मैं नहीं था ऐसा कभी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
आज लिख रहा हैरंगबिरंगे फूलों से
रौशनी की किरणों से
हमारी कहानी कोई।
उसे क्या मालूम
पाए हैं हमने तो कांटे
जीवन भर।
छाया रहा
हमारी ज़िंदगी पर
सदा इक घना अंधेरा है
पल पल जीवन का
गुज़रा है इस तरह
सर्द रातें खुले गगन में
काटे कोई जिस तरह।
कभी किया नहीं
हमने ज़िक्र तक किसी से
अपने दुःख दर्द
अपनी परेशानियों का।
हर सफलता हर ख़ुशी
रही बहुत दूर हम से
मगर दुनिया वालेन कहते रहे
हमें मुक्कदर का सिकंदर।
बना रहा हमारा चित्र
है चित्रकार जो मिला ही नहीं
कभी हमें जीते जी।
ये मेरी जीवन कथा ये चित्र
दोनों हैं किसी की
सुंदर कल्पनाएं
नहीं है इनमें कोई सच्चाई।
हां देखा हो शायद
ऐसा सपना कभी मैंने
किसी दिन अपना दिल
बहलाने को।
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