अगस्त 12, 2012

POST : 35 हम पुरानी लकीरें मिटाते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हम पुरानी लकीरें मिटाते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हम पुरानी लकीरें मिटाते रहे
कुछ नये  रास्ते खुद बनाते रहे ।

आशियाँ इक बनाया था हमने कहीं
उम्र भर फिर उसे हम सजाते रहे ।

हर ख़ुशी दूर हमसे रही भागती
हादसे साथ अपना निभाते रहे ।

तुम भी मदहोश थे हम भी मदहोश थे
दास्ताँ फिर किसे हम सुनाते रहे ।

ख्वाब देखे कई प्यार के रात भर
जब खुली आँख सब टूट जाते रहे ।

इक ग़ज़ल आपकी क्या असर कर गई
हम उसे रात दिन गुनगुनाते रहे ।

जा रहे हैं मगर फिर मिलेंगे कभी
दीप आशा के "तनहा" जलाते रहे । 
 

     

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