अगस्त 10, 2012

शिकवा तकदीर का करें कैसे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

शिकवा तकदीर का करें कैसे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

शिकवा तकदीर का करें कैसे
हो खफा मौत तो मरें कैसे।

बागबां ही अगर उन्हें मसले
फूल फिर आरज़ू करें कैसे।

ज़ख्म दे कर हमें वो भूल गये
ज़ख्म दिल के ये अब भरें कैसे।

हमको खुद पर ही जब यकीन नहीं
फिर यकीं गैर का करें कैसे।

हो के मज़बूर  ज़ुल्म सहते हैं
बेजुबां ज़िक्र भी करें कैसे।
 
भूल जायें तुम्हें कहो क्यों कर
खुद से खुद को जुदा करें कैसे।

रहनुमा ही जो हमको भटकाए
सूए - मंजिल कदम धरें कैसे। 

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