तमाम उम्र क्यों खड़े थे हम ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
तमाम उम्र क्यों खड़े थे हमयही सोच के चल पड़े थे हम ।
न पतवार थी न कोई माझी
हौसलों से हुए बड़े थे हम ।
वक़्त आया जो फैसले का
खुद अपने से भी लड़े थे हम ।
ज़माने की आग से पक गए
वरना कच्चे घड़े थे हम ।
झुक गए तेरी मुहब्बत में
तबीयत से सरचड़े थे हम ।
मोम की तरह पिघल गए
कभी फौलाद से कड़े थे हम ।
फरियाद कातिल से न करेंगे
इसी बात पे अड़े थे हम ।
1 टिप्पणी:
यही सोच के 👌👍
एक टिप्पणी भेजें