सच कहने की रस्म निभा रहा है । कहते हैं जो खुद बिक गया हो वो ख़रीदार नहीं हो सकता लेकिन ग़ज़ब ढा रहा है ज़मीर बेचने वाला शान शौकत बढ़ा खुद अपना भाव ऊंचा करने को बाज़ार सजा रहा है । जिनकी आंखों में आंसू ही आंसू हैं दिखाई देता आईने में लोग मुस्कुरा रहे हैं पार्क में कुछ लोग ठहाके लगा रहे हैं ।  बात रोने की फिर भी हंसा जाता है यूं भी हालात से समझौता किया जाता है । 
 
 
Aaina Such Nahi Bolta - Hindi: आइना सच नहीं बोलता by Matrubharti Vividh |  Goodreads
 
 

अक्तूबर 04, 2024

POST: 1901 निष्पक्षता का नितांत अभाव ( मीडिया- आंकलन ) डॉ लोक सेतिया

निष्पक्षता का नितांत अभाव ( मीडिया- आंकलन ) डॉ लोक सेतिया 

कभी अख़बार टेलीविज़न संचार माध्यम को लेकर विमर्श होता था बहस चिंता जताते थे कि पत्रकारिता में नैतिक आदर्श ख़त्म होते जा रहे हैं और पीत पत्रकारिता से लेकर अख़बार टीवी का उपयोग कुछ साधन संपन्न वर्ग द्वारा किया जाने लगा है । टीआरपी और विज्ञापनों का मोहजाल इस कदर हावी हो गया है कि लोग जो जागरूकता और सामाजिक सरोकार को लेकर आये थे भटक कर नाम शोहरत दौलत पुरुस्कार की दौड़ में अपना अस्तित्व अपनी पहचान खो बैठे हैं । इन सभी पर पहले बहुत पोस्ट लिखी हैं अख़बारों को भी भेजने का साहस किया है लेकिन आज वातावरण काफ़ी बदल चुका है और मीडिया में टीवी अख़बार सोशल साइट्स के अलावा यूट्यूब चैनल से इंटरनेट पर उपलब्ध पत्रिकाओं की इतनी भीड़ है कि आप उलझ जाते हैं । आज उनकी वास्तविकता पर चर्चा करते हैं , जब अधिकांश मीडिया बिक कर किसी की एकतरफ़ा जीहज़ूरी करने लगा तब पाठक दर्शक का मोहभंग होने लगा और उनको हर बात मनघड़ंत और झूठी लगने लगी । लेकिन टीवी चैनल और अख़बार वालों को इस से कोई मतलब नहीं था उनको अपना अपमानित होना स्वीकार था अगर बदले में धन दौलत ही नहीं सत्ता और धनवान उद्योगपतियों का आशिर्वाद मिलता है तब । 
 
ऐसे में कुछ लोग अलग अलग ढंग से फेसबुक व्हात्सप्प यूट्यूब इंस्टाग्राम आदि पर संवाद करने लगे और कुछ नहीं बहुत लोग लोकप्रियता मिलने पर इनको ही अपना आश्रय व्यवसाय समझने लगे । इसको सोशल मीडिया नाम से जाना जाता है , मैंने बहुत समय तक ऐसे तमाम लोगों की भाषा उनकी शैली उनका सामाजिक विषयों को लेकर सरोकार समझने की कोशिश की है । तब जाकर जो नतीजा सामने आया वो अचरज की बात है , प्रिंट मीडिया और टीवी चैनल जब एकतरफ़ा प्रचार करते दिखाई दिए तब ये विकल्प भी उनकी तरह से दूसरे छोर पर खड़ा नज़र आया । मतलब कोई जिनकी बढ़ाई महिमा का गुणगान चाटुकारिता कर रहा था इन्होने दूसरा पक्ष चुना उनकी आलोचना और किसी और की तारीफ़ करने में दोनों में होड़ दिखाई देने लगी । ख़ास कर चुनाव को लेकर यूट्यूब चैनल वाले साफ तौर पर किधर खड़े हैं नज़र आने लगे । उनका मकसद जनमत को प्रभावित करना अधिक था सच से परिचित करवाना बहुत कम सिर्फ इसलिए उनकी भी छवि साफ सुथरी नहीं बन पाई । कभी कभी तो हंसी आती जब कोई उन्हीं कुछ लोगों से वार्तालाप ही नहीं करता हर वीडियो में बल्कि उनकी बातचीत का लहज़ा तौर तरीका ऐसा लगता जैसे कोई फ़िल्मी अदाकार लिखी समझाई बात को दोहराता है । शायद कुछ समय लगता है ऐसे लोगों को समझने में लेकिन अधिक समय तक उनका भी प्रभाव रहता नहीं है । वास्तविक समस्या सोशल मीडिया की यही है कि इस में अकेले अलग अलग अपनी अपनी डफली अपना अपना राग जैसा है , उनके पास कोई तंत्र नहीं कोई कर्मचारी या सूचना देने वाले सहायक नहीं है उनकी आर्थिक सीमाएं भी हैं और मकसद इस से भी कोई पहचान बनाकर भविष्य में कमाई का साधन बनाना भी है ।  

ऐसे लोग आवश्यकता पड़ने पर हर शहर से स्थानीय पत्रकारों ख़ास कर छोटे छोटे सांध्य समाचार पत्रों से संपर्क स्थापित कर जानकारी प्राप्त करते हैं । शायद उनको नहीं पता होता कि ऐसे लोगों की अपनी अपनी आर्थिक विवशताएं होती हैं जिन के लिए उनकी निष्पक्षता संभव नहीं होती है उनको किसी न किसी बल्कि कई बार कितने ही परस्पर विरोधी लोगों से मधुर संबंध रखने पड़ते हैं । लेकिन आपसी बातचीत या मिलने पर दोनों अपना अपना फायदा उठाना चाहते हैं इसलिए उनको इक दूजे को अमुक जगह कालोकप्रिय पत्रकार अथवा चैनल घोषित कर तारीफ का आदान प्रदान करना पड़ता है ।
 
प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया सभी का अपना अपना मकसद भी है और निजि स्वार्थ भी लेकिन देश समाज को सही जानकारी और वास्तविक समस्याओं घटनाओं की जानकारी सटीक एवं सत्य देना किसी की प्राथमिकता नहीं है । निष्पक्षता का नितांत अभाव है ।  ये सभी कुछ विशेष लोगों की ज़रूरत पसंद का ख़्याल रखते हैं पूरे समाज साधरण जनता जनसमस्याओं से उनको कुछ लेना देना नहीं है । ऐसा लगता है पत्रकारिता की नदी सूख चुकी है दो किनारों पर दोनों तरह की पत्रकारिता करने वाले खड़े हैं और बीच में सिर्फ तपती सुलगती रेत है किसी रेगिस्तान की तरह पानी की इक बूंद तक नहीं है । ये भी चमकती हुए रेत जो आकर्षित करती है मृगतृष्णा साबित होना उसकी नियति है । 
 
रेत खनन नया नशा है, राजस्थान के गिरोह नकद, कैरियर, लूट की पेशकश करते हैं

अक्तूबर 03, 2024

POST- 1900 दिन हों पचास हज़ार ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

            दिन हों पचास हज़ार ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

बड़े लोगों अमीर लोगों राजनेताओं अभिनेताओं नाम शोहरत वालों के जन्म दिन पर सोशल मीडिया टीवी चैनल अख़बार पर विज्ञापन और जगह जगह बोर्ड लगाए जाते हैं पोस्टर छपते हैं । सत्ताधारी नेताओं के जन्म दिन पर कुछ उनके प्रशंसक चाहने वाले उनके साथ अपना भी नाम फोटो बैनर छपवा लगवाते हैं । इधर शासक नेता का जन्म दिन तमाम जगहों पर धूम धाम से मनाया जाता है केक काटते हैं मिठाई खिलाते हैं और मिलकर सभी यही गीत गाते हैं तुम जियो हज़ारों साल साल के दिन हों पचास हज़ार । अब तक साल में 365 दिन ही होते हैं पचास हज़ार दिन हों तो इस ढंग से 137 साल लगेंगे इक साल पूरा होने में मतलब लोग पहले जन्म दिन पर बूढ़े होने की नहीं जाने चार दिन की ज़िंदगी का क्या भरोसा कौन जीता है कौन नहीं का सवाल खड़ा हो । खैर शुभकामनाएं देना अच्छी बात है हिसाब किताब लगाकर नहीं बेहिसाब देते हैं , कहते हैं जो भी नियमित रूप से ऐसी शुभकामना संदेश का आयोजन किया करता है इक दिन नेता बन ही जाता है । लेकिन कुछ लोगों की खातिर कैलेंडर से छेड़छाड़ का नतीजा कभी सोचा क्या होगा । आप अपना ही नहीं अपने आका का भी पहला जन्म दिन मना भी सकोगे या नहीं या फिर पौराणिक कथाओं की तरह आयु को सौ साल नहीं करोड़ों साल बनाने को कुछ करना पड़ेगा । 
 
वास्तव में अगर साल पचास हज़ार दिन का होगा तो कोई उम्र में छोटा बड़ा नहीं होगा , भाई बचपन में लंबाई कम बड़े होने पर अधिक हो तो क्या होंगे तो सभी इक साल के देशवासी । सोलह अठाहर बरस का कोई झगड़ा लफड़ा नहीं होगा वोट देने का अधिकार जन्म लेने के साथ मिल जाएगा कोई गोदी में उठा कर किसी का वोट डलवाएगा । पांच साल की सरकार का मतलब जो शासक बना ज़िंदगी भर स्थाई सरकार चलाएगा , पांच वर्षीय योजनाओं का क्या हुआ कौन जान पाएगा । महिलाओं की उम्र बताने की गंभीर समस्या भी हल हो जाएगी दिन दिन गिनती घटती हुई बताने की नहीं नौबत आएगी । अभी तो मैं जवान हूं अभी तो मैं जवान हूं की मधुर आवाज़ दिल को कितना भाएगी , दुल्हन की डोली जो दादी सजाएगी वो भी खुद को देख पलकें झुकाती शर्माएगी । सौ साल जीने की आरज़ू कौन करेगा , इतनी छोटी उम्र में आहें कौन भरेगा इश्क़ प्यार मुहब्बत की कोई दास्तां नहीं बनेगी , भला कुछ महीने का लड़का लड़की स्कूल कॉलेज पढ़ेगा या खेल खेल में ज़िंदगी बसर करेगा । शिक्षा से छुटकारा होगा हर बच्चा न्यारा प्यारा दुलारा होगा बस हंसते हंसते गुज़ारा होगा , सारा जहां हमारा होगा । 
 
 Tum jiyo hazaron saal - An online Hindi story written by Indu sharma |  Pratilipi.com

POST- 1899 सच हुए सभी सपने ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

            सच हुए सभी सपने ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

ये कोई राज़ की बात नहीं हैं सभी जानते हैं गरीबी दूर करने को इस से कारगर कोई उपाय नहीं हैं कि आप राजनीति में कोई रास्ता बनाकर घुस जाएं जितना आगे तक घुसते जाएंगे उतना ही रईस बनते जाएंगे । यही वो पारस है जो लोहे को सोना पत्थर को हीरे जवाहरात और आदमी को भगवान तक बनवा सकता है । मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती सिर्फ ख़ास वर्ग के लिए है किसान अनाज उगाता है फल सब्ज़ियां उगाता है उसे बदले में पेट भरने जीवन यापन करने को फसलों की कीमत नहीं मिलती । जनता भूखी रहती है सरकारी गोदाम में अनाज सड़ता रहता है , वोटों की खातिर खैरात बंटने लगी है अधिकार नहीं मिलते भीख में जीने का अधिकार अमीर लोगों के लिए नेताओं अधिकारियों उद्योगपतियों के लिए आरक्षित है । ये इक अघोषित आरक्षण जैसा है बिना मांगे मिलता है । भोले भाले गरीब कोई गढ़ा हुआ खज़ाना मिलने का ख़्वाब देखते हैं मगर समझदार लोग जितना भी धन दौलत हासिल हो उनकी चाहत रहती है सत्ता की राजनीति का किवाड़ खुले उनको प्रवेश होने को ताकि लूट सके तो लूट की छूट मिल जाए । अपनी नौकरी कारोबार से जितनी भी आमदनी हो लगता है ये कुछ भी नहीं । मेहनत और ईमानदारी की आय से गुज़र बसर करना आजकल समझदारी नहीं कहलाती है बहती गंगा में हाथ धोना नहीं खुलकर नहाना चाहते हैं लोग । 
 
 आधुनिक काल भिखारियों का स्वर्णिम युग है साधु सन्यासी कभी झौंपड़ी में रहते थे आजकल महलों में आधुनिक साज़ो-सामान गाड़ियां हवाई जहाज़ का उपयोग कर लाखों रूपये लेते हैं प्रवचन देने के लिए तभी आते हैं । राजनीति भी दो तरह से भिक्षा पर निर्भर है जनता से वोटों की भीख और धनवान लोगों से चंदे की भीख ज़रूरी है । भूमाफिया बिल्डर सरकारी विभागों का काम ठेके पर करने वाले निवेश करते हैं हर दल के उम्मीदवार को करोड़ों रूपये देते हैं सत्ता किसी भी दल की हो सरकार उनकी होती है । भिखारी सारी दुनिया वही है बस दाता एक राम नहीं रहा बल्कि राम भरोसे कोई सरकार कोई जनता नहीं रहती सबको मालूम है खुद ही अपना कल्याण करना पड़ता है स्वर्ग जाना है तो पहले मरना पड़ता है । राजनीति का स्वाद जिस किसी ने इक बार चखा उसको बाक़ी सब कुछ फीके लगते हैं । खिलाड़ी अभिनेता उद्योगपति कौन है जो इस मायाजाल से बचना चाहता है सभी जानते हैं इस में कितनी गंदगी है फिर भी दुर्गंध नहीं सुगंध प्रतीत होती है ।बड़े बज़ुर्ग बतलाते थे चोरी का गुड़ ज़्यादा मीठा लगता है यही सरकारी धन संसाधनों की लूट का ऐसा पर्म -आनंद है जो समझदार को भी पागल बना देता है और लोग खिंचे चले आते हैं । 
 
