रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
रंक भी राजा भी तेरे शहर मेंमैं कहूं यह बात तो किस बहर में ।
नाव तूफां से जो टकराती रही
वो किनारे जा के डूबी लहर में ।
ज़ालिमों के हाथ में इंसाफ है
रोक रोने पर भी है अब कहर में ।
मर के भी देते हैं सब उसको दुआ
जाने कैसा है मज़ा उस ज़हर में ।
मत कभी सिक्कों में तोलो प्यार को
जान हाज़िर मांगने को महर में ।
अब समझ आया हुई जब शाम है
जान लेते काश सब कुछ सहर में ।
एक सच्चा दोस्त "तनहा" चाहता
मिल सका कोई नहीं इस दहर में ।
{ अब किसी पर हम भरोसा क्या करें
लोग सब जाते बदल इक पहर में। }
1 टिप्पणी:
Wahh बहुत खूब
एक टिप्पणी भेजें