अगस्त 14, 2012

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जश्न ए आज़ादी हर साल मनाते रहे ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

जश्ने आज़ादी का हर साल मनाते रहे
शहीदों की हर कसम हम भुलाते रहे ।
 
याद नहीं रहे भगत सिंह और गांधी 
फूल उनकी समाधी पे बस चढ़ाते रहे ।

दम घुटने लगा पर न समझे बात ये कि  
काट कर पेड़ क्यों रहे शहर बसाते रहे ।

लिखा फाइलों में न दिखाई दिया कभी 
लोग भूखे हैं सब नेता सच झुठलाते रहे ।

दाग़दार हैं इधर भी और उधर भी मगर  
आईना खराब है चेहरे अपने छुपाते रहे ।

आज सोचें ज़रा क्योंकर ऐसे होने लगा 
बाड़ बनकर राजनेता देश खेत खाते रहे ।

यह न सोचा कभी भी आज़ादी किसलिए
ले के अधिकार सब फ़र्ज़ अपने भुलाते रहे ।

मांगते सब रहे रोटी दो वक़्त छोटा सा घर
पांचतारा वो लोग कितने होटल बनाते रहे ।

खूबसूरत जहाँ से है हमारा वतन , गीत को 
वो सुनाते रहे सभी लोग भी हैं दोहराते रहे ।
 
 

 
 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बाड़ बनकर..खेत खाते रहे