जीवन भर भिक्षा मांगने वाले राजनीति में सफल हुए तो शाहंशाह बन बैठे और कहते हैं शासक बनकर किसी ने चमड़े के सिक्के चलाए थे कहावत सुनी थी आज देख रहे हैं । चुनावी बॉण्ड या कुछ भी नाम दे सकते हैं उनकी तिजोरियां भरी रहती हैं चुनाव में पानी की तरह पैसा बहता है । अपराधी राजनेताओं का गठजोड़ अटूट है सरकार उनको मनचाहा देने को प्रतिबद्ध है सत्ता मिलते अपराधी माननीय कहलाते हैं पुलिस उनकी हर तरह से सुरक्षा सहायता करती है । साधारण नागरिक कैसे जीता मरता है लोकतंत्र में इसका कोई महत्व नहीं है शासक राजनेता को खरोंच भी आना गंभीर चिंता का विषय होता है । आम नागरिक होना दुर्भाग्य है गरीब होना अभिशाप इन से मुक्ति का एक ही उपाय है राजनीति में आकर जो भी मर्ज़ी करने का अधिकार हासिल करना । सपने देखना सभी को आता है सच करना उन्हीं को आता है जो आपको काल्पनिक ख्वाबों से बहलाकर खुद अपनी हक़ीक़त को शानदार बना लेते हैं ।  राजनेता सपनों के सौदागर होते हैं ।   
 
 Swapna Ke Saudagar

अक्तूबर 02, 2024

POST- 1898 राजनीति दिल लगाने तोड़ देने की ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

राजनीति दिल लगाने तोड़ देने की ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

कभी प्यार कभी तकरार घठबंधन की सरकार पांच साल होते होते वापस जहां से शुरुआत की थी उसी मोड़ पर पहुंच जाती है हाथ थामा था छुड़ा भी लेते हैं । अपने अपने रास्ते पिछली सभी कसमों को भुलाकर चलना समझदारी है क्योंकि चुनाव में फिर काठ की तलवारों की जंग की तैयारी है । सबकी अपनी मज़बूरी है बस कुछ दिन की दूरी ज़रूरी है खूब बुरा भला कहते हैं इस बार नहीं छोड़ेंगे उसको मैदान में हराना है कहते हैं । कुछ बातें आपसी व्यक्तिगत समझी जाती हैं बिल्कुल घरेलू पति पत्नी के बीच की अनबन की तरह बात बाहर नहीं जाने देते अन्यथा मामला संबंध टूटने तक पहुंचने की आशंका रहती है । मायके जाने छोड़ने की धमकी अनगिनत बार देते हैं अलग होना चाहते नहीं और चाह कर भी आसान नहीं होता । राजनीतिक संबंध कब बनते कब बिखरते कब आवश्यकता पड़ने पर दुबारा कायम हो जाते ये रहस्य की बात नहीं मगर कोई भी भविष्यवाणी नहीं कर सकता है । कठपुतली का खेल राजनीति से बिल्कुल अलग ढंग का होता है लेकिन कुछ साल पहले जब किसी ने खुद प्रधानमंत्री पद स्वीकार नहीं कर किसी और का नाम प्रस्तावित किया तो लोग कहने लगे उनको कठपुतली बनाकर खुद शासन चलाया जा रहा है जबकि उस दल का कहना था ये बड़ा त्याग किया गया है राजनीति आधा सच आधा झूठ का मिश्रण होता है । आजकल कितने ऐसे लोग किसी की चरणपादुका सिंघासन पर रख सत्ता चला रहे हैं लोकतंत्र को बहुत लोगों ने अपनी जागीर समझ लिया है । राजनीति से दिल लगाना खुद अपने दिल को जलाना है दुश्मनों से नहीं दोस्तों से ज़ख़्म खाना है , वक़्त बदलते ढूंढता है कोई नया बहाना है । इस खेल को अभी तक नहीं किसी ने पहचाना है अपना कोई भी नहीं है ये सारा जग पराया है रिश्ता निभाना है । 
 
हरियाणा की ग़ज़ब की राजनीति है सास कौन कौन बहुरानी है मेरी बिटिया बड़ी सयानी है दादी नानी की राजदुलारी है बस घर में कोई और महारानी है उसकी इक ख़ास निशानी है । सियासत में सभी की लड़ाई है कहने को जगहंसाई दरअसल मुंहदिखाई है । पीर अपनी है आफत पराई है आमने सामने बाप बेटा भाई भाई है देखते हैं किस की बजती शहनाई है डोली निकली है बारात जाने कितने दूल्हों ने सजाई है । सत्ता की दुल्हन सजी संवरी बैठी है राजनैतिक विवाह की बात समझते हैं , किसी से प्यार किया शादी किसी और से करनी पड़ी पुरानी प्रेमिका से छुप छुप कर मुलाकात करते रहे उसने भी किसी और को वरमाला पहनाई थी । ग्रहों का खेल है कि रेखाओं से मार खाते हैं आखिर वापस घर लौट आते हैं विवाह संबंध को दरकिनार कर प्रेम फिर से दिल में जगाते हैं रूठे हुओं को मनाते हैं । दो दल आपस में झगड़ते हैं तीसरा कौन है बस इसी से डरते हैं रोटी कोई बनाता है कैसे किस को खिलाता है मगर तीसरा कोई रोटी झपट कर उसके टुकड़े करता है चील कौवों को खिलाता है । खुद नहीं खा सकते किसी को भी नहीं खाने देंगे कुछ बहरी लोगों को यही भाता है सभी का अपना बही खाता है कौन उम्र भर साथ निभाता है । दास्तां अभी अधूरी है सर्वेक्षण की बात कहना ज़रूरी है सब के आंकड़े सच्चे हैं लेकिन अभी तक आप नासमझ बच्चे हैं नतीजे देख कर फिर समझाओगे क्या खोया हुआ वापस पाओगे या भी जाओ आप बड़े वो हैं सुन कर मुस्कुराओगे गले उनको लगाओगे । सबसे बड़ा खिलाडी था बन गया देखो अनाड़ी है अबकी बारी हमारी है कहती दुनिया सारी है । दिल कब किसी पर आता है अजब ये खेल ग़ज़ब ढाता है शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है ।  
 

  haryana assembly elections the deadline for filing nominations ended at 3  PM | हरियाणा में थमा नामांकन का शोर, 16 सितंबर तक उम्मीदवार वापस ले सकते  हैं नाम
 
     

अक्तूबर 01, 2024

POST- 1897 जीने की राह मिल गई ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

           जीने की राह मिल गई ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

शहर में हमारी कॉलोनी में उन महात्मा जी का सत्संग कुछ दिन से चल रहा था । घर से इतना थोड़ा फ़ासला है कि आवाज़ सुनाई देती रहती ऐसे में कुछ जान पहचान वाले दूर से सत्संग सुनने आते तो मिलते रहते । कोई साथ चलने की सलाह देता तो कोई कहता आपको घर बैठे आनंद मिलता है कितना सौभाग्य है आप सभी का । श्रीमतीजी की दोस्त आई और बहुत तारीफ़ की महात्मा जी की शिक्षाओं की और हमको भी मना लिया इक बार तो चल कर सुनना और महात्मा जी के दर्शन करने का पुण्य कमाना चाहिए । उन्होंने बताया लोग हरिद्वार जाते हैं आपको तो घर बैठे अवसर मिल रहा है बहुत शांति का अनुभव होगा । रविवार की शाम हम आखिर पहुंच ही गए और दो घंटे तक महात्मा जी स्वर्ग नर्क पाप पुण्य इतियादी पर प्रवचन देते रहे । लोग शायद ही ध्यानपूर्वक सुन रहे थे लेकिन वहां जगह जगह नियम बताया गया लिखा हुआ था कि बीच में से उठना अनुचित ही नहीं अक्षम्य अपराध होगा । 
 
प्रवचन के बाद पंडाल से निकलते ही पुराने दोस्त वशिष्ठ जी मिल गए , हमने पूछा यहां कब कैसे आये हैं और सामने ही घर है मिलना भी भूल गए । लेकिन उन्होंने मेरी बात का जवाब ये कहकर दिया यार आखिर तुम भी सही राह पर आखिर आये तो सही । मैंने बताया जैसा आपको लग रहा है वैसा नहीं है सामने ही है रोज़ लोग आते जाते कहते थे और आज आपकी भाभी जी की दोस्त आग्रह कर ले आई हैं । मुझे तो इनकी बातें कुछ ख़ास नहीं प्रभावित कर पाईं बस रटी रटाई पुरानी बातें कितनी बार समझाओगे कोई असर होता है क्या । वशिष्ठ जी ने बताया उनके गुरु जी हैं ये खास उनकी खातिर अपने शहर से छुट्टी लेकर आये हैं । तुम भी इनको गुरु बना गुरुभाई बन जाओ कल्याण होगा , पता चला उनकी तरक़्क़ी हुई है और बड़े अफ़्सर हैं आजकल । बात करते करते घर पहुंच गए थे कि उन्होंने स्थानीय इक अधिकारी को  फोन लगाने का अनुरोध किया मिलने पर उधर से पूछा गया कौन हैं । मैंने अपना परिचय दिया साथ बताया कि वशिष्ठ जी उनसे बात करना चाहते हैं जवाब मिला साहब स्नानघर में हैं बाद में फोन करना । अचानक कहा गया वशिष्ठ जी से बात करवाएं साहब ने अनुरोध किया है । दोनों अफ़्सर इधर उधर की बातें करते रहे और हम उनके लिए खान पान की व्यवस्था करने में लग गए । 
 
हम सुनते रहे प्रशासन की सरकारी योजनाओं की दो अधिकारियों की बातें , यार नई योजना से कैसे कितना किस किस को मिलता है कुछ भी पर्दे में नहीं सब नेताओं सरकारी विभाग से बंदर बांट मिल कर राशि चट करने पर भाई भाई हैं । कोई विवाद हो तो गुरूजी हैं समझा कर समस्या सुलझाने को , सभी देशभक्त हैं जनता की सेवा करते हैं और ईमानदार कहलाते हैं । चाय पकोड़े खाते समय आपस में हाल चाल पूछा तो वशिष्ठ जी ने अपनी कोठी राजधानी में प्लॉट खूब धन वैभव से मालामाल होने की बात गर्व से ख़ुशी से बताई । मैंने पूछा आपने क्या सबक सीखा गुरूजी के उपदेश से सही राह पर चलने के उपदेश से , वशिष्ठ जी को कोई संकोच नहीं हुआ हंसते हुए कहने लगे दोस्त सुनो और समझो भी । तुमको अभी दुनिया की कोई खबर है न ही दीन ईमान का अर्थ जानते हो , दुनियादारी समझो सीख लो जीना क्या है । ज़िंदगी घुट घुट कर मरते हुए उसूलों पर चलना नहीं है जिस रंग में सभी रंगे हुए उनसे विपरीत दिखाई दोगे तो हताशा मिलेगी । जब भी अवसर मिले अपनी नैया पार लगाओ किसी को खेवनहार बनाओ । अच्छा क्या बुरा क्या है सभी अपनी सुविधा से मानते हैं ऊपरवाला कौन है लोग जानते हैं काली कमाई सफेद कमाई बताओ किस ने बनाई मेरे भाई । भगवान चढ़ावे से अपने गुणगान से खुश होते हैं तो क्या उनको अंतर पड़ता है किसकी कैसी कमाई है ।
 
 
हम सभी अच्छे बुरे कर्म करते हैं आखिर इंसान हैं , पूजा पाठ दान धर्म रोज़ मंदिर मस्जिद जाते हैं कहते हैं भगवान को भक्त बहुत भाते हैं । भोग उनको जो लगाते हैं असल में खुद खा जाते हैं ये ग़ज़ब का तमाशा है जो चमकता है दिखता है वही बिकता है । धर्म का कारोबार का एक ही आधार है जैसे उसने कमाई करवाई उसी को अर्पित किया हमने जो किया उसकी मर्ज़ी से किया जलाया सुबह शाम दिया जबकि दीपक तले सदा अंधियारा ही रहा । आप सतयुग में नहीं कलयुग में जीते हैं अमृत को छोड़ ज़हर सभी पीते हैं अमृत पान करने वाले बेमौत मरते हैं विष पीने वाले चैन से रहते हैं । अमृत भी असली नहीं मिलता ज़हर भी नकली मिलता है ये सच्चाई बड़ी मुश्किल से जान पाया हूं तभी गुरूजी से मिलने आया हूं चलो साथ चर्चा करते हैं कल सुबह उनको घर आपके बुलाते हैं जीने की सही राह वही समझाते हैं । क्या बताएं अगले दिन गुरूजी ने कैसा था सबक हमको समझाया आत्मा पावन रहती है मैली होती है काया , सूरज की धूप सताती है ढूंढना पड़ता है कोई साया । पाप पुण्य का अर्थ कुछ भी नहीं सब खेल है उसी ने रचाया ज़िंदगी का मज़ा लूटो खुद खाओ सबको खिलाओ भाईचारा आपस में बढ़ाना है तो किसी को कभी मत आईना दिखाओ सभी को शरीफ़ भलेमानस बतलाओ मगर अपनी जान समझदारी से बचाओ । जब कभी किसी से उपदेश सुनो उसको भूल जाओ जो होता है जान कर आचरण में अपनाओ । हाथी के खाने के दांत अलग दिखाने के अलग होते हैं वही आज़माओ बुराई मत छोड़ो बस अच्छे लोग कहलाओ । हाथी के दांत की कीमत समझ आएगी तभी आपकी दुनिया बदल जाएगी , कहते हुए वो दरवाज़े से बाहर निकल अपनी शानदार गाड़ी में बैठे हाथ जोड़ खड़े लोगों को आशिर्वाद देने की मुद्रा बनाए चले गए थे । 
  
