हम दोनों की सोच ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
मेरे दिल मेंनहीं रहती तुम
तुम्हारा एहसास
रहता है
मेरे मन में
मस्तिष्क में ।
मैं चाहता नहीं तुम्हें
तुम्हारे
रंग रूप के कारण
मुझे तो भाती है
तुम्हारी वो सोच
मिलती है
जो सोच से मेरी ।
मुझे रहना है
बन कर वही सोच
तुम्हारे दिमाग में
दिल में तुम्हारे
नहीं रहना है मुझको ।
होता नहीं उसमें
प्यार का कोई एहसास
मुहब्बत का हो
या फिर नफरत का
दर्द का या कि ख़ुशी का
सब होता है एहसास
दिमाग में हमारे
धड़कता है दिल भी
जब आता है कोई
एहसास मन मस्तिष्क में ।
आधुनिक युग का प्रेमी मैं
जीता हूं यथार्थ में
रहता है दिल में
केवल लाल रंग का खून
जो नहीं प्यार जैसा रंग
दिल में रहने की
बात है वो कल्पना
जिसे मानते रहे
सच अब तक सभी प्रेमी ।
प्यार हमारा
रिश्तों का कोई
अटूट बंधन नहीं
लगने लगे जो
बाद में
एक कैद दोनों को ।
पास रहें चाहे दूर
हम करते रहेंगे
प्यार इक दूजे को
सोच कर समझ कर
जान कर
समझती हो मुझे तुम
तुम्हें जानता हूं मैं
मिलते हैं दोनों के विचार
करते हैं एक दूसरे का
हम सम्मान
हमारे बीच नहीं है
कोई दीवार
न ही हम बंधे हैं
किसी अनचाहे बंधन में
करते रहे करते हैं
करेंगे हमेशा ही
हम आपस में सच्चा प्यार ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें