क्या ज़माने ने की ख़ता मौला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
क्या ज़माने ने की खता मौलामिल रही सब को क्यों सज़ा मौला।
क्या हुआ खुशिओं से भरा दामन
सब की झोली में कुछ गिरा मौला।
हाल दुनिया का हो गया कैसा
खुद कभी आ कर देखता मौला।
दर्द इतने सबको दिए कैसे
दर्द मिटने की दे दवा मौला।
लोग जीने से आ चुके आजिज़
कौन जाने है क्या हुआ मौला।
किसलिये दुनिया को बनाया था
बैठ कर इक दिन सोचता मौला।
ख़त्म हो जाएं नफरतें सारी
कह रहा "तनहा" कर दिखा मौला।
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