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सितंबर 29, 2024

POST - 1896 मेकअप नहीं , मुखौटा है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       मेकअप नहीं , मुखौटा है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

हमारे देश के राजनेताओं की अलग बात है दुनिया उनको पहचानती है मगर असली चेहरे से कम मुखौटे से अधिक । जनता की बर्बादी देख कर भी उनके चेहरे पर शिकन नहीं आती आपदाओं का अवलोकन करते समय भी मुस्कुराहट खिली रहती है कैमरा दर्शाता है । आरोप लगने से छोड़ो अपराध साबित भी हो जाएं तब भी त्यागपत्र देते समय ऊपरी अदालत से निर्दोष साबित होने का आत्मविश्वास कायम रहता है । घोटाले लूट सरकारी संसाधनों और पैसे का अनुचित उपयोग सरकार प्रशासन को नज़र नहीं लग जाये बचाने के काजल से लगाए काले टीके प्रतीत होते हैं शर्मसार होना सीखा नहीं किसी ने भी । कभी हादिसा हो जाये तब उस जगह मगरमच्छ के आंसू बहाते हैं कुछ पल बाद किसी और जगह ठहाके लगाते दिखाई देते हैं । कुछ साल पहले अखबार में खबर छपी थी ब्रिटैन के प्रधानमंत्री को खिला खिला नज़र आने को मेकअप पर सैंकड़ों पौंड खर्च करने पड़ते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति को भी हज़ारों डॉलर खर्चने की आवश्यकता होती है । तब हमारे लिए वो खबर हैरान करने वाली थी जबकि अब हमारे प्रधानमंत्री पर कोई हिसाब नहीं कितना पैसा उनकी बनावट पर खर्च किया जाता है । शारीरिक सुंदरता की बात छोड़ उस की बात करते हैं जिसे शानदार महान छवि प्रस्तुत करना कहते हैं उसका बजट असीमित है विज्ञापन से होर्डिंग लगाने से लेकर सोशल मीडिया प्रबंधन तक पैसा पानी की तरह बहाया जाता है । क़ातिल को मसीहा दिखलाया जाता है झूठ को सच बनाया जाता है जनता को सावन का अंधा समझ हरा ही हरा दिखाई दे रहा बताया जाता है । 
 
डेमोक्रैसी नाम की दुल्हन को सजाते हैं बार बार सोलह श्रृंगार करवाते हैं लाख कोशिश कर के भी राजनीति के दाग़ छुपाने से छुपते नहीं हैं इसलिए राजनेता मेकअप नहीं मुखौटों से काम लेते हैं । नकली चेहरों का फैला हुआ बहुत बड़ा बाज़ार है सरकार मुंह नहीं छिपा सकती चेहरे बदलती रहती है कहती मंत्रिमंडल विस्तार है । हर दिन करोड़ों रूपये मंत्रियों सांसदों विधायकों पर खर्च करते हैं अर्थव्वस्था का हुआ बंटाधार है मगर आम जनता के लिए शिक्षा है न कोई स्वास्थ्य सेवा न ही रोज़गार है उसका जीना मरना बेकार है लेकिन देश बढ़ता जा रहा है सरकारी इश्तिहार है । कोई दार्शनिक बता रहा था कि जैसे प्रयोगशाला में असली नकली की जांच होती है खाद्य पदार्थ से दवाएं तक मिलावट मिलती है कोई तरीका हो परखने को नेताओं की सच्चाई ईमानदारी देश भक्ति से ईश्वर पर आस्था तक सभी नदारद मिलेंगी बस कहने को समाजसेवा खाना है खूब सभी को मेवा । डेमोक्रैसी की दुल्हन लगती है किसी की बेबस बेवा । 
 
अल्पसंख्यक हिमायती होने का मुखौटा है किसी ने लगाया हुआ किसी ने धर्मनिरपेक्षता वाला लगा लिया है , दलितों से हमदर्दी का मुखौटा हर कोई रखता है जब भी ज़रूरत पड़ती है उपयोग करते हैं । अधिकांश ऐसे चेहरे भावशून्य होते हैं जिन पर हंसता हुआ नूरानी चेहरा लगाया होता है नकली किदार की तरह से ही । असलियत बिल्कुल विपरीत होती है विश्व को सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का आडंबर किया जाता है जबकि वास्तव में लोकतांत्रिक मर्यादा को ताक पर रख कर विरोध के अधिकार को ताकत और सत्ता के गलत उपयोग से दबाने में कोई संकोच नहीं करते हैं । सरकार राजनेता पुलिस प्रशासन देश में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा देकर अन्याय अत्याचार का पक्ष लेने के बावजूद विदेशों में मानवता और विश्व कल्याण तथा लोकतंत्र का ढोल पीटती रहती है । 
 
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।, ., ., ., #viralpost,  #explorepage✨ #trendingreels #liketime

सितंबर 28, 2024

POST - 1895 नई पहचान उनकी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

             नई पहचान उनकी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

कुछ साल पहले उनको कुत्तों से कोई लगाव नहीं था कभी किसी कुत्ते को रोटी का टुकड़ा नहीं डाला घर पर रखने का कोई ख्याल ही नहीं आया । सुरक्षा को प्रबंध किया हुआ था और चाटुकारिता करने वाले इंसान थे उनके तलवे चाटने को पांव की धूल से जूतों की गंदगी साफ करने चमकाने को । किसी और गली का कुत्ता था जो उनसे परिचित नहीं था तभी उन पर भौंकने लगा अपने दुस्साहस का नतीजा उसकी जान जाना , बेमौत मर जाना था । इक मामूली सी घटना इतनी बड़ी खबर बन गई कि शहर भर के तमाम कुत्ते संगठित हो गए थे , बात बढ़ते बढ़ते राज्य की राजधानी तक पहुंची थी कि उनकी गाड़ी ने उस कुत्ते को कुचला था । जब चर्चा दिल्ली तक जा पहुंची तो उनको समझदारी से काम लेना ज़रूरी प्रतीत हुआ और कुत्तों से वार्तालाप कर खेद प्रकट करने से कुत्ते की आत्मा की शांति के लिए सभा आयोजित कर मुवावज़ा देने की घोषणा की थी । कुत्तों को लगा जैसे उन्होंने जंग का मैदान जीत लिया है जबकि वास्तविकता कुछ और थी कितनी बार समझौता वार्ता करते हुए उनको कुत्तों के स्वभाव की परख हो गई थी । कुत्तों को हड्डी और अन्य खाने पीने को टुकड़े डालने से खामोश करना अपने तलवे चाटने की आदत डालना सीख लिया था । उन्होंने तय कर लिया था कुत्तों को पालना बेचना खरीदना इक बड़ा कारोबार बन सकता है उनके लिए राजनीति के साथ साथ । 
 
उन्होंने कुत्तों का इक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जिस में बहुत सारी घोषणाएं की गई , कुत्तों को शानदार जीवन उज्जवल भविष्य की योजना से अवगत करवाया गया उनको कुछ विशेषाधिकार प्रदान करने की भी शुरुआत की गई । पंचतारा होटल में सभी को आमंत्रित किया गया और उपहारों से मालामाल किया गया , जो अभी नहीं पहुंचे उनको गाड़ियां भेज लाने का प्रबंध किया गया । कुत्ते अपने आप को धरती से आसमान पर होने का सुखद अनुभव महसूस करते रहे । कुत्तों को अपने जानकर बंधुओं को संदेश भेज बुलाने का भी अवसर उपलब्ध करवाया गया । कुत्तों ने उनकी जय-जयकार करने की शुरुआत करते हुए संकल्प लिया अपनी निष्ठा उनके प्रति बनाये रखने का । सभी कुत्ते शाही महमान हैं कोई भूखा प्यासा नहीं सब को जो चाहिए बिना मांगे मिलने लगा है , खामोश हैं सभी कोई किसी पर भौंकता ही नहीं । पहली बार सभी कुत्ते आपसी मतभेद को एक तरफ रख कर किसी की चाटुकारिता और समर्थन से गुणगान बचाव करने को साथ साथ खड़े हैं । कोई उनको भगवान लगता है क्योंकि उनका जीना सफल हुआ उसी की शरण आकर । 
 
अचानक किसी महानगर से इक महत्वपूर्ण संदेश मिला है , जिस में आग्रह  किया गया है कि इंसानों से सावधान रहना चाहिए । मतलबी लोग आपको इस्तेमाल करते हैं और आपको आदमी जैसा बना कर आपकी वास्तविक पहचान मिटाने लगे हैं । लोग अब कुत्तों की वफ़ादारी और रखवाली का भरोसा नहीं करते हैं , धीरे धीरे कुत्तों की ज़िंदगी का मकसद छूट रहा है । कुत्तों का कुत्तेपन का त्याग किसी अनहोनी का अंदेशा है , उस संदेश ने सभा में उपस्थित सभी कुत्तों का मूड ही खराब कर दिया है पार्टी का मज़ा किरकिरा हो गया है ।  लेकिन आलोचना से घबरा कर अपने बढ़ते हुए कदम वापस नहीं ले जा सकते हैं इसलिए उस संदेश की कड़ी निंदा का प्रस्ताव पारित किया गया है । कोई भी कुत्ते की मौत नहीं मरना चाहता सभी ऐशो आराम से राजसी जीवन का आनंद उठाना चाहते हैं । सभी को अपने अपने गले में बंधे पट्टे और कीमती मज़बूत जंज़ीर से लगाव और प्यार हो गया है आवारा कहलाना नहीं चाहता कोई भी पालतू होना शर्म की नहीं गौरव की बात समझी जाने लगी है बिरादरी में कौन कितना अधिक कीमत पर बिकता है ये महत्वपूर्ण लगता है । जैसी भी है उनकी नई पहचान यही है सभी जानते हैं कौन किसी को कुछ कहेगा जब सभी एक समान हैं । हर कुत्ते की आन बान शान है सब उसी के हैं ऐसी पहचान है ।  
 
 क्या कुत्तों को कॉलर पहनना पसंद है? यह क्यों मायने रखता है?

सितंबर 27, 2024

मेरी निगाह में है ( हास- परिहास ) डॉ लोक सेतिया

          मेरी निगाह में है ( हास- परिहास ) डॉ लोक सेतिया

किसी पर नज़र रखते हैं पल पल की खबर रखते हैं किसी के लिए छुपे हुए सीसीटीवी कैमरे से या अन्य तरीके से जांच करते हैं ये देखने को कि भरोसे को तोड़ तो नहीं रहा , भरोसा कौन किसी का करता है भगवान पर भी भरोसा नहीं आजकल । बस कोई कोई किसी की प्यार भरी निगाह में होता है अन्यथा हर रिश्ता नाता दोस्ती संबंध सिर्फ इक समझौता है । कोई घर के कोने कोने की खबर से वाक़िफ़ है किसी को गांव गली शहर का सब हाल मालूम है लेकिन ये जो सरकार है इसका ग़ज़ब कारोबार है कुछ भी छिपा नहीं रहता फिर भी ख़ाक़ हो जाएंगे हम उसको खबर होने तक । सरकार बेरहम नहीं होती बस उसको रहम नहीं आता बेबस गरीब लोगों पर उसकी पलकें बिछी रहती हैं कुछ ख़ास लोगों की खातिर जिनका ख्याल उसे रात दिन करना ही है । जनता हमेशा सरकार की होती है पर सरकार चाहे भी तो जनता की हो ही नहीं सकती क्योंकि वो पहले दिल किसी को दे चुकी होती है । सरकार सभी से नज़रें नहीं मिलाती सरकार कभी अपनी नज़रें नहीं झुकाती उनकी नज़रें चार नहीं बेशुमार होती हैं जिनकी गिरफ़्त में अपनी सरकार होती है । न्याय-व्यवस्था पुलिस प्रशासन सभी आंखों वाले अंधे लोग हैं जिनको खुद कुछ दिखाई देता ही नहीं लेकिन शासक राजनेता उच्च अधिकारी का निर्देश मिलते जो नहीं होता वो भी नज़र आने लगता है । सत्ता इक ऐसा चश्मा है जिस में झूठ सत्य से बेहतर स्पष्ट और शानदार दिखता है सच सामने करीब से गुज़र जाता है पता नहीं चल पाता है । 
 
हर नज़र जिनकी तरफ है उनकी नज़र किनकी तरफ है कठिन है समझना आखिर तिरछी नज़र होती है हुस्न वालों की कनखियों से देखते हैं कौन कौन उनको तांक झांक रहा है माजरा सीबीआई और ई डी का है । वो कुछ अलग बात है कि कभी कभी कहते हैं तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है । राजनीति के इशारे भी क्या कमाल करते हैं दूर से करते हैं इशारा करीब आएं तो धमाल करते हैं शतरंज की नई चाल चलते हैं । ये अंधों की नगरी है गूंगे बहरों ने महफ़िल सजाई है दूल्हा कौन है नहीं मालूम इक दुल्हन बरात लाई है । हर चीज़ अपनी हुआ करती थी दुनिया हुई अब तो पराई है । शनिदेव की वक्रदृष्टि की तरह राजनेताओं की गिद्धदृष्टि लोकतंत्र पर हमेशा पड़ती रहती है , जनता के अधिकारों उनकी विरोध की आवाज़ को कुचलने को हमेशा सत्ताधारी शासक प्रशासक तैयार रहते हैं । संवैधानिक संस्थाओं को अपाहिज बना दिया है उनकी बढ़ती आकांक्षाओं ने मनचाहा भविष्य पाने को ईमानदारी और नियुक्त पद की गरिमा को दांव पर लगा सेवानिवृत हो कर अथवा बड़ा ओहदा हासिल करने को कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं । इंसाफ की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी निष्पक्षता की नहीं सुवधानुसार समझने खामोश रहने से किसी सीमा तक जाने को तैयार हैं जिस का कोई उपचार नहीं ऐसे बीमार हैं । यूं आंखों पर गीत कितने लिखे फ़िल्में तक बनी हैं लेकिन आंखों आंखों में जो बात हुआ करती थी आजकल नहीं होती है अब आंख से अंधे लोग दुनिया भर को मंज़िल का रास्ता बताने लगे हैं सभी उनकी बस्ती में जाने लगे हैं देखने वाले पट्टी अपनी आंखों पर बंधवाने लगे हैं , हम आपको पुरानी ग़ज़ल सुनाने लगे हैं । 

