रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
रंक भी राजा भी तेरे शहर मेंमैं कहूं यह बात तो किस बहर में।
नाव तूफां से जो टकराती रही
वो किनारे जा के डूबी लहर में।
ज़ालिमों के हाथ में इंसाफ है
रोक रोने पर भी है अब कहर में।
मर के भी देते हैं सब उसको दुआ
जाने कैसा है मज़ा उस ज़हर में।
क्या भरोसा आप पर "तनहा" करें
आप जाते हो बदल इक पहर में।
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