अक्टूबर 20, 2025

POST : 2032 ख्वाबों ख्यालों की दुनिया ( जागते - सोते ) डॉ लोक सेतिया

       ख्वाबों ख्यालों की दुनिया ( जागते -  सोते  ) डॉ लोक सेतिया 

सपना ही था पिछली रात का अभी तक उलझन है कि उसका अर्थ क्या है , मैंने तो कभी तमाम अन्य लोगों की तरह चाहत नहीं की थी उसकी दुनिया में जाने की तो क्या कभी पास जाकर करीब से देखने की भी । मैंने तो हमेशा दूर से भी उस दुनिया को देखने से बचने की कोशिश की थी जिधर जिस रास्ते से जाना होता है उस राह की तरफ जाने से बचता ही रहा । उसको लेकर भव्यता और ऐसी तस्वीर सभी से सुनी समझी थी जिस का कोई ओर छोर मिलता ही नहीं कहां से शुरू कहां तक उसकी सीमा है कोई नहीं जान पाया हर कोई उलझकर रह गया । मुझे ऐसी दुनिया और दुनिया वालों को लेकर कोई कौतूहल मन में नहीं रहा कभी सोचा मेरे काम की नहीं ऐसी दुनिया जहां कोई बड़ा कोई छोटा कोई आम कोई ख़ास समझा जाता हो । फिर कैसे रात सपने में उस दुनिया में चला गया सामने ऊंची महल की दीवार की तरफ कोई प्रवेशद्वार ढूंढा नहीं और पीछे पहुंच कर हैरान था कच्ची मिट्टी की दीवार थी कोई सीढ़ी भी नहीं थी फिसलने का गिरने का डर था फिर भी जैसे कोई मुझे बुला रहा था चले आओ घबराओ मत । और मैं बिना किसी सहारे जाने कैसे उस ऊंचाई पर चढ़ता ही गया और ऊपर से भीतर नीचे उस दुनिया में पहुंच गया था , हवाओं में उड़ने जैसा प्रतीत हुआ था । लेकिन उस दुनिया को लेकर जैसा सोचा था उस के विपरीत घना अंधेरा छाया हुआ था कोई शोर शराबा नहीं आवाज़ नहीं ख़ामोशी छाई हुई थी । उस दुनिया के मालिक बनाने वाले को देखने की कोशिश की तो मिलते जुलते अनगिनत लोग नज़र आये लेकिन यकीन नहीं हुआ कोई सही में वह ही है । यही सोच कर ठहरा तो कुछ आहत सी सुनाई दी जैसे कोई पुकार रहा हो , जाकर देखा तो वह अकेला कुछ अजीब हालत में दिखाई दिया । महसूस हुआ यही है इस दुनिया को बनाने वाला इसका मालिक पर किसलिए ऐसा जैसे कोई अपने ही घर में अजनबी हो हमारी ही तरह से । बैठा था ज़मीन पर मैले कुचैले कपड़े पहने मैं भी वहीं बैठ गया बिना कुछ भी बोले , अभिवादन करना भी ज़रूरी नहीं लगा हम दोनों को शायद । 
 
ऐसा पहली बार हुआ जैसे कभी कोई दोस्त हुआ करता था जिस का साथ घंटों तक चुपचाप बैठे बीत जाता था बगैर कोई शब्द बोले ही कितनी बातें कह सुन लेते थे । कुछ वैसे ही मन में जो भी बात कोई सवाल आता अपने ही भीतर से जवाब मिल जाता , ऐसा वार्तालाप समझाना संभव नहीं है , फिर भी कोशिश करता हूं जो भी समझ आया मुझे उस ख़ामोशी में बैठे । जैसे उसको मालूम है मुझे क्या क्या पूछना है वह बताता ही गया मैं समझता भी रहा । उसने क्या क्या नहीं बनाया था कुछ इंसानों को भरोसा कर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सभी कुछ उन्हीं को सौंप कर बताया कि ये किसी किताब की तरह लिखा हुआ है क्या कर्तव्य है क्या कैसे करना है और दुनिया में सभी से प्यार कर बराबर बांटना है । शपथ उठाने जैसी बात कभी ज़रूरी ही लगी थी क्योंकि खुद अपने ही बनाये खिलौने जैसे लोग कभी बनाने वाले को ही अनावश्यक समझने लगेंगे ये भला कल्पना भी कैसे करता कोई भी बनाने वाला । लेकिन मुझे कहा गया आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है हमने आप से सभी हासिल कर लिया है और आपकी दुनिया अब हमारी विरासत है उसको और भी समृद्ध कर आगे बढ़ाना हमारा धर्म है । मेरे कच्ची मिट्टी के बनाये घर को सुरक्षित रखने को ईंट पत्थर जाने क्या क्या लाकर पर्वत जैसी इक दीवार खड़ी कर सामने अपनी महलों जैसी दुनिया रंगीन और चमकदार निर्मित कर दुनिया को आधुनिक बनाने लग गए सभी । पहले कुछ साधु सन्यासी मुझे खोजते थे फिर कुछ जिज्ञासु मुझे समझने में जीवन व्यतीत किया करते थे आजकल मुझे चुनौती देने लगे हैं मगर मुझे खुद को प्रमाणित या साबित करने की आवश्यकता ही नहीं है । 
 
मुझे मालूम ही नहीं है कि मैं क्या कोई अपराधी हूं जिसे युगों युगों तक इक कैद में रहना है , कोई मुझसे मिलता नहीं मेरा हालचाल नहीं पूछता सभी जिनको मैंने बनाकर सर्वस्व सौंप दिया उसे अमानत नहीं बल्कि अपनी मलकियत समझ कर मनचाहे ढंग से उपयोग करने लगे हैं । मैंने उनसे उनकी बनाई दीवार के बाहर नहीं जाने और देखने का वादा किया था जिसे निभाते निभाते लगने लगा है जैसे मैं खुद ही अपनी पहचान खो बैठा हूं या भूल ही चुका हूं कि असली सिर्फ मैं ही हूं बाक़ी सभी इक दिन ख़त्म होने को ही बनाये हैं । हैरान होता हूं चार दिन की ज़िंदगी मिली है सभी को फिर भी सभी समझते हैं उनका कभी अंत नहीं होना है । देख रहें है कितने लोग आये जिये और अपनी ज़िंदगी बिताकर चले भी गए कहां किसी को नहीं मालूम फिर भी अपने अंजाम को लेकर कभी सोचते ही नहीं , आगाज़ भी याद नहीं है कि इतनी बड़ी कायनात जिस में कितने धरती अंबर से अंतरिक्ष तक सीमारहित सृष्टि में इक कतरा इक बूंद भी उनका अस्तित्व नहीं खुद को क्या क्या समझते हैं कहलाते हैं । शुरू में ही बता दिया था कि इक सपना देखा था लेकिन शायद अभी आधा ही देखा था कि नींद से जाग गया लेकिन ख़्वाब अभी तक ख्यालों में विचरण कर रहा है । कौन था किस का सपना था मुझे समझना है अभी ज़िंदगी छोटी है अर्थ गहरा है ।   
 
 Khayalon Ki Duniya | Hindi Poetry | By Vipin Baloni

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