अगस्त 09, 2012

फैसले तब सही नहीं होते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फैसले तब सही नहीं होते ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फैसले तब सही नहीं होते
बेखता जब बरी नहीं होते।

जो नज़र आते हैं सबूत हमें
दर हकीकत वही नहीं होते।

गुज़रे जिन मंज़रों से हम अक्सर
सबके उन जैसे ही नहीं होते।

क्या किया और क्यों किया हमने
क्या गलत हम कभी नहीं होते।

हमको कोई नहीं है ग़म  इसका
कह के सच हम दुखी नहीं होते।

जो न इंसाफ दे सकें हमको
पंच वो पंच ही नहीं होते।

सोचना जब कभी लिखो " तनहा "
फैसले आखिरी नहीं होते।

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