दिसंबर 15, 2025

POST : 2045 सतसंग की चर्चा में चर्चा ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

       सतसंग की चर्चा में चर्चा   ( हास - परिहास  ) डॉ लोक सेतिया  

सभा में प्रवचन किया जा रहा है आयोजक कोई भी हो सकता है वास्तव में उसकी हैसियत प्रयोजक जैसी होती है । उपदेशक दुनिया भर को खराब बता रहे हैं बुरे लोगों को अच्छाई का सबक पढ़ा रहे हैं सुनने वाले दिल ही दिल में पछता रहे हैं वही पुरानी बातें सुनते हुए उकता रहे हैं । मकसद कुछ और था सतसंग में भक्ति पर चर्चा करनी थी उसको भुला कर जाने क्या क्या समझा रहे हैं , किसी फ़िल्मी गीत ग़ज़ल को भजन है कहकर गा कर श्रोताओं को लुभा रहे हैं । खुद अपना शुल्क लिया हुआ है सभी को माया जाल से बचने की राह दिखाने को प्रयास कर रहे हैं अपनी गागर में सागर तक भर रहे हैं । कभी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए उपदेशक खुद यही हमेशा करते हैं । अच्छे लोग हैं जिन्होंने उनको बुलाया है उनके नाम से कितनी पहचान क्या क्या कितना महान है विस्तार से बताते हैं बस वही देवतुल्य हैं अन्य इंसान भी नहीं लगते हैं ऐसे शिखर पर बिठाते हैं सभी लोग अपनी तुलना समझ शर्माते हैं । सभागार से बाहर बैठी कुछ महिलाएं अपना समय बिताने को मेलजोल बढ़ाती हैं , जो उनकी परिचित उपस्थित नहीं उनकी असलियत सभी को बताती हैं । बड़ी झूठी है जाने खुद को क्या समझती हैं चार पैसे हैं बस तभी इतराती हैं , जलती हैं हर किसी को खुद से नीचा बताती हैं सतसंग नहीं सुनने आती पार्टियां करती झूमती गाती हैं । सभी को मालूम है दोनों कितनी करीब हैं रोज़ आपस में घंटों फोन पर बतियाती हैं , किस किस की क्या ख़बर है विषय पर दुनिया कितनी ख़राब है समझती समझाती हैं ।    
 
इक चतुर नार बड़ी होशियार सभी परिजनों को अपनी उंगलियों पर नचाती है नाच न जाने आंगन टेढ़ा बताती हैं । सभी को हर बात अपने रंग ढंग से सुनाती समझाती है हर किसी को नानी याद आती है , अपनी बात पर सभी से हामी भरवाती है कोई नहीं समझता तो उसको नादान कह कर मनवाती है । उनको किसी की किसी द्वारा तारीफ़ बिल्कुल नहीं सुहाती है ऐसे में जिसकी तारीफ़ की गई उसकी जन्म जन्म की कुंडली दिखाती है ।महिलामंडल की अध्यक्ष है सभी को आईना दिखाती है खुद को विश्वसुंदरी से भी बढ़कर हसीन बताती है । ज़िंदगी ऐसी महिला बड़ी शान से बिताती है चांदनी रात सामने उस के मैली नज़र आती है । कौन कौन है संत महात्मा सभी को अपना अध्यात्म गुरूजी बताती है हर महीने किसी को अपने आवास पर आमत्रित करती है शहर भर को अपना करिश्मा दिखलाती है । हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा ।  अल्लामा इक़बाल का शेर है , मुझको समझने वाला पारखी कद्रदान नहीं मिला अफ़सोस जताती है ।   
 
 
 
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