अगस्त 22, 2012

नफरत के बदले प्यार दिया है हमने ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       नफरत के बदले प्यार दिया है हमने ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

नफरत के बदले प्यार दिया है हमने
शायद ये कोई जुर्म किया है हमने।

मरना भी चाहा , मर सके न हम लेकिन
लम्हा लम्हा घुट घुट के जिया है हमने।

दिल में उठती है टीस सी इक रह रह कर
नाम उसका जो भूले से लिया है हमने।

तू हमसे ज़िंदगी ,क्यों है बता रूठी सी
ऐसा भी क्या अपराध किया है हमने।

हमको कातिल कहने वाले , ऐ नादां
तुझ पर आया हर ज़ख्म सिया है हमने।

उसने अमृत या ज़हर दिया है हमको
जाने क्या यारो , आज पिया है हमने। 
 
साकी बन कर "तनहा" भर दो पैमाना
किस्मत से ख़ाली जाम लिया है हमने।   

आप मेरे यूट्यूब चैनल पर भी वीडियो देख सुन सकते हैं। 



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