1 पूंजी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
सफलता की बता कर बातेंबांटनी चाही खुशियां
दोस्तों के संग ।
प्रतिद्वंदी बन गये
दोस्त सब
लगे करने ईर्ष्या मुझ से ।
मिले जितने भी दुःख दर्द
दोस्तों से,सभी अपनों से
दुनिया वालों से छुपा कर
रखे अपने सीने में ।
दर्द की वो सारी दौलत
है बाकी मेरे पास
नहीं समाप्त होगी
जो जीवन प्रयन्त ।
2 शोर ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
वो सुनता हैहमेशा सभी की फ़रियाद
नहीं लौटा कभी कोई
दर से उसके खाली हाथ ।
शोर बड़ा था
उसकी बंदगी करने वालों का
शायद तभी
नहीं सुन पाया
मेरी सिसकियों की
आवाज़ को आज खुदा ।
3 फुर्सत ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
मुझे पता चलादुखों का पर्वत टूटा
तुम्हारे तन मन पर ।
निभानी तो है औपचारिकता
सांत्वना व्यक्त करने की
मगर करूं क्या व्यस्त हूं
अपनी दुनिया में मस्त हूं ।
फुर्सत नहीं है
ज़रा भी अभी
आऊंगा तुम्हारे पास
मैं दिखावे के आंसू बहाने
मिलेगी जब कभी फुर्सत मुझे ।
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