सच छुपाने लगा है ( कविता / नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
आईना ही हक़ीक़तको छुपाने लगा है
दिन को भी अंधियारा छाने लगा है ।
दामन अपना वो अब छुड़ाने लगा है
कहानी पुरानी फिर सुनाने लगा है ।
चोर भी कितना शोर मचाने लगा है
पहाड़ तले कोई ऊंठ आने लगा है ।
तिलिस्म समझ सबको आने लगा है
रहनुमा ही आजकल घबराने लगा है ।
कोई तिनका छुपा सच बताने लगा है
हर इक शख़्स ही दाढ़ी खुजाने लगा है ।
दोस्त खंज़र छुपा मिलने आने लगा है
क्या खूब दोस्ती मुझसे निभाने लगा है ।
उस गली गुज़रते सर को झुकाने लगा है
चुपचाप मिलने किसे आने जाने लगा है ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब सर
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