सितंबर 12, 2025

POST : 2015 क्षणिकाएं ( हास्य - व्यंग्य कविताएं ) डॉ लोक सेतिया

           क्षणिकाएं ( हास्य - व्यंग्य कविताएं ) डॉ लोक सेतिया   

सरकार है कायदा है कानून संविधान है 
भूखों का पेट भरने को रोटी नहीं है , पर 
भूखे मर जाने पर मिलता सभी को बराबर 
लाखों की मुआवज़ा राशि का प्रावधान है ।  
 

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बड़ा ही निराला अदालती खेल है
अनगिनत बेगुनाह हैं कैदी जेलों में  
हमेशा से गुनहगारों के लिए मिलती 
बचने को अग्रिम ऐंटिसिपेटरी बेल है ।    
 

लोकतंत्र भी इक खेल तमाशा है 
कभी तोला है तो कभी वो माशा है 
मुंह में पानी है नेताओं प्रशासन के  
जनता क्या है बस मीठा बताशा है । 
 

मंच पर भाषण देते समय जनाब 
चिंता भ्रष्टाचार पर जतला रहे थे 
दलालों को इशारों इशारों में ही 
घर शाम को अपने बुला रहे थे ।  
 

 

 

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