सितंबर 19, 2025

POST : 2023 सच छुपाने लगा है ( कविता / नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

       सच छुपाने लगा है ( कविता / नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

 
आईना ही हक़ीक़तको छुपाने लगा है 
दिन को भी अंधियारा छाने लगा है ।
 
दामन अपना वो अब छुड़ाने लगा है 
कहानी पुरानी फिर सुनाने लगा है ।   
 
चोर भी कितना शोर मचाने लगा है  
पहाड़ तले कोई  ऊंठ आने लगा है । 
 
तिलिस्म समझ सबको आने लगा है 
रहनुमा ही आजकल  घबराने लगा है ।
 
कोई तिनका छुपा सच बताने लगा है 
हर इक शख़्स ही दाढ़ी खुजाने लगा है ।
 
दोस्त खंज़र छुपा मिलने आने लगा है 
क्या खूब दोस्ती मुझसे निभाने लगा है ।  
 
उस गली गुज़रते सर को झुकाने लगा है
चुपचाप मिलने किसे आने जाने लगा है ।   
 

( 28 फरवरी 2003 पुरानी डायरी से ) 

 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत खूब सर