झूठी सुंदरता ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
खूबसूरत बदनझील सी गहरी आँखें
मरमरी से होंट
उन्नत उरोज
नागिन से काले बाल
मदमस्त अदाएं
उस पर सोलह श्रृंगार ।
सभी को
कर रहे थे दीवाना
लग रहा था धरा पर जैसे
उतर आई है अप्सरा कोई ।
तभी सुनाई दिया
उसका कर्कश स्वर
नफरत भरे उसके बोल
और लगने लगी
बेहद बदसूरत वो ।
था सब कुछ उसके पास
मगर नहीं था
कुछ भी उसके पास ।
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