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल ) 

 डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे
रास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।

सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो
गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।

सबको है उनपे ही एतबार भी
रात को दिन जो लोग बता रहे ।

लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर
दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।

घर बनाने के वादे कर रहे
झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।

हक़ दिलाने की बात को भूलकर
लाठियां हम पर आज चला रहे ।

बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं
हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
 
 अंधेर नगरी, चौपट राजा | Andher Nagri Chaupat Raja |
 

सितंबर 26, 2024

मोबाईल एक उलझनें अनेक ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

      मोबाईल एक उलझनें अनेक ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

  अजब मुहब्बत है कितनी मुसीबत है दिन को चैन है न पल भर की फुर्सत है मोबाईल फोन इक ऐसा आफत है । इंसान की पहचान बस मोबाईल नंबर हो गई है जीते जी ग़ज़ब कयामत हो गई है । ख़रीदा महंगा संभालना पड़ता है आहट ज़रा सी हुई ध्यान रखना पड़ता है खुद अपने लिए इक सरदर्द मोल लिया है बिन इसके लगता नहीं जिया है । दुनिया सारी गुलाम बन गई है नेटवर्क नहीं मिलता तो लगता है जैसे शहर बस्ती की रौनक खो गई महफ़िल सुनसान बन गई है । अनलिमिटेड कॉल्स की सुविधा वरदान लगती थी अभिशाप साबित हुई है हर शख़्स को इक रोग लगा है इक फोन से रिश्ता निभाना है सारा ज़माना हुआ बेगाना है । कोई भी जगह हो मंदिर मस्जिद चाहे कोई ख़ुशी का अवसर या कहीं शोक प्रकट करने की घड़ी बजती है घंटी लगती है अटपटी । अनचाही कॉल्स की मुसीबत कम नहीं है कौन था क्यों कैसे इस से अनसुलझी कोई भी उलझन नहीं है । उसकी साड़ी उसकी कमीज़ से मुक़ाबला कठिन नहीं था इस की कोई सीमा नहीं है मॉडल से कंपनी तक बड़ी कठिनाई है स्मार्ट फोन सबसे बड़ा हरजाई है । नंबर बदलते हैं ज़माने से बचते है मगर बचना मुमकिन नहीं है बदला नंबर भी नंबर वन नहीं है ।   
 
खो गया मोबाईल फोन लगता है ज़िंदगी ग़ुम हो गई है इक उसी संग रहने की आदत हो गई है जुदाई की हर घड़ी लगती है कयामत है नज़र लगी किसकी किसी की शरारत है । अचानक जब कभी उसकी आहट थम जाती है बस जितना साथ था ख़त्म हो जाता है नया खरीदने में उसे देना पड़ता है प्यार को अलविदा कहना पड़ता है । किश्तों पर जीना किस्मत बन गई है बढ़ती हसरत घटते घटते ख़त्म नहीं हुई अधिक बढ़ रही है । सरकार व्यौपार अख़बार सब का नाता बस इसी से संभव है , शुभ समाचार से शोक समाचार तक सिर्फ व्हाट्सएप्प संदेश से भेजते हैं निमंत्रण पत्र से जाने क्या क्या इसी से आदान प्रदान करते हैं । हवा पानी खाना पीना जैसे ज़रूरी है सोशल मीडिया पर एक्टिव होना उस से भी ज़रूरी है ये ज़रूरत थी बन गई मज़बूरी है । अजब हाल है ज़िंदगी बेहाल है मगर सबको लगता बंदा क्या कमाल है भूखा बदहाल लगता मालामाल है । मिलना मिलकर बातें करना भूल गए हैं घर बुलाना कभी चले जाना छोड़ दिया है बस इक ही रिश्ता सब से संदेश औपचारिक भेजने का निभाते हैं अब नहीं पुराने दिन याद आते हैं । व्हाट्सएप्प से अधकचरा ज्ञान पाकर इतराते हैं करते हैं नासमझी समझदार जानकार कहलाते हैं । सैंकड़ों हज़ारों नंबर हैं कौन हैं भूल जाते हैं याद नहीं आया किसका नंबर है खास दोस्त से कहते नहीं शर्माते हैं ।   
 
इक बेजान चीज़ ने कितना बर्बाद किया है बड़ी लंबी इसकी कहानी है , ये इक रेगिस्तान में चमकता हुआ पानी है मृगतृष्णा की वास्तविकता जानी पहचानी है । इक दौड़ है प्यास की आखिर अंजाम वही होगा सोचो क्या नफरत क्या लूट क्या धोखा होने लगा है हर शख़्स अपने अश्कों से खुद अपना दामन भिगोने लगा है । कांटों का गुलशन संजोने लगा है । अजब सा नशा है बेबसी का आलम है कोई और नहीं अपनी खुद की उलझन है मुझको लगता उनके पास फोन नहीं मेरी कोई सौतन है । इक बेजान बेवफ़ा से दिल लगा बैठे हैं लोग मत पूछना क्या क्या नहीं गंवा बैठे हैं लोग । सामाजिक वातावरण इतना प्रदूषित हो गया है कि इस की गंदगी दुनिया का मुकदर हो गई है । ये ऐसा ज़हर है सबको खाना पड़ता है कड़वा है मीठा बताना पड़ता है । कभी किसी संत महात्मा ने उपदेश देते हुए स्वर्ग नर्क और मोक्ष की व्याख्या की थी जिस में समझाया गया था कि कुछ चीज़ों का मोह आदमी को भटका देता है मोक्ष स्वर्ग से नर्क भाने लगता है । तब उनका मकसद सामाजिक और राजनैतिक प्रशासनिक पतन को लेकर था कि सत्ता का नशा और अधिकार मदहोश कर देते हैं । लेकिन किसे पता था भविष्य में मोबाईल फोन इक ऐसा उपकरण साबित होगा जिसे हासिल कर सामान्य नागरिक भी स्वर्ग मोक्ष से बढ़कर आनंद का अनुभव नर्क से भी बदतर हालात बनाने वाले से अनुभव कर अनगिनत समस्याओं असंख्य उलझनों परेशानियों को आमंत्रण देने लग जाएंगे । 
 
 पति-पत्नी के बीच 'सौतन' बना मोबाइल, 5 घंटे तक फोन से 'प्यार' excessive use  of smartphone harming married couples relationships in India say new study  - Tech news hindi, गैजेट्स न्यूज़

सितंबर 24, 2024

लाज - शर्म की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

             लाज - शर्म की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया   

कभी जिसे बेशर्मी कहते थे आजकल बिंदास का संबोधन दे कर सुशोभित किया जाता है । कुछ लोग गंभीर चिंतन में डूबे हैं उनको पता चला कोई शर्म नाम की चीज़ भी समाज में हुआ करती थी जो अब कहीं दिखाई नहीं देती एकदम विलुप्त हो गई है । ऐसे में सवाल खड़ा हुआ कभी आवश्यकता पड़ी तो कहां से लाएंगे लाज शर्म इक आभूषण कहलाता था , जाने उनको इसकी क्या ज़रूरत आन पड़ी जो तलाश करते करते थक हार कर उदास हुए बैठे हैं । हर आते जाते से सवाल करते हैं क्या आपको शर्म आती है क्या सभी ने बेच खाई है लोकलाज या फिर घोट कर पी लिया है । कहीं ऐसा तो नहीं कोई शर्म की जमाखोरी का कारोबार करना चाहता है जिस से भी मिली कौड़ियों के भाव खरीद ली शर्मोहया बाद में मुनाफ़ा कमा कई गुणा कीमत वसूलने को । शर्माना आजकल चलन से बाहर हो गया है ऐसा पहनावा या गहना जिसे पहन कर कोई कार्टून की तरह लगता है महफ़िल में उपहास का कारण बन जाती है शराफ़त सादगी भोलापन । शायद कुछ समय बाद लोग यकीन ही नहीं करेंगे कि कभी भले लोग अकारण भी शर्मिंदा हो जाते थे , महात्मा गांधी जैसे लोग अपने की अनुयाइयों के अनुचित आचरण से आहत होकर उपवास रखते थे । राजनीति जब से स्वार्थ और सत्ता की लड़ाई बनी है नेताओं ने निर्धारित कर लिया है कि जब नाचन लागी तो घूंघट काहे । ज़मीर का सौदा कभी घबरा कर नहीं किया जाता सौदेबाज़ी की राजनीति में कोई नक़ाब नहीं रखते सही गलत का कोई हिसाब नहीं रखते राजनेता अपनी मेज़ पर क्या अलमारी में भी ईमानदारी वाली किताब नहीं रखते । जनता को कहते हैं तुमको ख़ैरात मिली हमारा एहसान समझना अधिकार नहीं मिलेंगे कभी सत्ताधारी शासक अपने ज़ुल्मों का कभी कोई हिसाब नहीं रखते । 
 
सिनेमा टीवी चैनल ही नहीं लेखक संगीतकार कलाकार चित्रकार सफलता हासिल करने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी गंदी सोच विकृत मानसिकता की खातिर दर्शकों को बेशर्मी और गंदगी फूहड़ता परोस कर  शोहरत की बुलंदी पर खड़े हैं बदनाम हैं तो क्या नाम होना चाहिए । खलनायक का महिमामंडन किया जाने लगा है खलनायक दिल लुभाने लगे हैं , आइटमसांग महिलाओं को 6 पैक एब्स फिल्म टीवी सोशल मीडिया पर जिस्मफ़रोशी का आधुनिक रंग समझाने लगे हैं । बाबा लोग नाचने नचाने लगे हैं छलिया बनकर बंसी बजा कर भजन कीर्तन में रंगरलियां मनाने लगे हैं । अधिकारी कारोबारी पुलिस वाले अनबुझी प्यास अपनी बुझाने को बाबाओं की शरण जाने लगे हैं ।  बाबाओं का सरकारों से मधुर संबंध बन गया है अपने बेगाने ठिकाने लगे हैं गुनाहगार पांव दबा कर जुर्म की माफ़ी पाने लगे हैं धर्म राजनीति प्रशासन ठेकेदार मिल कर खाने खिलाने लगे हैं आश्रम आलीशान भवन बनवाने लगे हैं । सभी नंगे हम्माम में नहाने लगे हैं अपनी बेशर्मी को खुलकर दिखाने लगे हैं चोर कोतवाल रिश्ते बनाने लगे हैं ।
 
कोई नया अवतार आया हुआ है जिस ने बड़ा बाज़ार सजाया हुआ है । शर्म के बांड्स शेयर प्रमाणपत्र क्या क्या नहीं उस के पास खरीदना है खरीदो बेचना है बेचो भाव चढ़ रहा है लिखवाया हुआ है । शर्म का युग ख़त्म हुआ कभी लौट कर नहीं आएगा आधुनिक काल बेशर्मी का है बढ़ता ही जाएगा । पुराना ज़माना था कि लोग मुंह छिपाते थे असामाजिक कृत्य कर घर से बाहर निकलने से घबराते थे , आजकल जुर्म का मुक़दमा चलेगा अभी ज़मानत पर रिहा होने पर ढोल नगाड़े बजाते जुलूस से शान दिखाते हैं क़ातिल नहीं बाहुबली कहलाते हैं । कहते हैं लोग मालामाल हैं मगर समझ आये तो शर्म की बात पर सभी कंगाल हैं ।   
 
 शर्म की बात पर ताली पीटना (व्यंग) हरिशंकर परसाई Sharm ki baat par tali  pitna/Harishankar parsai

सितंबर 18, 2024

याद मां की नहीं , मसालों की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

    याद मां की नहीं , मसालों की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

बड़े बुज़ुर्ग हमेशा पते की बात कहते हैं हमने अपने बाल कोई धूप में सफेद नहीं किए अनुभव हमेशा सही साबित होता है । आजकल उम्र से पहले ही बाल सफ़ेद होने लगते हैं और कुछ लोग ख़िज़ाब लगाकर भी बालों को रंग कर उम्र छिपाना चाहते हैं लेकिन उम्र बिता कर खट्टे मीठे अनुभव प्राप्त करने की बात बिल्कुल अलग होती है । युवा पीढ़ी को पहले जो बातें फज़ूल लगती हैं बाद में खुद समझ आती हैं अनुभव से तब भूलसुधार संभव नहीं होता । हमने भी अपने बच्चों को हिदायत दी कि हमसे गलती हुई बाप की नहीं समझी तुम वो मत करना क्योंकि हमने नहीं चाहते हुए भी उनकी कही बात पर अमल किया तो सही साबित हुई आजकल तो मनमानी करने की आदत ने लिहाज़ करना छोड़ दिया है जो बाद में पछतावे का कारण बन सकता है । हमारे बाप दादा कहते थे नोट तुड़वाया तो गया बेटा बिहाया तो पराया हुआ खरी बात थी नोट खर्च होते पता नहीं चलता हज़ार से पांच सौ नहीं बीस पचास बनता जाता है । बेटा कितना सयाना हो शादी के बाद पत्नी के पल्लू से बंधकर अच्छा पति साबित होने की कोशिश में सभी पुराने दोस्त रिश्तेदार उसे आम और ससुराल के नाते खास लगने लगते हैं । हर दामाद ससुराल में कुछ दिन तक खुद को बादशाह जैसा महसूस करता है तब आसमान में ज़मीन का महत्व नहीं मालूम होता है । कुछ लोगों को बाप तब तक ज़रूरी लगता है जब तक खुद कमाई नहीं करने लगते हैं । नौकरी आदि में गॉडफ़ादर मिल जाये तो पिता की कोई आवश्यकता नहीं रहती है । दफ़्तर में बॉस और दुकानदारी कारोबार में ग्राहक बाप से अधिक प्रिय और आदरणीय होते हैं । राजनीति में होता था ज़रूरत पड़ती तब गधे को बाप बनाना जबकि बचपन में जो बालक शरारती होते हैं बाप को झूठ बोलकर पैसे लेते किताब खरीदनी है मगर उस से मौज मस्ती कर समझते बाप को उल्लू बनाया है । बाप आखिर बाप होता है औलाद की वास्तविकता समझ जाता है कुछ देर से ही सही । 
 
