जनवरी 16, 2022

ये दीवानगी है पागलपन है ( ख़ुदपरस्ती ) डॉ लोक सेतिया

    ये दीवानगी है पागलपन है ( ख़ुदपरस्ती ) डॉ लोक सेतिया 

ज़रा सा चिंतन करोगे तो समझ जाओगे जिसको कीमती हीरे जवाहरात समझते रहे ऐसे पत्थर हैं जिनकी ज़रूरत ही नहीं थी। मूल्यवान वस्तु आपको आसानी से राह चलते नहीं मिलती है इतना सभी जानते हैं बाज़ार से खरीदने से पहले आंकलन करते हैं बढ़िया है कि घटिया और जिस कीमत पर मिल रही है क्या उतना महत्व है भी या नहीं। खाना कपड़े उपयोग का सामान आपको ढूंढना पड़ता है उचित दाम पर अच्छी गुणवत्ता और अपनी ज़रूरत को देख कर। फिर आपने इधर उधर से मिली जानकारी सोशल मीडिया की पढ़ाई से धर्म ईश्वर और जीवन की कठिन समस्याओं का हल कैसे समझ लिया। सिर्फ यही सोचकर कि इस में आपकी जेब से कोई पैसा खर्च नहीं हुआ आपको हर चीज़ लाजवाब बेमिसाल अनमोल लगती है। जबकि आपको खबर ही नहीं आपकी सबसे मूल्यवान चीज़ आपका समय खर्च नहीं व्यर्थ बर्बाद हुआ है। धन दौलत शोहरत घटती बढ़ती रहती है इक समय ही है जिसकी रफ़्तार हमेशा वही रहती है दिन रात के चौबीस घंटे हर किसी को बराबर मिलते हैं कौन सार्थक ढंग से उपयोग करता है कौन समय को गंवाता है अपने पर निर्भर है। 
 
ईश्वर को पाना चाहते हैं तो पहले समझना होगा क्या है ईश्वर , गली गली कोई नाम देकर कोई मूर्ति कोई तस्वीर लगाने से हासिल कुछ नहीं होगा। साधु सन्यासी संत महात्मा जिसको खोजते रहे जीवन भर उनको जाने कितनी तपस्या से मिला अपने भीतर और हम सोचते हैं कहीं भी राह चलते मिलेगा हमको। सिर्फ सोच लेना कि हम उसको जानते हैं समझते हैं और मानते हैं काफी नहीं है। दुनिया को दिखाने को कुछ भी कर सकते हैं आस्था विश्वास के नाम पर लेकिन खुद अपनी अंतरात्मा से छल नहीं कर सकते उसको कैसे भरोसा दिलवाओगे ईश्वर को पा लिया है। जिस ने उसको पा लिया उसको कुछ भी और पाने की ज़रूरत कहां रहती है जबकि हम कितना भी मिला और पाने की चाहत रखते हैं। अमृतकलश मिल जाये तब भी प्यासे के प्यासे रहने वाले बदनसीब लोग होते हैं। उपदेशक धर्मगुरु आसानी से मिलते हैं दुनिया में लेकिन सच्चा मार्गदर्शक सही रास्ता धर्म की राह चलने की शिक्षा देने वाला मिलता नहीं तलाश करना पड़ता है। 
 
अपने कभी अच्छी किताब अच्छा संगीत अच्छी कहानी अच्छा साहित्य तलाश किया है समझने पढ़ने सुनने को ज़िंदगी का अर्थ जानने को। टीवी पर सिनेमा में भव्य सभागार में आपको जो चमक दमक जो शोर आकर्षित करता है क्या आपको उपयोगी लगता है खुद को समझने और सही गलत की परख करने को। मिलेगा ढूंढने से जैसे पुराना फ़िल्मी संगीत आपको निराशा से निकाल रौशनी की तरफ ले जाता है। हर शब्द का अर्थ और महत्व होता है लेकिन आधुनिक काल में शब्द अर्थ को छोड़ शोर करते लगते हैं इन दोनों का अंतर समझना होगा। किसी स्कूल के बच्चों की आवाज़ें सुनते हैं तो मन को ख़ुशी मिलती है लेकिन किसी बाज़ार या मंडी का शोर आपको बेचैन करता है। पंछियों की आवाज़ सुकून देती है झरने की आवाज़ सुरीली लगती है जबकि मशीन और विधवंस होने की ध्वनि आपको विचलित करती है। पैसा कमाना कला का मकसद नहीं होता है जो कलाकार अभिनेता निर्माता निर्देशक बस पैसा कमाने को इनका इस्तेमाल करते हैं वास्तव में अपने धर्म और कर्तव्य से भटक गये हैं। 
 
