आशियां ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
अपना इक आशियां बनाने मेंअपनी सारी उम्र लगा दी थी।
और सारे जहां से दूर कहीं
एक दुनिया नई बसा ली थी।
फूल कलियां चांद और तारे
इन सभी से नज़र चुरा ली थी।
खूबसूरत सा घर बनाया था
प्यार से खुद उसे सजाया था।
आह ! मगर बदनसीबी अपनी
खुद ही अपना जहां लुटा बैठे।
इतनी ख़ुशी कि जश्न मनाने में
हम आशियां को ही जला बैठे।
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