मगर मां की बात उसकी याद बिल्कुल अलग होती है , मां याद आती है जब भी कोई मुश्किल पेश आती है और कभी घर से दूर अकेलापन महसूस होता है तब आंखे भर आती हैं स्नेहपूर्ण अनुभूति से । कहते हैं शादी के बाद मां और पत्नी में संतुलन बनाना सबसे कठिन कार्य होता है । सास भी बहु भी अच्छी होती है लेकिन दोनों ही बेटे और पति पर अपना विशेषाधिकार खोना नहीं चाहती हैं आपसी अनबन का यही कारण होता है ।पंजाबी में लोकगीत कुछ ऐसे हैं ' लाई लग नूं है मां ने विगाड़िया ' अर्थात बातों में आ जाता है मेरा भोला पति जिसे उसकी मां ने बिगाड़ दिया है । अजीब बात है बिगड़ा हुआ कोई है लेकिन बहु कहती है ' वे मैं सस कुटणी इक निम दा घोटणा लियाईं ' लेकिन ये हंसी मज़ाक में कहना आसान है करना बिल्कुल नहीं । पत्नी और मां दोनों अपनी अपनी जगह हैं ज़रूरत पड़ने पर याद उनकी आती है नई नवेली दुल्हन शर्माती है कुछ साल बाद कितने नुस्खे आज़माती है मां के पल्लू से पति को छुड़ाती है तब चैन पाती है । 
 
आखिर इक कंपनी ने इस समस्या का समाधान समझाया है उस कंपनी के मसाले मां के प्यार का विकल्प बन सकते हैं । दुल्हन निश्चिंत है उसकी गाड़ी की डिक्की में किसी कंपनी के कितने ही मसाले के डिब्बे भरे हुए साथ ले जाएगी उनसे बना खाना खिलाएगी तो उनकी सुगंध मां के हाथ के खाये खाने का स्वाद भुलाएगी । मां की महक डिब्बों में भर कर बेची जाएगी । मां के हाथ का स्वाद झूठा कंपनी के मसालों का सच्चा उनकी सुगंध डाइनिंग टेबल की तरफ खींच लाएगी फोन पर मां से बात बंद करवाएगी । इक दूसरी कंपनी मां जैसा अचार खिला रही है मिलावट से बचाने को खुद को शुद्ध कहलाने का प्रमाणपत्र मिला दिखला रही है । भला कोई मां ऐसा प्रमाण जुटा पाएगी कंपनियों के उत्पाद लोकप्रिय हो रहे हैं मां खाली जगह बनती जा रही है । काश कोई कंपनी उनको भी अपनाये जिनकी मां ही नहीं होती है उनकी ज़िम्मेदारी कोई सरकार भी कंधों पर नहीं ढोती है किस्मत उनकी खराब होती है । 
 
शराब और सिगरेट वाले तन्हाई और दोस्तों की महफ़िल का रंग जमाने वाले साथी हैं विज्ञापन समझाते हैं । कभी भी कुछ लोग इनसे ही प्यार करते हैं ज़िंदगी तबाह कर भी उनको अपना बनाते हैं बिना इनके नहीं जी पाते इनसे ही मौत को गले लगाते हैं । बीमा कंपनियां प्रचार करती हैं बुरे समय वही अच्छा व्यवहार करती हैं जबकि उनकी सच्चाई कुछ और है हमेशा आपके साथ होने का खोखला शोर है बहुत कठिन है उनकी भुगतान राशि मिलने का कोई ओर है न ही कोई छोर है । छलिया है चितचोर है किसी का नहीं उन पर चलता ज़ोर है आपका बही खाता उनका घटा जोड़ है अजब मोड़ तरोड़ है । मौत के बाद साथ निभाने का वादा जब भी कोई करता है झूठ है आखिर मुकरता है कौन संग संग मरता है । कंपनियां भाई बहन का प्यार का भी कोई विकल्प ढूंढ लाएंगी रक्षाबंधन से लेकर सब ऑनलाइन उपलब्ध करवाएंगी दिल बहलाएंगी उलझनें नहीं सुलझ पाएंगी ।मुसीबत तब आएगी जब पत्नी का भी कोई विकल्प कोई कंपनी बाज़ार में ले आएगी । नल के पानी और बोतल बंद मिनरल वाटर में किस की जीत होगी ख़ामख़याली समझ रहे हो पर कब क्या हो भरोसा नहीं है । जिस तरह कंपनी बताती है पुरे चौदह मसाले हैं सही मात्रा में उसी तरह पत्नी भी सर्वगुण सम्पन्न को लेकर उनकी भविष्यवाणी हंगामा खड़ा कर सकती है । वही बाज़ार जो सास को छोड़ बहू साथ खड़ा है कल उसका क्या हाल करेगा नहीं जानती कोई महिला भी कितनी अनुभवी हो बेशक ।  
 
 व्रत में इलायची और लौंग खा सकते हैं या नहीं? - vrat mein kya khana chahiye  aur kya nahin-mobile
  

सितंबर 17, 2024

लव मैरिज की पोलिटिक्स ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     लव मैरिज की पोलिटिक्स ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक हर कोई इसी की चर्चा कर रहा है नेता जी अपने प्रिय कुत्ते का जन्म दिन धूमधाम से मनाने वाले हैं । प्रशासन दिन रात एक कर आयोजन की तैयारी में जुटा हुआ है कोई भी कमी या कोई चूक नहीं होने दी जा सकती बेहद महत्वपूर्ण अवसर है । निमंत्रण पत्र सभी ख़ास वीवीआईपी लोगों को सत्ताधारी राजनेताओं को भिजवाया गया है आग्रह निवेदन विनती की गई है कि सभी अपने पालतू कुत्तों को साथ लेकर ही आएं । कुत्ते को घर पर छोड़ कर कदापि नहीं आना हैं मगर खुद आना संभव नहीं हो तो भी अपने ड्राइवर के साथ गाड़ी में कुत्ते को भिजवाया जा सकता है । जैसे नेता जी ने अपने कुत्ते का बनाव और सजाने संवारने को महानगर से माहिर लोग बुलवाये हैं उस से चर्चा होने लगी है कि शायद नेता जी अपने प्रिय कुत्ते का रिश्ता तलाश कर चुके हैं जिसकी घोषणा हो सकती है । अथवा उनको इस अवसर का उपयोग करना है अपने कुत्ते की पसंद की कुतिया खोजने के लिए क्योंकि अख़बार में और शहर में बैनर पोस्टर लगा कर सभी को बुलावा दिया गया है , आम जनता को नेता जी के कुत्ते का गुणगान करना है और बचा हुआ खाना उनको वितरित किया जाएगा उनको अलग रखने को बैरीकेट्स लगा दिए गए हैं । समारोह स्टेडियम में आयोजित किया जाना है जिसका जन्म दिन है उस कुत्ते पर इक पुस्तिका छपवाई गई है जिसे पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि ये किसी अवतार से कम नहीं है । कुत्ते का महत्व उसका जीवन पसंद नापसंद को भी समझाया गया है और नेता जी ने कुत्तों से जो राजनीतिक समझ हासिल की है उसे विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है जो नेता जी द्वारा चुनाव जीतने का सहयोगी रहा है । 

नेता जी ने किसी अन्य व्यक्ति से अधिक भरोसा हमेशा अपने कुत्ते पर किया है पिछली बार जब विधायकों से समर्थन पर सौदेबाज़ी हो रही थी उस बातचीत में कुत्ते की भूमिका अहम थी । नेता जी का कुत्ता सूंघकर इशारे से बता देता कौन वफ़ादार है कौन शक के दायरे में है और नेता जी अपनी रणनीति बनाकर ऐसे लोगों को अपने पाले में लाने को सफल रहे थे । सही मायनों में उनकी सरकार जनता के वोटों या विधायकों के समर्थन से ज़्यादा कुत्ते की सहायता से बनी योजना का परिणाम थी । नेता जी को याद है जब इक दिन अपने दल के प्रधान के घर से उनके तलवे चाट वापिस लौट रहे थे सोचते हुए चिंतित थे कुर्सी मिलेगी या नहीं मिलेगी तभी इक छोटा सा पिल्ला उनके पांवों से लिपट गया था तब नेता जी को उसकी हालत अपने जैसी लगी थी और उसे गोदी में उठाकर चूमने लगे तभी शुभ समाचार मिला था प्रधान जी ने उनकी विनती स्वीकार कर ली थी । नेता जी को एहसास हुआ था उनका कोई जन्म जन्मांतर का रिश्ता है कुत्तों से जैसे और ये उनका निकट संबंधी रहा होगा । नेता जी ने कुत्तों को हमेशा महत्व दिया है कई योजनाएं उनकी खातिर बनाई गई हैं लोग उनके इस लगाव से परिचित हैं राज्य में किसी कुत्ते पर हिंसक करवाई कोई नहीं कर सकता है । 
 
नेता जी के प्रिय कुत्ते का जन्म दिन बड़ी शान से मनाया गया हर महमान से उस के कुत्ते का हाल चाल पूछना ज़रूरी था किसी के कुत्ते को कोई परेशानी हो तो नेता जी हमेशा तैयार हैं कहते थे । इंसानों से अधिक कुत्तों के लिए खाने पीने मनोरंजन नाचने गाने का प्रबंध किया गया । कुत्तों का खेल और प्रतियोगिता आयोजित की गई सब लाजवाब था । उपहारों का परस्पर लेन देन हुआ और सभी अपने अपने कुत्तों के साथ ख़ुशी ख़ुशी विदा हुए । लेकिन जैसे ही विपक्षी दल के नेता का ड्राईवर उनके कुत्ते को ले जाने लगा नेता जी का कुत्ता उस ड्राईवर पर भौंकने लगा और विपक्षी दल के नेता जो खुद नहीं आये थे उनकी कुतिया को नेता जी के कुत्ते ने जाने नहीं दिया रास्ता रोक खड़ा रहा । नेता जी को माजरा समझ आया तो उन्होंने ड्राईवर को समझा कर वापस भेज दिया , विरोधी दल के नेता को पता चला तो उन्होंने ब्यान जारी कर इसे अपहरण की घटना घोषित कर शिकयत दर्ज करवाने की बात कही । लेकिन नेता जी ने शीघ्र ही विपक्षी दल के नेता को फोन कर निवेदन किया कि इसे राजनीति से अलग रख कर संवेदनशीलता पूर्वक समझना चाहिए । नेता जी ने कहा वो खुद आकर उनसे उनकी कुतिया का रिश्ता मांगेंगे और उनकी सहमति से ही गठबंधन संभव होगा । 
 
अगले दिन सुबह ही नेता जी अपने कुत्ते और विपक्षी दल के नेता की कुतिया दोनों को साथ लेकर विरोधी नेता जी के आवास पर गए और दोनों को आशीर्वाद देने का अनुरोध किया । विपक्षी दल के नेता ने अपनी राजनीति की शतरंजी चाल चल ही दी ऐसा कह कर कि उनके कुत्ते को यहां रहना होगा कुतिया से नाता रखना है अगर । नेता जी ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और गठबंधन की रस्म निभाई गई और सार्वजनिक घोषणा की दोनों ने मिलकर कि विचार अलग अलग है लेकिन प्रेम का समर्थन हम दोनों ही करते हैं कभी प्यार करने वालों में अड़चन नहीं बन सकते हैं । इस के साथ नेता जी ने ये भी कहा कि उनका अनुरोध है कि समधी जी इक बात पर फिर से विचार कर निर्णय करें कि दोनों के कुत्ते कुतिया की ख़ुशी और अच्छा भविष्य किस घर में रहने से बेहतर होगा । सोच विचार करने के बाद विपक्षी दल के नेता मान गए हैं कि शासक राजनेता के घर पर रहना कुत्तों की भलाई के लिए अनिवार्य है । कुछ लोग इस के पीछे कुछ और ही कहानी समझा रहे हैं करोड़ों का दहेज़ का आदान प्रदान से लेकर दो दिलों नहीं दलों में तालमेल की बात लगती है । अब चाहे जो भी हो नेता जी के कुत्ते की निपुणता समझदारी ने उनको फिर कायल कर दिया है उनका कुत्ता उनकी राजनीति का आईना है ।  कुत्तों का प्रेम विवाह अनूठी घटना है और पहली बार प्रेम विवाह सरकार की मज़बूती और स्थाई होने का आधार बन गया है ।  कुत्ते कुतिया के घठबंधन की तस्वीरें चर्चा का विषय हैं क्योंकि एक जिधर देख रहा दूजा उधर नहीं किसी और तरफ देख रहा है अर्थात दोनों की नज़र सभी पर है कि राजनीती की शुरुआत लगती है ।
 
