कोई और करे तो गलत खुद करें तो सही ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
कुछ बातें कभी भी बदलती नहीं हैं , उनका अर्थ उनका अभिप्राय बदल देते हैं , सरकार प्रशासन ही नहीं सामान्य लोग भी कहते हैं कि हमसे पहले कितना कुछ उचित नहीं था मगर हमने वही सब किया भी , लेकिन कोई अनुचित नहीं करार दे सकता है जैसे हमने किया बढ़िया है । सही क्या गलत क्या के मापदंड बदल देते हैं और कहते हैं कि समय बदल गया है हालात बदले हुए हैं जबकि वास्तव में बदलता कुछ भी नहीं है सिर्फ नामकरण कर दिया पाप को पुण्य घोषित कर दिया , लूट को समाज की सेवा कह दिया , मनमानी करने को देश कल्याण नाम दे दिया जाता है । कौन कहता है कि लिखी हुई इबारत को कोई मिटा नहीं सकता है इधर इतिहास को अलग ढंग से समझाया जाता है सूरज को दीपक दिखलाया जाता है । झूठ को सच साबित किया जाता है काले को सफ़ेद करने को सबको आंखें बंद रखने को आदेश देकर इस तरह चूना लगाया जाता है कि दुनिया को सही मार्ग से भटकाया जाता है । नियम कानून को दरकिनार कर अपने लिए रास्ता बनाने को पेड़ों को कटवा कर पर्यावरण संरक्षण को ठेंगा दिखाया जा रहा है , बाकी दुनिया को कुछ अलग सबक पढ़ाया और समझाया जा रहा है । कठपुलियों को उंगलियों पर नचाने का हुनर जानते हैं सत्ता का नंगा नाच खुलेआम खेल कर पर्दों से छिपाया जा रहा है । रोज़ हैरानी होती है कुछ लोग आपस में चर्चा करते हैं ज़माने भर की बातें बताते हैं अवगुण सभी के उनकी आंखों को नज़र आते हैं , मगर अपने आचरण पर कभी ध्यान ही नहीं देते खुद उसी तरह से व्यहवार करने को ज़रूरी समझते हैं ये फ़रमाते हैं ।
सच और झूठ की लड़ाई में ( हास्य- कविता )
डॉ लोक सेतिया
शिखर पर खड़ा हुआ है झूठ सच पड़ा हुआ खाई में
इंसाफ़ क़त्ल होता रहता सच और झूठ की लड़ाई में
सियासत की अर्थी भी निकलेगी मगर बरात बन कर
जनता की डोली का दुःख दर्द दब जाएगा शहनाई में
शासकों को क्या खबर क्या क्या होने लगा समाज में
जंग लाज़मी है चुनावी खेल में , हर भाई और भाई में
आत्मा ज़मीर आदर्श और ईमानदारी से फ़र्ज़ निभाना
कोई कबाड़ी खरीदता नहीं ये सब सामान दो पाई में
जिनको इतिहास लिखना आधुनिक समय का यहां
भर लिया इंसानी खून उन्होंने कलम की स्याही में
राजनेता अधिकारी धनवान लोग शोहरत जिनकी है
खोटे साबित हुए सब कसौटी पर हर बार कठिनाई में
सबका भला नहीं सिर्फ खुद अपने लिए जीना मरना
खूब मुनाफ़ा अब बाजार में अच्छों की झूठी बुराई में
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