गरीबी की रेखा , अनचाही औलाद ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
( कल मैं इस पुरानी व्यंग्य रचना को अलमारी की फाईलों में तलाश करता रहा , बड़ी याद आ रही थी लेकिन लाख कोशिश करने पर भी नहीं मिली । विवश हो कर मैंने भी गरीबी की रेखा पर कुछ नया नहीं लिखा मगर अमीरों की ख़त्म नहीं होने वाली गरीबी पर नया व्यंग्य लिख कर ब्लॉग पर सभी को भेज दिया । जाने कहां से इक कहानी का वीडियो मिल गया जो अनचाही बेटी की ही बात पर थी , उसे शेयर किया , आज पहले पुरानी व्यंग्य रचना का फोटो जो आज आखिर मिल ही गया जब कुछ और ही तलाश कर रहा था , अंत में उस कहानी का वीडियो भी साथ देना उचित लग रहा समझने को । )
एक मां है , जिसके तीन बच्चे हैं । बड़ा बेटा कमाऊ पूत की तरह है , उस से छोटा जानता है कि उसे अपना अधिकार कैसे मांगना है , और मांगने से भी ना मिले तो छीन कर ले लेना है । तीसरा बच्चा उस बेटी की तरह है जो मां को एक बोझ सा लगती है और मां अक्सर यह सोचती है कि काश वो कभी पैदा ही ना होती । सरकार भी ऐसी ही इक मां है जिस की कोख से गरीबी पैदा हुई है विकास पुत्र की चाह में एक अनचाही संतान इक बोझ । सरकार के लिए इक तिहाई जनता , जो गरीबी की रेखा से नीचे मर मर कर ज़िंदा रहती है ऐसी ही किसी बेटी की तरह है । हर चुनाव में सभी राजनेता भाषण देते हैं तो उसकी बदहाली पर घड़ियाली आंसू बहाते हैं यह वादा करते हैं कि इस मरणासन बेटी का उद्धार किया जाएगा , उसे दो वक़्त रोटी का हक मिलेगा , उसकी बिमारी को जड़ से ख़त्म कर दिया जाएगा निर्धारित सालों में । 78 साल में वो शुभ दिन लाया नहीं गया जिस का सपना हर बार दिखलाया गया । जैसे ही चुनाव निपट जाते हैं सरकार जिस भी दल की या घठबंधन की बन जाए तब उस मां को गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या की सुध लेना याद नहीं रहता , उसका सारा ध्यान दो बेटों की तरफ लगा रहता है ।
कैसे बड़े बड़े उद्योग धंधे मुनाफ़ा कमा सकें ताकि सरकारी तिजोरी खज़ाना और राजनैतिक दलों को मिलने वाला चंदा मिलता रहे सभी राजनेता चोर चोर मौसेरे भाई हैं , उनकी लड़ाई सत्ता की देवी को अपनी बनाकर रंगरलियां मनाने को है जनता की भलाई से किसी का कोई रिश्ता नाता नहीं है । हर सरकार बड़े बड़े शहर शानदार होटल पार्क सड़कें बनाती है खुद की खातिर और दो दुलारे बेटों की खातिर क्योंकि उनकी ख़ुशी में ही सरकार की टिकने की गारंटी होती है । जगमग रौशनी हर दिन रंगारंग कार्यक्रम शान ओ शौकत भरा जीवन लाडले जिगर के टुकड़ों के लिए ज़रूरत है जिस पर जनता से वसूला कर बर्बाद किया जाता है जिसे कल्याणकारी जनकार्यों पर शिक्षा स्वास्थ्य रोज़गार पर खर्च करना चाहिए था । ऊंठ के मुंह में जीरे की तरह बुनियादी सुविधाओं पर नाम मात्र को बजट आबंटित किया जाता है जिस का अधिकांश भाग बंदरबांट में चला जाता है । गरीबी की रेखा और चिंतनीय होती जाती है जिस की चिंता किसी को नहीं होती है ।
सरकार इक मां ही है जिसको पहले अधिक से अधिक कर जुर्माना कितनी तरह से वसूलना होता है ताकि बड़ी बड़ी योजनाएं अपने प्रिय नेताओं अफ्सरों और करीबी लोगों की खुशहाली के लिए बनाई जा सकें सगी मां जिनकी है गरीबी वालों से सतौली जैसा बर्ताव करती है कमाऊ पूत मां को प्यारे हैं । अधिकांश जनता को इनसे कुछ हासिल नहीं होता सिवा ऐसे माहौल दिखाई देने के जो उनके लिए ज़ख्म पर नमक छिड़कने जैसा है , आपको कुछ नहीं मिलता कुछ को बेतहाशा मिलता है । ख़ास वर्ग और वंचित शोषित वर्ग के बीच में इक मध्यम वर्ग है जो कोई न कोई तरकीब अपना कर अपने लिए थोड़ा हिस्सा हासिल कर लेता है । ऐसा करने के लिए उसको ख़ामोशी से बहुत कुछ देख कर अनदेखा करना पड़ता है , जब भी वो बोलने की कोशिश करता है उसे चुप रहने की हिदायत दी जाती है वर्ना जो मिलता है उसे भी गंवाना पड़ सकता है ।
गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाली जनता रुपी बेटी को हर ज़ुल्म सहना पड़ता है बेबस होकर सर झुकाये खड़ी रहती है सत्ता की चौखट पर न्याय की झूठी आस लगाए । उस ने अपना भाग्य समझ स्वीकार कर लिया है अपने हालात को । उसको संविधान जैसी किसी चीज़ का पता नहीं है उसका कोई जीने का मौलिक अथवा मानवीय अधिकार नहीं है उसको खैरात की तरह कुछ मिलता है बदले में अपने आप को सत्ता की गुलामी बंधन स्वीकार करने पर । कभी कभी उसको भीख मांगने पर भी लताड़ लगाई जाती है ऐसा कहा जाता है गरीबी तुम देश के लिए शर्म और बदनामी का सबब हो । विदेशी लोग आते हैं तो गरीबी को ढकने छुपाने को कितना पैसा खर्च करती है सरकार कोई हिसाब नहीं जिसका । यही मापदंड है हमारे देश और समाज का , बेटों से सम्मान होता है और बेटी बदनामी का कारण होती है , तभी कोई भी नहीं चाहता घर में बेटी का जन्म हो , गरीबी आये कौन चाहता है । आजकल जो शोर सुनाई देता है जब कभी लड़कियां कुछ ख़ास कर इक कीर्तिमान स्थापित कर दिखाती है तब गर्व की बात कहते हैं मगर वास्तव में आज भी लड़की लड़का इक समान समझना तो क्या बराबर उनको मिलता नहीं कुछ भी रसोई से ससुराल तक कड़वा सच यही है ।
बेटों को सब करने की छूट है आवारगी की तरह लूट भ्रष्टाचार अपराध कर बचाव करवा उसको नेता बनने का भविष्य समझते हैं । जिनको कोई काम नहीं आता राजनीति उनके लिए सही अवसर की तरह है पहली सीढ़ी यही है । राजनेताओं के कारनामों से अधिकारी लोगों की मनमानी पूर्वक प्रशासनिक शैली से कोई बदनामी नहीं होती है देश की बदनामी मिलावट नकली सामान से धोखाधड़ी के कारोबार से कदापि नहीं होती है । हमको अपनी ऐसी पहचान शर्मसार नहीं करती है सिर्फ गरीब कहलाना हमको पसंद नहीं है आखिर हमको तीसरी विश्व की अर्थव्यवस्था बनना है कीमत कुछ भी चुका सकते हैं । सरकार हमेशा सोचती रहती थी कि काश ये अनचाही औलाद गरीबी की रेखा ख़त्म हो जाती जन्म से पहले ही उसका अंत कर दिया जाता । लेकिन अब सभी दलों को इक रहस्य मालूम हुआ है कि भूखे नंगे गरीब लोग उनकी बैंक में जमा फ़िक्स डिपॉज़िट की पूंजी जैसे हैं भरोसे का वोट बैंक हैं थोड़ा पाकर उपकार मानते हैं । जबकि शैतान बेटों की उदंड प्रशासन और अधिकारी वर्ग सत्ता की परेशानी का कारण बन कर शासक से बचाव की आपेक्षा रखते हैं अपने बिगड़े बेटों का बचाव सरकार को करना ही पड़ता है । आखिर सरकार ने गरीबी की रेखा का भी इक नामकरण कर आधे से अधिक लोगों को झोली फैलाने को विवश कर अपनी वाहवाही का ग़ज़ब ढंग ढूंढ लिया है करोड़ों लोग पांच किलो अनाज और कुछ नकद राशि के बदले अपने वोट बेच रहे हैं और राजनेता खुले आम खरीद रहे हैं । चुनाव आयोग अदालत सभी तमाशाई बन खड़े हैं । सरकार सबसे अधिक गगरीब होकर भी दानवीर कहलाती है जनता का धन
जनता को लौटाना बदले में खुद मसीहा बन कर इतराना इसको लोकतंत्र हर्गिज़
नहीं कह सकते ये जालसाज़ी है छलना है भेस बदल कर जनता छली जाती है । सच तो ये है कि सरकार किसी की सगी नहीं होती है सरकार सिर्फ अपनी भलाई चाहती है हर कीमत पर हमेशा हर जगह दुनिया का चलन है ।
1 टिप्पणी:
शानदार आलेख...विकास की चाह में अनचाही...गरीबी👌👍
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