 कुत्ते की पूंछ टेढ़ी क्यों रहती है? क्या आप जानते है इसका कारण

सितंबर 16, 2024

सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

वो जिनकी वफ़ा की कसम खाते थे ज़माने वाले बेवफ़ा सनम निकले , कहते हैं इंसान की असलियत जब तक पर्दे में ढकी रहती है सभी भले लगते हैं राज़ खुलने लगे तो सब एक जैसे हैं । बार बार देखा है जो किसी की बेईमानी की बड़ी बुराई किया करते थे वक़्त बदला तो उनकी ईमानदारी की छवि बिगड़ी तो ऐसे कि लोग अपनी सोच पर शर्मिंदा थे । सत्ता की सियासत के हम्माम में सभी नंगे होते हैं चाहे जितना छुपाते रहें कभी न कभी शराफ़त की नक़ाब उतरती ज़रूर है । उस के बाद लाख सफ़ाई देते रहें यकीन नहीं करता कोई भी ये अजीब बात है जिस जिस को लेकर धारणा बनाई जाती है कि अमुक नेता कभी झूठ नहीं बोलेगा छल कपट धोखा हेराफ़ेरी नहीं कर सकता उसी की वास्तविकता सामने आती है तो हैरान होते हैं जब प्रमाण सामने आने पर भी उसे शर्म नहीं आती बल्कि ऊंची आवाज़ में आरोप क्या प्रमाण तक को झूठा बताता है । शराफ़त के पुतले समझे जाते लोग बदमाशी भी करते हैं तो दावे के साथ ये उनका कमाल है दाल में काला नहीं अब काली पूरी दाल है ऐसे शरीफ़ बदमाशों के हाथ सच्चाई की मशाल है । सत्ता की टकसाल का यही हाल है हर इक शासक बन गया ऐसा दलाल है जिस को सरकारी धन लगता ससुराल का माल है बुनता ऐसा जाल है कि जनता हुई बेहाल है । 
 
जो वास्तव में शरीफ़ होते हैं शराफ़त का बोझ जीवन भर ढोते हैं शरीफ़ कहलाना अच्छा है शराफ़त से रहना खराब है । शराफ़त अली को शराफ़त ने मारा अपने सुना होगा , इक नवाज़ शरीफ़ थे क्या बताएं कैसे और कितने शरीफ़ थे दोस्त थे मगर रक़ीब थे जितना फ़ासला था लगते उतने करीब थे आदमी अजीब थे । छोड़ो उनकी नहीं अपने देश समाज की बात करते हैं शराफ़त का चोला पहन कर क्या क्या करते हैं पकड़े जाएं तो सच से मुकरते हैं । अपने ही घर में खुद अपने ही दल की महिला की पिटाई करवाते हैं झूठ को सच और सच को झूठ बनाते हैं दुनिया को क्या समझाते हैं । हमारे देश में राजनेताओं की शराफ़त का डंका बजता है हर घोटालेबाज़ निर्दोष साबित होता है हर क़ातिल मासूम दिखाई देता है मगरमच्छ के आंसू बहाकर इंसाफ़ को डुबोता है । सबसे अधिक अपराधी जिस दल के सांसद हैं वही न्याय धर्म और सुरक्षा देने का जनता को भरोसा दिलवाता है कौन तेरी गली से ज़िंदा बचकर कभी आता है जो भी इंसाफ़ की गुहार लगाता है बेमौत मर जाता है । उनकी इंसानियत का अलग बही खाता है जो देता है बस वही पाता है अपनों को बचाना उनको आता है । देश की राजनीति में आजकल चला नया दौर है हम सभी एक जैसे हैं लेकिन सवाल यही है कि कौन कितना बड़ा चोर है । 
 
अमेरिका की शराफ़त कमाल की चीज़ है जिस देश की सहायता करते हैं उसे अपने जाल में ऐसा उलझाते हैं कि उन पर विश्वास करने वाले हमेशा पछताते हैं । विश्व बैंक आईएमएफ़ सभी को उंगलियों पर नचाते हैं लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर अपना कारोबार चलाते हैं । हमारी शराफ़त की पुरानी कहानी है काने राजा की अंधी महारानी है अंधी पीसे कुत्ता खाये दुनिया जानी पहचानी है । सरकार की खूबसूरत इक तस्वीर है जनता के पांव में बंधी हुई कितनी जंज़ीर है नेताओं अधिकारियों उद्योगपतियों की खुली तकदीर है जो जितना ज़ालिम है उतना कहलाता शूरवीर है । हमारे देश में भिखारी मालामाल हैं मेहनतकश लोग भूखे और बेहाल हैं सरकार जनता की सुविधाओं की ख़ातिर धन नहीं है समझाती है बाहर किसी देश की सहायता कर अपना गौरव बढ़ाती है । देशवासियों को बांटते हैं लड़वाते हैं चुनाव जीतने की खातिर दंगे फ़साद करवाते हैं मगर किसी अन्य देश में जाकर दो देशों में समझौता करवाने को चर्चा करवा शांतिदूत कहलाते हैं । अब हमारे देश में शराफ़त और ईमानदारी की कोई राजनीति संभव ही नहीं है सब एक थाली के चट्टे बट्टे हैं शरीफ़ नाम है इसलिए बड़े अच्छे हैं झूठे हैं लगते सच्चे है अभी आम कच्चे हैं । शराफ़त की नक़ाब धीरे धीरे सरकती जाती है उतरने नहीं दी जाती लोकतंत्र की लाज बचाने को थोड़ा घूंघट रखते हैं दिखाई भी देता है कुछ थोड़ा छुपा भी रहता है । कैसा पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं ।   

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कुर्सी के अजब खेल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

               कुर्सी के अजब खेल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

सब कुछ बदलता है बदलना प्रकृति का नियम है मौसम तो बदलते रहते हैं कुछ लोग मौसम को देख बदलते हैं । राजनीति इतनी बदल चुकी है कि उस में नीति विलुप्त हो गई है राजनेता हवा का रुख देख जिधर की हवा चलती है उधर चल पड़ते हैं । देश की राज्य की राजनीति में कुछ लोग इस का आंकलन करने में माहिर होते हैं किस गठबंधन से सत्ता में भागीदारी मिल सकती है और हर बार शासक दल के संग साथी बने दिखाई देते हैं । नौकरी कारोबार में अथवा राजनीति के बाज़ार में उनको सफ़लता हमेशा मिलती है समाज में जिनको लोग निठल्ले समझते हैं चाटुकारिता उनको वरदान दिलवाती है । एकरूपता से लोग बोर होने लगते हैं अभी कुछ दिन पहले कॉमेडी पसंद थी अब उबाऊ लगती है कितनी बार वही सब देख सुनकर हंसी आएगी आखिर तो उकताहट होने लगती है । सिनेमा जगत इतना बदला है कि उसकी जगमगाहट आजकल घोर अंधकार को बढ़ावा देने लगी है । धार्मिक फ़िल्में टीवी सीरियल कितना शानदार लगते थे आजकल उनका बंटाधार कर समाज को गुमराह किया जाने लगा है मगर लोग दर्शक समझने लगे हैं चैनल वाले सिर्फ भावनाओं को अपने आर्थिक फायदे को इस्तेमाल करना चाहते हैं उनको आस्था धर्म से कोई सरोकार नहीं है । 
 
देश आज़ाद हुआ राजनीति भी श्वेत श्याम फिल्मों की तरह रंगीन होती गई राजनैतिक दलों का चलन बदलता गया और धीरे धीरे पर्दे खुलते खुलते लोकलाज से किनारा कर लिया सभी ने सत्ता की चाहत ने सभी को अंधा कर दिया । लोकतंत्र को अपनी सुविधा से मनचाहे परिधान पहनाये गए समाजवाद पूंजीवाद से शुरू कर गरीबी हटाओ से परिवारवाद तक का सफर जारी है । बस एक बार जिसे सत्ता मिली जनता जिसके झूठे वादों पर भरोसा करती रही वो सभी मनमानी करते रहे और खुद को मसीहा समझते रहे । शासक बनकर किसी ने देश की जनता की समस्याओं का समाधान करने का कोई प्रयास नहीं किया और केवल अपना घर भरने और लूट करने पर ध्यान केंद्रित रहा । लोग बदहाल बर्बाद होते गए और राजनेता शाहंशाह और अमीर बनते गए जिस से सरकारी धन तथाकथित विकास की आड़ में उनकी तिजोरियां भरता रहा । चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट तक जानते हुए भी अनजान बन कर चुनावी राजनीति में धन और बाहुबल का दुरूपयोग होते देख खामोश रहे । लोकतंत्र किसी काल कोठरी में कैद होकर अंतिम सांसे गिन रहा है जैसे रोगी आईसीयू में वेंटीलेटर पर ज़िंदा हो । 
 
आजकल राजनीति आशिक़ों का कभी रूठने कभी मान जाने का खेल बन गया है । किसी को किसी पर भरोसा नहीं हर कोई इस हाथ दे उस हाथ ले की बात करता है । अपना बेगाना बनते देर नहीं लगती और अजनबी अनजान से मधुर संबंध बना लेते हैं आवश्यकता पड़ने पर बहुमत साबित करने को । मर्यादा की बात और आदर्शों की बात नैतकता की बात आधुनिक राजनीति के शब्दकोश में ये सभी उपयोगी नहीं हैं । अब राजनीति में सभी दोस्ती करते हैं दुश्मनी से बढ़कर ख़ंजर पीठ में घोप सकते हैं गले लगाकर । राजनीति किसी गंदगी कीचड़ से भरी नदिया जैसी बदबूदार है सभी कहते हैं लेकिन सभी अवसर मिलते ही डुबकी लगाने को तैयार हैं ।  किसी वैश्या की तरह बदनाम होकर भी जब करीब आती है तो आलिंगन करने में साधु सन्यासी से धनवान और शासकीय पद पर रहा अधिकारी न्यायधीश चला आता है संबंध बनाने गंदी राजनीति से दिल बचाना आसान नहीं है । नर्तकी के कोठे की रौनक चमक दमक ने सभी को पागल बना रखा है । 
 
  Hate Speech Case; Supreme Court On Atal Bihari Vajpayee Jawaharlal Nehru |  सुप्रीम कोर्ट बोला-धर्म के साथ राजनीति लोकतंत्र के लिए खतरा: कहा- जब नेता  दोनों को अलग कर देंगे ...

सितंबर 15, 2024

जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                 जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

मायके जाने से ठीक पहले श्रीमती जी ने घोषणा कर दी कि भविष्य में घर का गृहमंत्रालय का पद ही नहीं प्रधानमंत्री का पद भी उनके पास रहेगा । उनको प्रशासन चलाने में राष्ट्रपति की कोई आवश्यकता कभी स्वीकार नहीं थी इसलिए उस व्यवस्था को पहले ही अस्वीकृत कर दिया था । मुमकिन है ये योजना उन्होंने पहले से विचारधीन रखी हो और जैसे ही हमने उनको शादी के बाद जो तुमको हो पसंद गीत सुनाया था वो इरादा पक्का बन गया हो । लेकिन उनको कोई जल्दी नहीं थी कुछ समय मुझे अपने पति को निर्णय लेने देना इक रणनीति थी । धीरे धीरे उनके फैसले प्रभावी होने लगे थे बाद में मुझे जानकारी दी जाने लगी जिसे मैंने समझा की मुझे बोझ से राहत देने का प्रयास किया जा रहा है । ठीक उसी समय जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता अपने हाथ ले कर संविधान को दरकिनार कर तानाशाही घोषित की थी । लेकिन श्रीमती जी ने कभी भी अपनी प्रणाली को तानाशाही नहीं माना , उनका मत है कि वो सही हैं उनका हर फैसला उचित होता है कोई तानशाही नहीं उनको सत्ता का कोई मोह नहीं है । पत्नियां कभी गलत नहीं होती हैं पति हमेशा नासमझ और नादान होते हैं महिला संगठन हमेशा इस पर पूर्णतया सहमत होते हैं । हमारे घर में अघोषित तानशाही का मुखौटा अब उतर गया है पति परमेश्वर का भ्रम पहले ही टूट चुका था । हमने कभी किसी पड़ोसी को अपने घरेलू लोकतंत्र में दख़ल देने की अनुमति नहीं दी है जैसे अमेरिका जैसे देश मानवाधिकार की बात के बहाने आपस में देशों में लड़ाई और शांतिवार्ता साथ साथ चलवाने की कोशिश करते हैं । 
 
महिला मुक्ति मोर्चा को इस की सूचना जाने कैसे मिल गई जबकि हमने निर्धारित किया था कि पत्नी के मायके और ससुराल अर्थात मेरे परिवार को इसकी जानकारी नहीं होने देंगें दोनों ही । महिला संगठन आगामी बैठक हमारे निवास पर आयोजित करने वाले हैं श्रीमती जी बता रही थी फोन पर ।  इतना तो हम भी जानते थे कि ये इक दिन होना ही है मगर इतनी जल्दी अचानक होना हैरान कर रहा था । आखिर मायके से लौटते ही हम महिला संघठन की बैठक के आयोजक और प्रयोजक बन चुके थे । सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से श्रीमती जी का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया और थोड़ा नानुकर नखरे कर आग्रह स्वीकार कर लिया गया । संसद में महिला आरक्षण की संभावना बढ़ गई लगती है , हमको अपना भविष्य साफ दिखाई देने लगा है । हमारा सवभाव समझौतावादी रहा है कोई भी उपाय हमको खोये हुए अधिकार दिलवा नहीं सकता है । कुछ और समझते हों या नहीं इतना जानते हैं कि घर को संसद या विधानसभा जैसा नहीं बनने देना है क्योंकि तब सत्ता की खींचातानी में देश की तरह घर तहस नहस होना परिणीति होगा । जिस बात को यूं ही उनको खुश करने को कह दिया था ' जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे , तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे ' श्रीमती जी ने उसे दिल की आरज़ू बनाकर सच साबित कर दिया है । अब यही करना हमारी नियति बन गया है । 
 
