अक्तूबर 12, 2012

POST : 169 नेपथ्य ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

        नेपथ्य ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

किसी लेखक ने
भूख से तड़पते हुए
दरिद्रता भरे
जीवन पर लिखी थी
जो कहानी ।

तुम कर रहे हो
अभिनय
उस कहानी के
नायक की भूमिका का ।

जो दर्द भरे बोल
निकले थे
एक खाली पेट से
बोल रहे हो तुम
उन बोलों को
भरपेट मनपसंद भोजन खा कर ।

और चाहते हो
करना कल्पना उस नायक के ,
दर्द के एहसास की ।

चाहे कर लो
कितना भी जतन 
ला नहीं पाओगे वो आंसू
जो स्वता ही निकल आते हैं ,
हर गरीब के बेबसी में ।

नहीं मिल सकते कहीं से
बिकते नहीं हैं
दुनिया के बाज़ार में ।

तुम बेच सकते हो बार बार
झूठे आंसू दिखावे के
है कमाल का अभिनय तुम्हारा
महान कलाकार हो तुम ।

आवाज़ तुम्हारी रुलाती है
भाती है दर्शकों को
मिल जायेंगी तुम्हें
तालियाँ दर्शकों की
और ढेर सारी दौलत भी ।

मगर
कहानी का लेखक
कहानी के नायक की तरह
जीता रहेगा गरीबी का
दुःख भरा जीवन हमेशा ।

उसकी कहानी से हो नहीं पायेगा 
न्याय कभी भी । 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Wahh... अदाकार रीयल लाइफ के किरदार की तड़प महसूस नही कर सकता👍