वतन के घोटालों पर इक चौपाई लिखो ( हास्य-व्यंग्य कविता )
डॉ लोक सेतिया
वतन के घोटालों पर इक चौपाई लिखोआए पढ़ाने तुमको नई पढ़ाई लिखो।
जो सुनी नहीं कभी हो , वही सुनाई लिखो
कहानी पुरानी मगर , नई बनाई लिखो।
क़त्ल शराफ़त का हुआ , लिखो बधाई लिखो
निकले जब कभी अर्थी , उसे विदाई लिखो।
सच लिखे जब भी कोई , कलम घिसाई लिखो
मोल विरोध करने का , बस दो पाई लिखो।
बदलो शब्द रिश्वत का , बढ़ी कमाई लिखो
पाक करेगा दुश्मनी , उसको भाई लिखो।
देखो गंदगी फैली , उसे सफाई लिखो
नहीं लगी दहलीज पर , कोई काई लिखो।
पकड़ लो पांव उसी के , यही भलाई लिखो
जिसे बनाया था खुदा , नहीं कसाई लिखो।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब👍
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