अगस्त 07, 2012

ग़म से दामन बचाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ग़म से दामन बचाना छोड़ दिया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ग़म से दामन बचाना छोड़ दिया
हमने आंसू बहाना छोड़ दिया।

अब बहारो खिज़ा से क्या डरना
हमने अब हर बहाना छोड़ दिया।

जब निभाना हुआ नामुमकिन तब
रूठ जाना ,  मनाना छोड़ दिया।

हो गये हैं जो कब से बेगाने
उनको अपना बनाना छोड़ दिया।

कब कहाँ किसने कैसे ज़ख्म दिये
हर किसी को बताना छोड़ दिया।

उनको कोई ये जा के बतलाये
हमने रोना रुलाना छोड़ दिया।

मिल गया अब हमारे दिल को सुकून
जब से दिल को लगाना छोड़ दिया।

ख्याल आया हमारे दिल में यही
हमने क्यों मुस्कुराना छोड़ दिया।

हमने फुरकत में "तनहा" शामो-सहर
ग़म के नगमें सुनाना छोड़ दिया।  
 

 

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