पास आया नज़र जो किनारा हमें ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
पास आया नज़र जो किनारा हमेंमौज ने दूर फेंका दोबारा हमें ।
ख़ुदकुशी का इरादा किया जब कभी
यूँ लगा है किसी ने पुकारा हमें ।
लड़खड़ाये तो खुद ही संभल भी गए
मिल न पाया किसी का सहारा हमें ।
हो गई अब तो धुंधली हमारी नज़र
दूर से तुम न करना इशारा हमें ।
दुश्मनों से न इतना करम हो सका
हमने चाहा जो मरना न मारा हमें ।
हमको मालूम है मौत देगी सुकूं
ज़िंदगी से मिला बोझ सारा हमें ।
बिन बुलाये यहां आप क्यों आ गये
सबने "तनहा" था ऐसे निहारा हमें ।
2 टिप्पणियां:
Bdhiya ghzl waahh 👌👌👍
ज़िन्दगी से मिला बोझ👌👍
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