क्षणिकाएं ( हास्य - व्यंग्य कविताएं ) डॉ लोक सेतिया
1
सरकार है कायदा है कानून संविधान है
भूखों का पेट भरने को रोटी नहीं है , पर
भूखे मर जाने पर मिलता सभी को बराबर
लाखों की मुआवज़ा राशि का प्रावधान है ।
2
बड़ा ही निराला अदालती खेल है
अनगिनत बेगुनाह हैं कैदी जेलों में
हमेशा से गुनहगारों के लिए मिलती
बचने को अग्रिम ऐंटिसिपेटरी बेल है ।
3
लोकतंत्र भी इक खेल तमाशा है
कभी तोला है तो कभी वो माशा है
मुंह में पानी है नेताओं प्रशासन के
जनता क्या है बस मीठा बताशा है ।
4
मंच पर भाषण देते समय जनाब
चिंता भ्रष्टाचार पर जतला रहे थे
दलालों को इशारों इशारों में ही
घर शाम को अपने बुला रहे थे ।
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