 
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सितंबर 14, 2024

बात करने का सलीका ( संवाद - विवाद ) डॉ लोक सेतिया

  बात करने का सलीका  ( संवाद - विवाद ) डॉ लोक सेतिया

भाषा कोई भी हो उस की शुद्धता आवश्यक है , जिस तरह से आजकल वार्तालाप से लेकर तमाम अन्य स्थानों पर मिलावटी भाषा का इस्तेमाल किया जाने लगा है हमारी दरिद्रता को दर्शाता है । लेकिन उस से भी अधिक चिंता की बात तब लगती है जब अनुचित शब्दों अथवा बोलने में अनावश्यक रूप से अपशब्दों का उपयोग किया जाता है । सार्वजनिक मंच पर सभाओं में एवं टेलीविज़न सिनेमा में जिस भाषा का उपयोग करने लगे हैं सुन कर लगता है जैसे समाज को गंदगी और झूठ परोसा जाता है । क्या हम अच्छे शब्दों का उपयोग कर सही ढंग से अपनी बात अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकते हैं , तार्किक ढंग से बात समझाई जा सकती है फिर क्यों बात करते हुए अपनी वाणी पर संयम नहीं रख पाते और ऊंची आवाज़ में या कड़वे शब्दों का उपयोग कर किसी को मानसिक रूप से आहत करने का कार्य करते हैं । विचित्र बात है वही व्यक्ति जिस को पसंद करता खुश करना चाहता उस से प्यार से मधुर स्वर और शालीन शब्दों में संवाद करता है लेकिन जिस को पसंद नहीं करता उस से अलग और गलत तरीके से बात कर दर्शाता है कि मन में उस के लिए पहले से कोई धारणा बनाई हुई है । किसी की खराब बात को भी अनदेखा करते हैं तो किसी की भली बात भी हमको भाती नहीं है । उच्च शिक्षा ही नहीं उम्र का अनुभव भी हमको हमेशा उचित तौर तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त करना नहीं सिखला सका तो सोचना चाहिए कारण क्या है । किसी और में बुराइयां देखना आसान है खुद अपने आचरण को समझना परखना कठिन है , आप कितने अच्छे हैं सही हैं तब भी अगर आप का बात करने का तरीका और शब्दों का सभ्यतापूवक उपयोग नहीं है तो उसे बदलना आवश्यक है । अपशब्दों के तीर जब किसी को घायल करते हैं तो उनसे हुए ज़ख़्म कभी आसानी से भरते नहीं हैं । 
 
आजकल समाज में बीमार मानसिकता बढ़ती जा रही है , स्वार्थ की खातिर चाटुकारिता और अपनी नापसंद की बात पर बिना समझे क्रोधित होना दर्शाता है कि आप कितने खोखले किरदार वाले हैं । दोस्ती चाहे कोई संबंध कितना भी करीबी हो भाषा संयमित रखना ज़रूरी है , कुछ लोग आदी होते हैं हर बात में गाली गलौच की भाषा उपयोग करने के बेशक कितने शिक्षित और उच्च पद पर कार्यरत हों । आपसी वाद विवाद में भी शब्दों का प्रयोग सोच समझ कर करना चाहिए इधर इसी कारण आपसी संबंध और मतभेद ख़त्म नहीं होते बल्कि वार्तालाप से और कटुता पैदा होती है । बड़े छोटे होने से आपको अधिकार नहीं मिलता मनचाहे ढंग से किसी को अपमानित करने का । संसद विधानसभाओं में भाषा और शिष्टाचार की मर्यादा का उलंघन बहुत अधिक होने लगा है शायद आपराधिक छवि के लोगों के संसद विधानसभाओं में चुने जाने से भी ऐसा होता है लेकिन बहुत बार समाज में सभ्य और शरीफ़ समझे जाते लोग भी आवेश में विरोध करते हुए आपा खो बैठते हैं ।  हिंदी दिवस मनाते समय भाषा को बढ़ावा देने तक ही चर्चा नहीं की जानी चाहिए अपितु संवाद चाहे वाद विवाद हो इक सीमा निर्धारित की जानी चाहिए शब्दों को सोच समझ कर सावधानी से उपयोग करना चाहिए । मैं अधिकांश असहज महसूस करता हूं जब कोई बातचीत में शाब्दिक सभ्यता की मर्यादा को लांघता है , कुछ ऐसा ही इक काफी पुरानी ग़ज़ल में कहना चाहा है जो अभी तक डायरी में लिखी हुई थी संशोधित करना शेष था आज सुधारा है नीचे पढ़ सकते हैं ।
 

बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

हर गली हर बस्ती अपना घर लगता है  
बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है । 

सारे आलम में पसरा हुआ है सन्नाटा
सहमा -सहमा सा हर इक बशर लगता है । 
 
थरथर्राहट सी होने लगी धरती में 
गिर गया आंधी में वो शजर लगता है । 
 
ओट लेकर छिपता फिर रहा है परिंदा 
ले गया है कोई काट पर लगता है । 
 
आजकल हमसे कोई बहुत रूठा है 
हम मना लेंगे इक दिन मगर लगता है । 
 
कब तलक दुनिया करती इबादत आखिर 
लग गया उठने हर एक सर लगता है ।
 
रात दिन जो रहता था खुला ' तनहा ' अब 
हो गया उस घर का बंद दर लगता है ।   
 
 हर एक बात पे कहते हो तुम के 'तू क्या है - Poetry Hub

बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

  बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

हर गली हर बस्ती अपना घर लगता है  
बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है । 

सारे आलम में पसरा हुआ है सन्नाटा
सहमा -सहमा सा हर इक बशर लगता है । 
 
थरथर्राहट सी होने लगी धरती में 
गिर गया आंधी में वो शजर लगता है । 
 
ओट लेकर छिपता फिर रहा है परिंदा 
ले गया है कोई काट पर लगता है । 
 
आजकल हमसे कोई बहुत रूठा है 
हम मना लेंगे इक दिन मगर लगता है । 
 
कब तलक दुनिया करती इबादत आखिर 
लग गया उठने हर एक सर लगता है ।
 
रात दिन जो रहता था खुला ' तनहा ' अब 
हो गया उस घर का बंद दर लगता है ।   



सितंबर 13, 2024

उनकी प्यास उनका रोज़गार ( राजनीतिक कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

उनकी प्यास उनका रोज़गार ( राजनीतिक कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया  

हमारा भारत देश महान है ये हमेशा से प्रमाणिक है आपको यकीन करना चाहिए शंका नहीं इस देश के तमाम राजनेता और सरकारी कर्मचारी अधिकारी ईमानदार हैं जनता के सेवक हैं । किसी ने भी अपने कर्तव्य को अनदेखा नहीं किया है कोई रिश्वत कोई घोटाला कोई जालसाज़ी किसी ने कभी की नहीं है झूठे साबित हुए हैं उन पर लगाए तमाम आरोप । उनकी निस्वार्थ सेवा से देश आगे बढ़ रहा है लोकतंत्र मज़बूत होता गया है गरीबी शिक्षा सुविधाएं स्वास्थ्य सेवाएं हर किसी को उपलब्ध करवाई जा चुकी हैं । आपको किसी भी अख़बार किसी भी टीवी चैनल पर ऐसी खबरें सुनाई दिखाई नहीं देती हैं । राजनेताओं ने अपना सभी कुछ समाज को अर्पित कर दिया है खुद या परिवार के सदस्यों के लिए किसी को कुछ भी नहीं चाहिए लाभ का कोई पद नहीं बस सिर्फ जनसेवा देशसेवा का अवसर पाने की चाहत है । इन सभी ने मिलकर देश में सभी को समान अधिकार न्याय और सुरक्षा उपलब्ध करवा दी है , सत्ता पाने को बिना जल की मछली की तरह ये नहीं तड़पते हैं । लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर कर इन्होने परिवारवाद जातिवाद भाईचारा निभाने को कोई भी पक्षपात नहीं किया है । अपने बेटे बेटी दामाद पत्नी भाई भतीजे को सांसद विधायक मंत्री बनवाने की कोई कोशिश नहीं है क्योंकि ऐसा लोकतंत्र को खोखला करना है जानते हैं । अमरबेल की तरह सत्ता को जकड़ कर देश समाज को मिटाने का अपराध नहीं करते हैं । जाने कौन लोग हैं जिन्होंने सागर की तरह सभी नदियों का जल पी लिया है तब भी उनकी प्यास बढ़ती जा रही है । 
 
जब सभी कुछ मिलावटी है हवा प्रदूषित है जल स्वच्छ नहीं रहा ऐसे में किसी राज्य की साहित्य अकादमी ने सरकार से साहित्य को बढ़ावा और जागृति को करोड़ों रूपये स्वीकृति लेकर जल चेतना यात्रा निकाली है । पानी पर लिखी रचनाओं की बाढ़ सी आई इक विशेषांक निकाला गया जिस में शामिल रचनाओं को पुरुस्कार ईनाम इतियादी वितरित करने को सभाएं आयोजित कर पानी तक की प्यास बुझाई गई । कुछ पीने वालों ने शराब बिना कुछ मिलाये बोतल से पीने की शुरुआत कर कीर्तिमान स्थापित किया है । राज्यों में पानी के बटवारे को लेकर सियासी जंग का खेल कभी खत्म नहीं होने वाला ।  पानी का कोई रंग नहीं होता लेकिन रंग में भंग डालने वाले किसी को छोड़ते नहीं हैं । फ़िल्मी कलाकार पानी का महत्व समझा रहे हैं एयरकंडीशनर लगवा पानी बचा रहे हैं , दो बूंद पानी नहीं तो ज़िंदगानी नहीं गीत सुना रहे हैं । तारिकाओं को झरने तले नहलाते दिखला कोई और प्यास बढ़ा आग लगा रहे हैं । महानगर वाले स्विमिंग पूल में तैराकी सीख पानी का तापमान घटा बढ़ा स्नान का लुत्फ़ उठा रहे हैं । 
 
  शासक आधुनिक तौर तरीके आज़मा रहे हैं जनता को स्मार्ट फोन से जो चाहो मिलता है बता कर उलझा रहे हैं । रोज़ कितनी योजनाएं घोषित कर रहम खा रहे करम फरमा रहे हैं सब चमकती रेत से प्यास अपनी बुझा रहे हैं । लोग मुफ्त में सभी कुछ सरकारी ऐप्पस से पाकर घबरा रहे हैं आसमान छूने की चाहत में ज़मीन अपनी गंवाकर पछता रहे हैं । राजनीति सभी को समझा रही है शर्म इस बात की आती है चुनाव लड़ने की चाह करोड़ों की अधूरी रह जाती है । राजनीति अजब कारोबार है गली गली गांव गांव शहर शहर इसका विस्तार है दस को अवसर मिलता नब्बे बेरोज़गार है । साधारण जनता को अभी चाहिए लंबा सदियों तक  इंतिज़ार ही इंतिज़ार है चीखना चिल्लाना बेकार है नेताओं का खाली रहना रहना दो धारी तलवार है । देखा है हर राजनैतिक दल का खुला शोरूम है , बंद दरवाज़े में खैरात मिलती है कली दिल की खिलती है ज़िंदगी को इस जगह मोहलत नहीं मिलती है । इक सौ चालीस करोड़ जनता लुटने को तैयार है उसका नहीं कोई हिसाब नहीं लेकिन लूटने का अधिकार बहुत थोड़े नेताओं अधिकारियों को हासिल है । जनता को भीख मिलना बड़ी तकदीर की बात है सूखा मचाती बरसात है , नेताओं में दूल्हा है संग संग बारात है ।
 
राजनीति जैसे झुलसता हुआ रेगिस्तान है तिनके तिनके में छुपा हुआ तूफ़ान है । हर राजनेता की किसी तोते में रहती जान है जब तलक जान है जहान है अधूरा सभी का रहता अरमान है । सत्ता की हवेली दुनिया का सबसे शानदार श्मशान है ज़िंदा रहता खुद मरता है कितना नादान इंसान है । राजनीति की अजीब इक कहानी है मातम भी मनाना है बस्ती भी जलानी है पानी को आग लगाकर तस्वीर सजानी है ।
 
 
 
 Panaghat in 3 bighas and Agore in 1200 bighas, glass-like water appears on  the floor on the border of two villages. | धोरों के बीच बसे गांवाें से  तस्वीर: दो गांवों की
 

सितंबर 12, 2024

अजनबी बन जाएं हम दोनों ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया

   अजनबी बन जाएं हम दोनों ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया  

सदियां पुराने दो पेड़ हैं इस वन में , इक परंपरा है नाकाम आशिक़ अपने प्यार को पाने में असफल होकर यहां आते हैं अपनी व्यथा सुनाते हैं । मान्यता है कि ऐसा करने से अगर दोनों का प्यार सच्चा है तो उनका मिलन अवश्य हो जाता है । जिस पेड़ पर लाल रंग के फूल खिले हैं प्रेमिकाओं की बात सुनता है और पीले फूल जिस पर खिले हैं वो प्रेमियों की बात सुनता समझता है । दोनों पेड़ अपने पास आये प्रेमी प्रेमिका की बात को सुनते हैं और अपना आशीर्वाद देने को उन पर इक फूल गिराते हैं जिसे प्यार की सच्चाई स्वीकार करने का प्रमाण समझा जाता है । अकेले में दोनों पेड़ अपनी शाखाओं से आपस में लिपटते हैं और लगता है कुछ वार्तालाप करते हैं शायद जो दिन भर कोई आकर उनको बता गया है उस की बात करते हैं । दूर दूर तक इन पेड़ों को लेकर कहानियां प्रचलित हैं उन सभी ने इक बात समान बताई जाती है कि ये कभी दो प्रेमी थे जिनका मिलन नहीं हुआ किसी पिछले जन्म में और पुनर्जन्म लेकर ये पेड़ बनकर इस वन में साथ साथ रहने लगे कुछ फ़ासला रख कर । कहते हैं ये भी इक सबक है कि प्यार हमेशा बना रहे इस के लिए इन की तरह थोड़ा फ़ासला रखना चाहिए , आपस में बात कर सकें देख सकें मगर इक दायरा रहे जकड़ना नहीं चाहिए इक दूजे को कभी भी । प्यार ऐसा एहसास है जिसे महसूस किया जाता है परखने की ज़रूरत नहीं होती है । प्यार को कभी किसी भी तराज़ू पर तोला नहीं जा सकता कि कौन किसी से कितना प्यार करता है । 
 
