अक्तूबर 03, 2012

POST : 153 आशियाँ ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

आशियां ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

अपना इक आशियां बनाने में
अपनी सारी उम्र लगा दी थी ।

और सारे जहां से दूर कहीं
एक दुनिया नई बसा ली थी ।

फूल कलियां चांद और तारे
इन सभी से नज़र चुरा ली थी ।

खूबसूरत सा घर बनाया था
प्यार से खुद उसे सजाया था ।

आह ! मगर बदनसीबी अपनी
खुद ही अपना जहां लुटा बैठे ।

इतनी ख़ुशी कि जश्न मनाने में
हम आशियां को ही जला बैठे । 
 

 

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