मतभेद ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
आज स्पष्टहो गई तस्वीर
जब मेरे विचारों की
ताज़ी हवा से
छट गई सारी धुंध
मिट गई हर दुविधा
हो गया अंतर्द्वंद का अंत।
जान लिया
कि जाते हैं बदल
सही और गलत के
सारे मापदंड अब दुनिया में।
मगर मुझे चलना है
उसी राह पर
जिसे सही मानता हूं मैं
लोग चलते रहें
उन राहों पर
सही मानते हों वो जिन्हें।
काश जान लें सभी
विचारों के मतभेद के
इस अर्थ को और हो जाए अंत
टकराव का दुनिया वालों का
हर किसी से।
मतभेद
हो सकता है सभी का
औरों से ही नहीं
कभी कभी
खुद अपने आप से भी।
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