अगस्त 27, 2012

हादिसों की अब तो आदत हो गई है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       हादिसों की अब तो आदत हो गई है ( ग़ज़ल ) 

                     डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हादिसों की अब तो आदत हो गई है
ग़म से कुछ कुछ हमको राहत हो गई है ।

बस खबर ही आपकी पहचान है अब
आपकी कैसी ये शोहरत हो गई है ।

किस तरह बाज़ार सारा हम खरीदें
उनको तो हर शै की चाहत हो गई है ।

थे मुहब्बत करने वालों के जो दुश्मन
आज उनको भी मुहब्बत हो गई है ।

भूल जाते हैं सभी कसमें वफ़ा की
बेवफाई अब तो आदत हो गई है ।

लोग अपने आप से अनजान "तनहा"
आजकल कुछ ऐसी हालत हो गई है । 
 

 

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