बना लो सभी के दिलों को ठिकाना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बना लो सभी के दिलों को ठिकानातुम्हें याद करता रहेगा ज़माना।
कभी काम ऐसा नहीं दोस्त करते
जिसे खुद बनाया उसी को मिटाना।
बहुत दूर मंज़िल ,हैं राहें भी मुश्किल
न रुकना कभी तुम तुम्हें चलते जाना।
इबादत तो कोई तिजारत नहीं है
सभी को पता है न कोई भी माना।
हमें कल था आना ,नहीं आ सके पर
यही हर किसी से सुना है बहाना।
अभी साथ तेरा सभी लोग देते
न कोई भी आए हमें तब बुलाना।
वहीं जाल होगा शिकारी किसी का
नज़र आ रहा है जहां पर भी दाना।
बड़ी रौनकें कल यहां पर लगी थी
हुआ आज वीरान क्यों कर बताना।
रहा जगता रात भर आज "तनहा"
अभी सो रहा है न उसको जगाना।
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