अगस्त 20, 2012

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  दो आंसू ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

हर बार मुझे
मिलते हैं दो आंसू
छलकने देता नहीं
उन्हें पलकों से ।

क्योंकि
वही हैं मेरी
उम्र भर की
वफाओं का सिला ।

मेरे चाहने वालों ने
दिया है
यही ईनाम
बार बार मुझको ।

मैं जानता हूं
मेरे जीवन का
मूल्य नहीं है
बढ़कर दो आंसुओं से ।

और किसी दिन
मुझे मिल जायेगी
अपनी ज़िंदगी की कीमत ।

जब इसी तरह कोई
पलकों पर संभाल कर 
रोक  लेगा अपने आंसुओं को
बहने नहीं देगा पलकों  से
दो आंसू ।  
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

...बढ़कर दो आंसुओ से....