गर्दिश में मुझे यूं छोड़ के जाने वाले ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
गर्दिश में मुझे यूं छोड़ के जाने वालेले ,छोड़ गए तुझको भी ज़माने वाले ।
मुझको भी आया अब तो आंसू पीना
तेरा अहसां है मुझको रुलाने वाले ।
होने वाले वो कब हैं किसी के यारो
बाज़ार मुहब्बत का ये सजाने वाले ।
हो कर बेज़ार ये आखिर क्यों रोते हैं
खुद कर के सितम यूं हमको सताने वाले ।
यूं तो रह जाते न हम सब "तनहा"
जो न रूठे होते वो हमको मनाने वाले ।
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