अक्टूबर 23, 2025

POST : 2033 भ्र्ष्टाचार पुराण की कथा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

          भ्र्ष्टाचार पुराण की कथा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

   { भ्र्ष्टाचार के अंत के बाद , 2014 की बात से आगे 2025 की बात । जारी }

 
मुझे जान लो मुझे समझ लो मुझे पहचान लो , मुझमें सभी हैं सब में मैं हूं , मेरी आराधना कर मनचाहा हमेशा वरदान लो । मुझे मिटाने की बातें करते हैं जो लोग खुद कितनी आरज़ूएं रखते हैं , हर आरज़ू पर दम निकलता है मेरी चौखट पर हर शख़्स फिसलता है । आपको क्या मालूम जिनको ऐसी संस्था में नियुक्ति दी जाती है उनका पहला कदम ही मेरी तरफ ही उठता है , किसी उच्च पद  से सेवानिवृत होकर पहले से बढ़कर वेतन सुविधाएं पाने का सुखद अनुभव समझाता है किस से किस का कितना गहरा नाता है । मेरा अंत खुद ऐसे लोगों को भविष्य को ही अंधकारमय बनाता है , भला कोई अपने हाथ से अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाता है । मुझे ख़त्म करने वाला विभाग मेरे नाम से सभी पाता है खाता खिलाता है मुझको अपना स्वामी समझ कर हर दिन मेरे गीत गाकर खुशियां मनाता है हम दोनों का अटूट नाता है ।  सरकार सभी विभाग पुलिस प्रशासन जानते हैं जिस दिन अपराध लूट बेईमानी झूठ अन्याय अत्याचार समाज में नहीं रहे उनकी कीमत दो टके की नहीं रहेगी । जब सभी को हर अधिकार न्याय खुद ब खुद मिलने लगेगा कौन उनके सामने आकर सर झुका हाथ जोड़ कर उनका रुतबा ऊंचा होने का एहसास करवाएगा । लोकतंत्र संविधान कायदा कानून जिस दिन वास्तविकता बन जाएगा सबसे अधिक मुश्किल शासक वर्ग की बढ़ाएगा , कौन अंधे को घर बुलाएगा जब पता होगा साथ इक देखने वाला आकर बोझ बढ़ाएगा । 
 
भगवान को सामने किसी ने देखा है कभी भी नहीं लेकिन विश्वास सभी करते हैं कोई है ज़रूर , कुछ ऐसा ही मेरे लिए है मैं हर जगह रहता हूं सभी जानते समझते हैं । रिश्वत दलाली कमीशन घूस देने लेने वाले जानते हैं लेकिन सामने नहीं आने देते मैं सौ पर्दों में छिपकर रहता हूं मैं आपका आप सभी मेरे हैं ये सिर्फ मैं ही कहता हूं । आजकल की दुनिया में कोई इतना रिश्ता निभाता है बस मेरी शरण जो भी आता है उसका कल्याण हो जाता है । मुझको बुरा कहने वाले भी मुझे दिल से चाहते हैं  कुछ लोग महफ़िल जमाते हैं जाम से जाम टकराते हैं कुछ मयखाने में छुपते छुपाते आते हैं होश वाले क्या जाने कैसे बिना पिये कदम डगमगाते हैं । जिनको शान ओ शौकत आन बान चाहिए वो मुझको क्या समझेंगे मेरा अस्तित्व कैसे मिटाएंगे मुझे बिछड़ कर खुद अपनी हसरतों का जनाज़ा कैसे उठाएंगे । सागर हाथ में लिए क्या प्यासे ही मर जाएंगे ,  सुबह शाम झूठी कसम खाकर मौज मनाएंगे ।  रिश्वत की कहानी कितनी पुरानी है , अनंत काल से रिश्वत शासन और साधरण जनता के बीच का पुल है जो सत्ता की नदी पर बनाया गया है , आपसी सहमति से इस हाथ ले उस हाथ दे का संबंध निभाया गया है । रिश्वत खाकर भी काम नहीं करना बुरी बात है सभी मंत्रालयों को यही सबक पढ़ाया समझाया गया है । जब भी सरकार पर कोई आंच आई है कोई जांच आयोग बनाया गया है हमेशा ये नुस्ख़ा आज़माया गया है दुनिया को निर्दोष होने का प्रमाणपत्र दिखाकर उल्लू बनाया गया है । कविता में यही विस्तार से समझाया गया है । लोकपाल भी इसी तरह कुछ लोगों को रोज़गार देने का शानदार ढंग बनाया है किसी को कुछ समझ नहीं आया है भ्र्ष्टाचार चरम पर खड़ा है उसका परचम ऊंचा लहराया है । भगवान के अलग अलग अवतार जैसे ही मेरे स्वरूप बदलते रहते हैं , पैसा नहीं कुछ भी उपहार से लेकर नकद उधार तक आपसी भरोसे से आदान प्रदान किया जाता है जिस से पूछो गाता मेरी गाथा है , सामने मेरे झुकता हर सर हर माथा है । 
 
 

जांच आयोग ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

काम नहीं था
दाम नहीं था
वक़्त बुरा था आया
ऐसे में देर रात
मंत्री जी का संदेशा आया
घर पर था बुलाया ।

नेता जी ने अपने हाथ से उनको
मधुर मिष्ठान खिलाया
बधाई हो अध्यक्ष
जांच आयोग का तुम्हें बनाया ।

खाने पीने कोठी कार
की छोड़ो चिंता
समझो विदेश भ्रमण का
अब है अवसर आया ।

घोटालों का शोर मचा
विपक्ष ने बड़ा सताया
नैया पार लगानी तुमने
सब ने हमें डुबाया ।

जैसे कहें आंख मूंद
सब तुम करते जाना
रपट बना रखी हमने
बिलकुल न घबराना ।

बस दो बार
जांच का कार्यकाल बढ़ाया
दो साल में रपट देने का
जब वक़्त था आया ।

आयोग ने मंत्री जी को
पाक साफ़ बताया
उसने व्यवस्था को
घोटाले का दोषी पाया ।

लाल कलम से
फाइलें कर कर काली
खोदा पर्वत सारा
और चुहिया मरी निकाली ।    
 
    लोकपाल की संरचना | VIA मध्यस्थता केंद्र

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