अच्छा साहित्य कला संगीत कथा कहानी आपको अच्छा इंसान बनाते हैं। जो भी आपको हिंसा नफरत और आपस में भेदभाव छल कपट की तरफ ले कर जाते हैं आपके हितेषी नहीं दुश्मन हैं। सच कितना भी कड़वा लगे आपका भला करता है जबकि झूठ भले शहद से मीठा लगता है होता ज़हर की तरह हानिकारक ही है। स्मार्ट फोन से आपको फ़ायदा होता है या नुकसान आपके विवेक पर निर्धारित करता है , मुझे सब मालूम है ख़ुदपरस्ती बेहद ख़तरनाक होती है। सुकरात कहते हैं जो सोचता है मुझे कुछ नहीं पता वो कुछ जानता है लेकिन जिसको लगता है मुझे सब मालूम है वास्तव में वो कुछ भी नहीं जानता है। खुद अपने आप पर मोहित होना बड़ा रोग है जिसके शिकार अधिकांश होते हैं जिनको अपनी सूरत सबसे सुंदर लगती है। ऐसे लोग जिनको किसी व्यक्ति गुरु धर्म विचारधारा की अंधभक्ति की आदत होती है मानसिक रूप से दिवालिया होते हैं। सावन के अंधे की तरह उनको हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है।

जनवरी 15, 2022

तुझे तेरी बेदर्दी की कसम कोरोना ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

तुझे तेरी बेदर्दी की कसम कोरोना ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

वास्तव में उनको ऐसी उम्मीद नहीं थी कितने चाव से कितने अपनेपन से उसको ज़र्रे से आंधी तूफ़ान बनाया था आसमान पर पहुंचाया था वही अपने पालनहार को आंखें दिखाने लगा है। किसी और दल की राजनीति के काम आने लगा है उनसे नज़रें मिलाता नहीं नज़र बचाकर उधर जाने लगा है । चूहा शेर को सताने लगा है शेर बिल्ली मौसी को बुलाने लगा है , पुराना इक नग़्मा गुनगुनाने लगा है। 
 
हमीं से मुहब्बत हमीं से लड़ाई , अरे मार डाला दुहाई। 
अभी नासमझ हो उठाओ ना खंजर , कहीं मुड़ ना जाए तुम्हारी कलाई। 
सितम आज मुझ पर जो तुम ढा रही हो , बड़ी खूबसूरत नज़र आ रही हो। 
जी चाहता है के खुद जान दे दूं , मुहब्बत में आए ना तुम पर बुराई। 
हमें हुस्न की हर अदा है गंवारा , हसीनों का गुस्सा भी लगता है प्यारा। 
उधर तुमने तीर - ए - नज़र दिल पे मारा , इधर हमने भी जान कर चोट खाई। 
करो खून तुम ना मेरे जिगर का , बस एक वार काफ़ी है तिरछी नज़र का। 
यही प्यार को आज़माने के दिन हैं , किए जाओ हम से यूं ही बेवफ़ाई। 
 
फिल्म ' लीडर ' 1964 वर्ष की से गीत याद आया है तो 2022 साल में लीडर को मतलब समझना पड़ेगा। कोरोना से उनका रिश्ता गहरा है साथ निभाया है बचाया है भंवर से और किनारे लगाया है। बन कर हमसाया नाता कितनी बार आज़माया है भला कौन उस से बढ़कर काम आया है। ज़ालिम ये सितम तो मंज़ूर नहीं मुहब्बत का ये दस्तूर नहीं रकीबों से गले मिलने लगे हो आशिक़ हैं हम तुझ से मग़रूर नहीं। मुझे तुमने समझा नहीं है दुनिया में कोई भी मुझसा नहीं है। मुझे छोड़ गैर से प्यार करने वाला दुनिया में बचता ज़िंदा नहीं है। कोरोना तुमने मेरी मुहब्बत को देखा है मेरी दुश्मनी से वाकिफ़ नहीं तुम , दोस्त आशिक़ भले नहीं सबसे बेहतर लेकिन दुश्मन होकर मुझसे बुरा कोई नहीं है। मिर्ज़ा ग़ज़लिब कहते हैं। 
 
इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही , मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही। 
कत्आ कीजे न तअल्लुक हम से , कुछ नहीं है तो अदावत ही सही। 
 
