16 सिसकियां ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
वो सुनता हैहमेशा
सभी की फ़रियाद
नहीं लौटा कभी कोई
दर से उसके खाली हाथ।
शोर बहुत था
उसकी बंदगी करने वालों का वहां
तभी शायद
सुन पाया नहीं
मेरी सिसकियों की
आवाज़ को आज खुदा।
मैं हिंदी साहित्य का इक छात्र हूं , लिखना मेरा जुनून है , व्यंग्य , ग़ज़ल , कविता , कहानी , देश और समाज की दशा पर आलेख , करीब चालीस साल से लिख रहा हूं , अधिकतर ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएं देश भर में अख़बार , पत्रिका में छप चुकी हैं , सभी अधिकार डॉ लोक सेतिया के , बिना अनुमति अन्यत्र प्रकाशित या उपयोग नहीं करें !