दिसंबर 25, 2025

POST : 2046 देश समाज की बर्बादी को अग्रसर ( लूट का शासन ) डॉ लोक सेतिया

  देश समाज की बर्बादी को अग्रसर ( लूट का शासन ) डॉ लोक सेतिया 

शायद नहीं अब यकीनन कहा जा सकता है कि हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में शामिल सभी अंग विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका का गठजोड़ पैसे वाले और गुंडे बदमाश से लेकर गंभीर अपराधियों तक से पूर्णतया हो चुका है । देश की अधिकांश जनता के लिए इन सभी के भीतर रत्ती भर भी मानवीय संवेदना नहीं है बल्कि उसको किसी न किसी तरह बहला फुसला कर झूठे वादों प्रलोभन के जाल में फंसा कर जैसे बेबस कर दिया गया है । राजनेताओं की राजनीति सभी दलों की सिर्फ सत्ता पर काबिज़ होकर पूरी व्यवस्था को अपने लिए हथियाना बन चुका है । देशभक्ति समाजसेवा जनकल्याण गरीबी भूख असमानता ये सब किसी राजनेता किसी प्रशासक किसी न्यायधीश की प्राथमिकता नहीं रही है , इन बातों का झूठा प्रचार कर डंका पीटना जानते हैं आचरण बिल्कुल उल्टा करते हैं । धनवान बड़े बड़े पूंजीपतियों से राजनेताओं सरकारी उच्च अधिकारियों न्यायधीशों तक सत्ता और पैसे की हवस में इस सीमा तक पागल हो चुके हैं कि देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को घुन की तरह खोखला करने के बाद और भ्र्ष्टाचार को अधिकार बनाने के बाद अब प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर मानव जीवन तक को खतरे में डालने को आतुर हैं । समाज के प्रति कोई कर्तव्य किसी को भी याद नहीं है बल्कि समाज की बुनियाद को खोखला कर रहे हैं । जनता को धोखा देने को समझाते हैं कि आने वाले इतने सालों बाद देश अर्थव्यवस्था की बुलंदी पर पहुंच जाएगा और कोई भी भूखा बेघर नहीं रहेगा ।  आज़ादी का अर्थ ये कदापि नहीं था कि कुछ लोग सरकार की योजनाओं से लेकर धर्म और समाजसेवा एवं पत्रकारिता फिल्म टेलीविज़न को अपने स्वार्थों के लिए दुरूपयोग कर उनकी असली छवि को ही धूमिल कर देंगे । 
 
आजकल सभी सरकारी योजनाएं बड़ी बड़ी कुछ कंपनियों की तिजोरियां भरकर बदले में चंदा रिश्वत लेकर खुद ऐशो आराम की ज़िंदगी हासिल कर मौज मनाने का माध्यम बन गई हैं । उद्योगपतियों की मर्ज़ी से नियम कानून बनाने बदलने में नैतिकता की बात क्या पर्यावरण तक को दांव पर लगाने का कार्य किया जाने लगा है । विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि सरकार जंगलों पहाड़ों से पर्यावरण का विनाश कर रही है जिस से भविष्य में मानवता का जीवन खतरे में पड़ने वाला है । लेकिन इन सभी को करोड़ों लोगों की कोई चिंता नहीं है क्योंकि इन सभी ने भारत देश को अपना समझा ही नहीं हैं इन सभी को कभी किसी और देश में जाकर बसना है । तमाम ऐसे लोगों ने ऐसा प्रबंध कर लिया है अपने परिवार को किसी सुरक्षित देश में भेजने का । ऐसे लोग कभी देशभक्त नहीं होते हैं सिर्फ देशभक्ति की बातें करते हैं देश को समाज को कुछ देते नहीं बल्कि बदहाल कर रहे हैं । आपको लगता होगा ये धार्मिक आचरण करते हैं जबकि वास्तविक जीवन में अधर्म ही उनका आधार है सच्चाई और ईमानदारी धर्म की राह पर चलते तो ख़ुदगर्ज़ नहीं परमार्थ की बात करते और देश समाज का ऐसा खराब हाल होता ही नहीं । आपने कभी चावार्क ऋषि की बात सुनी होगी , ऐसा केवल एक व्यक्ति नहीं था बल्कि दार्शनिक शोध करने वाले बताते हैं कि ये इक विचारधारा थी जिस के कितने ही अनुयायी हुआ करते थे ।    
 