कोरोना तुम मेरी पहली मुहब्बत नहीं हो कुर्सी मेरी पहली सच्ची मुहब्बत है तुम सिर्फ इक सीढ़ी हो और मुझे मालूम है ऊपर पहुंच कर सबसे पहले उस सीढ़ी को गिराना राजनीति का ज़रूरी सबक है। मेरी नहीं तो किसी और की होने को बचोगी नहीं मुझे मालूम है तुझे कब कहां कैसे ख़त्म कर मातम मनाना है जश्न मनाने की तरह। ख़िलौना समझ खेलते हैं जो अपने ख़िलौने किसी को नहीं देते कभी कोई छीनने की कोशिश करे तो तोड़ देते हैं ख़िलौने से नहीं अपनी ज़िद से प्यार करते हैं जो वो बच्चे कभी बड़े नहीं होते हैं खुद नहीं रोया करते रुलाते हैं सबको हंसने को मिट्टी से खेलना धूल उड़ाना शरारती बच्चों की फ़ितरत होती है और आदत कभी जाती नहीं है।

जनवरी 06, 2022

हाल-ए-दिल आ के पूछे हमारा जो खुद , ऐसा भी एक कोई ख़ुदा चाहिए । ( आरज़ू ) डॉ लोक सेतिया

  एक संविधान एक भगवान एक विधान ( हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया

वो जो भी है किसी भी नाम से पुकारो एक ही है और उसने दुनिया भी एक ही बनाई है। जो उसको मानते हैं या जो उसको नहीं मानते हैं ऊपरवाले ने सभी को समान बनाकर सब एक जैसा दिया है। जो समझते और समझाते हैं उसकी पूजा अर्चना महिमा का गुणगान करने से जो भी पाप किये हैं क्षमा किये जा सकते हैं और मोक्ष मिल सकता है खुद गुमराह हैं। ईश्वर की अदालत में हिसाब अच्छे बुरे कर्मों का होना चाहिए दुनिया की शासकों की व्यवस्था की तरह न्याय अन्याय में पक्षपात भला कैसे हो सकता है। भगवान ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु सभी को याचक कैसे बना सकते हैं उनको अपनी बनाई दुनिया के सभी इंसानों से कुछ भी पाने की ज़रूरत कैसे हो सकती है जब विधाता सभी को सब देता है। अचरज की बात है ईश्वर को अपने होने की बात खुद कहने की चाहत भला क्यों हो सकती है उसका होना कोई छिपी हुई राज़ की बात नहीं है ज्ञान की आंखों से पता चलता है अज्ञानता की पट्टी बंधी हुई जिनकी आंखों पर उन्हीं को नज़र नहीं आता। आस्था विश्वास विवेक बुद्धि से पैदा होता है किसी के आदेश उपदेश से तोते की तरह रटने से कदापि नहीं। अगर हम अपने विवेक से चिंतन मनन कर समझेंगे तो सब समझ आएगा। धार्मिक कथाओं ग्रंथों में सही मार्गदर्शन देने का कार्य किया गया है लेकिन सोचने की बात ये है कि कोई भी आपको सही गलत रास्ता बताता है मगर उस पर चलना और आचरण कर उचित मंज़िल तक पहुंचना आपको अपने कदमों से है। उधर नहीं जाना सभी जगह लिखा हुआ होता है लेकिन किसी ने भी उस हिदायत को कभी माना ही नहीं। वास्तविकता यही है आपकी आत्मा आपका मन जानता है क्या उचित क्या अनुचित है फिर भी सभी स्वार्थ लोभ अहंकार के कारण मनमानी करते हैं और समझते हैं जैसे नियम कानून का उलंघन कर रिश्वत जुर्माना देकर बच जाएंगे पकड़े जाने पर वैसा ऊपरवाले की अदालत में भी स्तुति अर्चना चढ़ावा काम आएगा। इस से बढ़कर अज्ञानता और नासमझी क्या हो सकती है। क्या भगवान को किसी इंसान से कुछ चाहिए मतलब आप ईश्वर को देने वाले बन सकते हैं ये आपकी आस्था नहीं कुछ और है विधाता के दरबार में झूठ का कारोबार नहीं चलता है। ईश्वर की परिकल्पना करने वालों ने उसके अनेक नाम दिये और अपने अपने आराध्य की कथा लिख कर उनका गुणगान किया लेकिन उनकी कथाओं में महत्व उसी को बड़ा और महान शक्तिशाली आदर्श साबित करने की खातिर अन्य किरदारों की उपेक्षा और उनका महत्व कम करना ठीक उसी तरह है जैसे पिता को संतान सबसे बेहतर समझती है मानती है या हर माता को अपने बच्चे सबसे प्यारे लगते हैं। 
 