आज इक लड़की आई है पेड़ से लिपट कर अपना दर्द बताने लगी है , तुझसे लिपट कर लगता है अपनी सब से प्यारी सखी से मिल रही हूं , जैसे वो मुझे उदास देख कितने सवाल पूछ रही हो । तुम्हारी आवाज़ नहीं सुनाई देती मगर मेरे मन में अपने आप सवाल आने लगे हैं शायद उसकी तरह तुम भी मेरा दुःख दर्द समझ रहे हो मैं कुछ भी छिपाना नहीं चाहती सब बताउंगी । मेरा नाम अंजलि है कॉलेज में पढ़ती हूं हम लड़कियां महिलाएं सजती संवरती हैं बनाव श्रृंगार करती हैं सुंदर वस्त्र पहनती हैं और इक सपना देखती हैं  कि कोई दिल की गहराई से चाहने वाला कभी मिले और अपना बना कर सब उसी पर न्यौछावर कर दें । माना नारी को सभी को खूबसूरत बनाया है मगर शारीरिक नहीं भीतरी सुंदरता किसी किसी में होती है , हर लड़की शायद लड़का भी ढूंढता है उसको जो उसके सुंदर मन को देख सके और प्यार करे । इसलिए जब कोई हमको वह बात कहता है जिसे सुनने को हम व्याकुल हैं तब हमारा दिल उड़ने लगता है ऊंचाइयों को छूने को क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है वही दुनिया में इक है जो हमारे लिए और हम उसी के लिए हैं । प्यार करने वालों के पास वही कुछ तौर तरीके होते हैं चांद तारे तोड़ लाना बिना आपके नहीं जीना जैसी बातें कहना जो काल्पनिक हैं जानते हुए भी अंतर्मन को छू जाती हैं । 
 
मुझे भी साहिल ने कहा था और मुझे उस पर विश्वास हो गया था , मैंने जैसे अपनी ज़िंदगी अपनी दुनिया सिर्फ साहिल तक सिमित कर ली थी , उसे पाकर कुछ भी और पाना बाकी नहीं रह गया था । हम सुनहरे सपनों की अपनी दुनिया में सातवें आसमान पर खुश थे । आपस में एक दूसरे को इक साधारण चांदी का छल्ला देते तो लगता ज़माने की सबसे कीमती चीज़ है । अचानक दो साल बाद साहिल बदला बदला लगने लगा है , वो विवाहित जीवन की ज़रूरतों परेशानियों पर संवाद करता है और घर बजट की चिंता पर विचार करने लगा है ।मेरा मन शादी करने से घबराने लगा है । खुले गगन में आज़ाद पंछी सी चिड़िया को पिंजरे का मंज़र सताने लगा है । साहिल कहता है विवाह ठीक से सोच समझकर करना चाहिए केवल प्यार से ज़िंदगी नहीं चलती है ।लगता है उस के प्यार में वो  पहले जैसी कशिश नहीं रही , इक ख़्वाब टूटता महसूस होने लगा है । उसकी प्रेमिका होना चाहती हूं जैसी पत्नी उसकी ज़रूरत है मेरे लिए बन पाना कठिन क्या नामुमकिन लगता है । मैंने सोचा है तो लगता है हमारा रिश्ता यहीं तक शानदार है विवाहित संबंध बनाने से प्यार बचेगा नहीं उसे जैसी संगिनी चाहिए कोई और हो सकती है । तभी इक फूल अंजलि की झोली में गिरा था और उसका अर्थ यही समझ आया था कि अंजलि का विचार सही है । अंजलि मन में कितनी उलझनें लिए आई थी मगर लौट रही थी शांत हो कर उचित निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंच कर । 

लड़की के चले जाने के बाद दोनों पेड़ उसी की चर्चा करने लगे थे , लाल फूल वाला पेड़ कह रहा था कि आजकल की युवती युवक को सालों लगते हैं समझने में प्रेमी प्रेमिका में जो अच्छा लगता है पति पत्नी में नहीं स्वीकार कर पाते हैं । उनको पति चाहिए जिस के पास ऐशो आराम सुख सुविधा और खूबसूरत आमदनी का साधन उपलब्ध हो कोई आर्थिक भौतिक कमी नहीं होनी चाहिए , बेशक प्यार की करने की फुर्सत तक नहीं मिले । शायद इस लड़की के माता पिता ने कोई ऐसा लड़का ढूंढ लिया है जिस से शादी करने को ये हामी भर देगी और प्रेमी से किसी अगले जन्म में मिलने की बात कह भूलने भुलाने का वादा करेगी , उस लड़के की सोच क्या है कौन जाने । 

अगले दिन सुबह ही उस लड़की अंजलि का प्रेमी साहिल पीले फूलों  वाले पेड़ के पास आया था । बेहद उदास था असमंजस में लग रहा था दिल कुछ चाहता था दिमाग़ कुछ अलग समझाना चाहता था । दुविधा में कोई निर्णय लेना कठिन होता है पेड़ से मुखतिब हो बोला था दोस्त तुम ही बताओ मुझसे कहां भूल चूक हुई जो मेरी प्रेमिका ने कल मुझे प्रेम संबंध को तोड़ने की बात कही है । उसको खुश रखने को क्या क्या नहीं किया अभी तक लेकिन पढ़ाई खत्म कर नौकरी मिली तो अलग शहर में रहने पर तजुर्बा हुआ कि वेतन में गुज़ारा करना है तो खर्चों में कटौती करना ज़रूरी होगा । माता पिता दोस्त कब तक सहयोग कर सकते हैं प्रेमिका को जिस शानदार आरामदायक ज़िंदगी की चाहत है उसे पूरा करने में खुद को भुलाना होगा जीना दुश्वार हो सकता है । ज़रूरतें बढ़ती जाती हैं महीने के आखिर में क्रेडिट कार्ड की सीमा समाप्त हो जाती है , प्रेमिका को समझाना कठिन है और शादी के बाद पत्नी से नहीं कहा जा सकता कि कोई चिराग़ नहीं होता जो मांगने पर असंभव को भी संभव करे । अंजलि प्यार भरे सपनों की बात सुनना चाहती है समझना नहीं चाहती कि जीवन सपना नहीं कठोर वास्तविकता है । 

          आप से दोस्त की तरह सच बता रहा हूं कि मुझे नहीं मालूम ज़िंदगी में प्यार महत्वपूर्ण है या फिर व्यावहारिकता से निर्णय लेना चाहिए । मुझे बड़ा भाई समझाता है कि अपने साथ दफ़्तर में नौकरी करने लड़की से संबंध बना लेना चाहिए उसे लगता है वो भी ऐसा चाहती है तभी मुझ से अपनी ज़िंदगी की बातें करती है । दोस्ती प्यार की  शुरुआत हो सकती है शायद वो दफ़्तर की साथी यही चाहती है मैंने महसूस किया है लेकिन अंजलि को लेकर जैसा होता है वो भावना नहीं लगती मुझे । लेकिन मेरा यकीन है कि वो जीवन की वास्तविकता को समझती है और अच्छी पत्नी साबित होगी । क्या मैं अंजलि से संबंध तोड़ कर उस कार्यालय सहयोगी से गंभीरतापूर्वक विवाह करने को संबंध बनाने की पहल कर सही करूंगा जब खुद अंजलि भी यही सोचती है । शायद हम दोनों का प्यार अपनी परिणीति तक नहीं पहुंच सकता है । अपने चाहने वाले की इच्छा पूरी करना , ये भी प्यार ही तो है ।  अब लगता है तुम दोनों लाल फूल और पीले फूल अलग अलग क्यों हुए होंगे । मुझे भी हालात को समझ यही निर्णय स्वीकार कर दूर से ही प्यार को देखना  उसकी महक को ज़िंदा रखना होगा । जैसे ही साहिल ने ये बात कही पेड़ से इक फूल उसकी झोली में आ गिरा था । उसकी चिंता दूर हो गई थी ज़िंदगी को इक मोड़ देना था खूबसूरत छोड़ने से नई शुरुआत करने के लिए ।
 
 Sahir Ludhianvi Nazm Chalo Ek Baar Phir Se Ajnabi Ban Jayein - Amar Ujala  Kavya - टूटे हुए दिलों को ख़ूबसूरत मोड़ देती है साहिर की यह नज़्म
 
     

सितंबर 11, 2024

दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                  दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

शादी - विवाह जन्म जन्म का बंधन होता है अक़्सर सात जन्मों की भी चर्चा होती है लेकिन ये पहला है कि आख़िरी भगवान भी नहीं बता सकता हां उम्र भर साथ निभा सकें तो उतना भी काफी है लेकिन खुश रह कर । कुछ प्रेम विवाह करते हैं कुछ दो परिवार मिलकर आपसी तालमेल से व्यवस्थित ढंग से कुंडली इत्यादि मिलाकर विवाह करवाते हैं लड़के लड़की को आपस में मिलवा कर समझ कर उनसे पूछ कर निर्धारित करते हैं । विवाह जैसा भी हो नतीजा वही होता है समझ विवाह होने के बाद आती है ये वास्तविकता कि शादी के बाद हर लड़की केवल पत्नी और हर लड़का केवल पति बन कर रह जाते हैं । पति - पत्नी दोनों शब्द एक समान प्रतीत होते हैं जबकि दोनों का भाग्यफल कभी एक जैसा नहीं हो सकता है । घर परिवार गृहस्थी की गाड़ी इन दो पहियों पर चलती है संतुलन कायम रखना पड़ता है । पत्नी को इक विशेष अधिकार हासिल होता है कि वो अपने पति को हर दिन बताती रहे कि उस में क्या क्या खामियां हैं शायद उसको पहले से मालूम होता है कि अपने जैसा काबिल समझदार जीवनसाथी इस जन्म में मिलना संभव नहीं । जैसा भी उपलब्ध है उसे ही सुधारना है उम्र भर अगले जन्म सही पति मिल सके इस कामना से । अपने पति की अच्छाई को भी नासमझी और मूर्खता साबित करना पत्नी का दायित्व होता है ऐसा उसको कोई समझाता नहीं बल्कि खुद ब खुद उसे ऐसा परमज्ञान प्राप्त हो जाता है । दार्शनिक जैसे लोगों ने बताया हुआ है कि विवाहित जीवन में सही तालमेल बिठाने को इस बात को स्वीकार करना आवश्यक होता है कि सभी अच्छे गुण पत्नी में हैं और हर पति अवगुणों की खान है । समझदार पति हमेशा विनती करता रहता है ' मेरे अवगुण चित न धरो ' । 
 
भगवान की तरह पत्नियां अपने पति की इस विनती को कभी सुनती नहीं हैं । अपने पति परमेश्वर की गलतियां ढूंढ कर उसे प्रताड़ित कर पत्नी मानती है कि उसे पति से अथाह प्रेम है जान से बढ़कर चाहती है उसको । वास्तव में इस गूढ़ रहस्य को कभी कोई नहीं समझ पाया है कि जो व्यक्ति किसी काम का नहीं लगता उसी से सभी काम बढ़िया ढंग से करवाने की आकांक्षा रखते हैं । विवाह कोई गलती नहीं भूल नहीं कोई गुनाह भी नहीं तब भी ऐसा करने की सज़ा दोनों को मिलती अवश्य है । बड़े बज़ुर्ग कहते हैं कि पति पत्नी का रिश्ता प्यार का कम तकरार का अधिक होता है प्यार घट भी सकता मगर तकरार कभी कम नहीं होती ख़त्म हो नहीं सकती बढ़ती ही जाती है । विवाहित युगल में झगड़े होना हैरानी की बात नहीं होती चिंता तब होती है जब दोनों तंग आकर चुपचाप रहने लगते हैं । ये खतरा है आने वाले तूफ़ान का संकेत है जिसे अनदेखा करने पर नौबत अलग अलग रहने की चाहत में तलाक तक पहुंच सकती है जिस से संतान और परिवार का ढांचा बिगड़ सकता है । समझौता दोनों को करना पड़ता है सामाजिक पारिवारिक संबंधों को कायम रखने के लिए । 
 
संबंध मधुर होना अच्छा है कभी थोड़ा नमकीन भी चलता है , खट्टा - मीठा ठंडा गर्म अपनी अपनी जगह उचित होते हैं मगर जब बात कड़वाहट या तीखा असहनीय हो जाये तब वातावरण बोझिल होने लगता है । ऐसे में किसी एक को गलती नहीं करने पर भी क्षमा याचना करनी पड़ती है और जो झुकता है वही सच में समझदार होता है । तोड़ना आसान जोड़ना कठिन होता है , शादी विवाह इक ऐसी पहेली की तरह है जो लगती आसान है लेकिन कोई भी हल नहीं कर सकता बस इस बात की कठिनाई है । मान्यता है कि जो समझदार होते हैं पति पत्नी उन से अच्छा कोई दोस्त नहीं हो सकता लेकिन जो नासमझ होते हैं वो किसी खतरनाक दुश्मन से भी खराब होते हैं । दाम्पत्य जीवन में खबर नहीं होती कि कब कौन दोस्त नहीं दुश्मन की तरह आचरण करने लगता है जो सही शिष्टाचार को नहीं समझे उस दिलदार से तौबा करना उपाय होता है । 
 
 अब तक की सबसे छोटी शादी? शादी के 3 मिनट बाद ही कपल का तलाक - PUNE PULSE