मुझ बिन ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
कब होता है किसी केहोने का एहसास
समझ आता है
न होने का एहसास ।
जब नहीं होता है कोई पास
लगता है तब
कि था कितना करीब
जब मिला करते थे रोज़
होती न थी कभी बातचीत भी
कहते हैं अब मिले हो तुम
कितनी मुद्दत के बाद ।
कल पूछा था उसने
क्या छोड़ दिया लिखना
बीत गये बहुत दिन
पढ़े हुए कहानी कोई ।
ढूंढते रहे थे उस दिन
मुशायरे में तुम्हें
सुन लेते कोई ग़ज़ल
फिर तुमसे नई पुरानी ।
लिखता रहा जब तक
नहीं कहा था कभी उसने
उसे लगता है अच्छा
मुझे पढ़ना
सुनाया करता था जब मैं
सुनना चाहता था कहां कोई ।
न होना मेरा लग रहा है
बेहतर मेरे होने से
आज कोई देखता ही नहीं मुझे
मेरे बाद होंगी शायद बातें मेरी
कोई किसी दिन कहेगा किसी से
कभी होता था यहां
मुझ सा भी कोई इंसान ।
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