विधाता ने जीव जंतु पेड़ पौधे हवा पानी धरती जाने क्या क्या बनाया और इंसान को भी बनाया लेकिन उसने सभी को बंधन मुक्त रखा अगर चाहता तो सभी सिर्फ वही कर्म करते जो उसकी मर्ज़ी या अनुमति होती लेकिन तब आदमी पेड़ पक्षी जीव सभी इक मशीन होते निर्जीव निर्धारित कार्य करने को। सभी ज्ञानीजन कहते हैं इंसान कर्म अपनी मर्ज़ी से कर सकता है नतीजा ऊपरवाले की मर्ज़ी से और अच्छे बुरे कर्मों का फल भी मिलना अवश्य है देर है अंधेर नहीं है। मूर्खता है हम इंसान सीसीटीवी कैमरे से निगरानी करते हैं और समझते हैं ऊपरवाला नहीं देखता हम क्या करते हैं क्या क्या नहीं करते हैं। अपने भगवान को भी धोखा देना चाहते हैं इस से बढ़कर नादानी नासमझी क्या होगी। आदमी मतलबपरस्त होकर अपने मालिक से हेराफेरी करने की कोशिश करता है तो वो हंसता होगा कहीं से देख कर। मेरी पुस्तक ' फ़लसफ़ा ए ज़िंदगी ' की दूसरी ग़ज़ल इस विषय पर है। पढ़ते हैं फिर समझते हैं। 
 
ढूंढते हैं मुझे , मैं जहां  नहीं हूं 
जानते हैं सभी , मैं कहां नहीं हूं ।
  
सर झुकाते सभी लोग जिस जगह हैं
और कोई वहां , मैं वहां नहीं हूं ।

मैं बसा था कभी , आपके ही दिल में
खुद निकाला मुझे , अब वहां नहीं हूं ।
 
दे रहा मैं सदा , हर घड़ी सभी को
दिल की आवाज़ हूं ,  मैं दहां  नहीं हूं ।

गर नहीं आपको , ऐतबार मुझ पर
तुम नहीं मानते , मैं भी हां  नहीं हूं ।

आज़माते मुझे आप लोग हैं क्यों
मैं कभी आपका इम्तिहां  नहीं हूं ।

लोग "तनहा" मुझे देख लें कभी भी
बस नज़र चाहिए मैं निहां  नहीं  हूं।

लोग मुझे वहां तलाश करते हैं जहां मैं नहीं हूं , जबकि सब को पता है ऐसी कोई जगह नहीं जहां मैं नहीं हूं। जिस जगह सर झुकाते हैं वहां जाने कौन है। आपके दिल में रहता था निकाल दिया अब नहीं रहता उस जगह। मैं कोई चेहरा नहीं मन की आवाज़ हूं। मुझे आज़माना मत मैं आपका इम्तिहान नहीं हूं। सिर्फ नज़र चाहिए मैं दिखाई दे जाऊंगा छुपा हुआ नहीं हूं। जिनको मुझ पर यकीन नहीं मानते नहीं , मैं भी कहता हूं कि मैं नहीं हूं। बस सभी खुद अपने आप को पहचान लें काफी है आस्तिक नास्तिक के भंवर में हिचकोले खाती नैया नहीं तूफान सी ज़िंदगी को पार कर किनारे लगने की कोशिश की ज़रूरत है।
 
 
हमारे देश का एक संविधान है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित है और धर्मनिरपेक्ष है सभी को इक समान अधिकार आज़ादी से जीने न्याय पाने विचारों को अभिव्यक्त करने के देने को वचनबद्ध है। कोई भी शासक कोई सरकार संविधान से ऊपर नहीं हो सकती है। इसलिए जिस किसी की मानसिकता संविधान के विपरीत होती है उनको न्याय और संवैधानिक संस्थाओं का आदर कर उनके अनुरूप कार्य करना पड़ता है केवल बहुमत हासिल करने से संविधान से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं मिल सकती है। खेद का विषय है कि बहुत लोग देश और संविधान से अधिक किसी व्यक्ति दल अथवा विचारधारा को महत्व देने लगे हैं। ऐसे में शासक और अधिकारी सत्ता का दुरूपयोग कर देश की व्यवस्था से खिलवाड़ कर अपने समर्थक के अपराधों को अनदेखा और विरोधी को निरपराध सज़ा देने जैसा कार्य करते हैं। हर नागरिक अपने विचार और धार्मिक आस्था पर चल सकता है लेकिन किसी को भी किसी अन्य के विचारों से असहमत होने पर नफरत या हिंसा की अनुमति नहीं मिल सकती है। देश का कानून न्यायपालिका सबको समान मानकर सुरक्षित समाज बनाने को प्रतिबद्ध हैं। मेरा हमेशा से यही कहना रहा है इक शेर मेरी ग़ज़ल का है। 
 

                 हाल-ए-दिल आ के पूछे हमारा जो खुद  , 

                     ऐसा भी एक कोई ख़ुदा चाहिए ।