चावार्क की सोच वाले ये सभी बड़े बड़े लोग हैं जिनको लगता है कि बस यही लोक ही वास्तविक है और कोई स्वर्ग नर्क नहीं है कोई भगवान नहीं है । आपको मौज मस्ती करनी है अपनी ख़ुशी की खातिर जीना है , जब ऐसे शासक प्रशासक अन्यायी अत्याचारी और अपराधी लोगों को संरक्षण देते हैं तब उनको पाप पुण्य भलाई बुराई की नहीं बस अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति करनी होती है । ऐसे लोगों का धार्मिकता प्रदर्शन अपने असली चरित्र को छिपाने को होता है । लेकिन सिर्फ वही नहीं हम में भी बहुत लोग यही करते हैं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे गिरजा घर जाते हैं लेकिन सभी अनुचित कर्म भी करते रहते हैं । कुछ लोग गुमराह करते हैं कि जितने भी पाप करते रहो कुछ तरीके हैं पापमुक्त होने को , जबकि वास्तव में अगर परमात्मा है तो ऐसा होने कैसे दे सकता है । अपने भीतर से अपराधबोध को हटाने का ये खोखला प्रयास है , व्यक्ति हमेशा बेचैन रहता है खुद अपनी ही अंतरात्मा से डरता है । आजकल शासक पुरानी सभी परिभाषाओं को बदल रहे हैं जिन बातों को अनैतिक और असमाजिक कहा जाता था उनको आवश्यक घोषित किया जाने लगा है , विकास के नाम पर विनाश को आमंत्रित करने लगे हैं लोभी ख़ुदगर्ज़ स्वार्थी सत्ताधारी लोग ।  पिछले कुछ सालों में सरकारी योजनाओं की भेंट करीब तीन करोड़ पेड़ काटकर किये गए हैं जबकि आदमी का सांस लेना दूभर हो गया है , मगर सरकार की बेशर्मी झलकती है जब ब्यान आता है कि फेफड़ों का स्वच्छ हवा से कोई रिश्ता नहीं है जैसे शासकों का ईमानदारी और समाज कल्याण से वास्तव में कोई नाता नहीं है उनको सभी कुछ चाहिए किसी भी कीमत पर और ऐसा करने में सामने आने वाली बाधा को मिटाया जाना उसको अपना अधिकार लगता है । 
 

ठंडी ठंडी छांव ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

घर के आंगन का वृक्ष हूं मैं
मेरी जड़ें गहराई तक फैली हैं
अपनी माटी में
प्यार से सालों साल सींचा है
माली ने पाला है जतन से
घर को देता हूं छाया मैं ।

आये हो घर में तुम अभी अभी
बैठो मेरी शीतल शीतल छांव में
खिले हैं फूल कितने मुझ पर
निहारो उनको प्यार से
तोड़ना मत मसलना नहीं
मेरी शाखों पत्तों कलियों को
लगेंगे फल जब इन पर
घर के लिये  तुम्हारे लिये 
करो उसका अभी इंतज़ार ।

काटना मत मुझे कभी भी
जड़ों से मेरी
जी नहीं सकूंगा 
इस ज़मीन को छोड़ कर
मैं कोई मनीप्लांट नहीं
जिसे ले जाओ चुरा कर
और सजा लो किसी नये गमले में ।

देखो मुझ पर बना है घौसला
उस नन्हें परिंदे का
उड़ना है उसे भी खुले गगन में
अपने स्वार्थ के पिंजरे में
बंद न करना उसको
रहने दो आज़ाद उसको भी घर में
बंद पिंजरे में उसका चहचहाना
चहचहाना नहीं रह जायेगा
समझ नहीं पाओगे तुम दर्द उसका ।

जब भी थक कर कभी
आकर बैठोगे मेरी ठंडी ठंडी छांव में
माँ की लोरी जैसी सुनोगे
इन परिंदों के चहचहाने की आवाज़ों को
और यहां चलती मदमाती हवा में
आ जाएगी तुम्हें मीठी मीठी नींद । 
 
 
 Aravali mountain range, अरावली पर्वत श्रृंखला, विश्व की सबसे पुरानी पर्वत  श्रृंखला, अरावली पर्वत, - YouTube

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