ख़ुदकुशी न करने की कसम निभाई है ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ख़ुदकुशी न करने की कसम निभाई हैज़िंदगी हमें जिस मोड़ पर भी लाई है।
झूमकर हमारी मौत पर सभी नाचें
आरज़ू सभी को आखिरी बताई है।
किस तरह जिया है, किस तरह मरा कोई
ग़म नहीं किसी को रस्म बस निभाई है।
कब तलक सहें हम ज़ुल्म इन खुदाओं के
इंतिहा हुई अब , ए खुदा दुहाई है।
है बहुत अंधेरी शाम आज की लेकिन
हो रही सुबह पैगाम ये भी लाई है।
है गुनाह क्यों दुनिया में प्यार करना भी
तूं बता ज़माने क्यों नज़र चुराई है।
चार दिन को आये सब यहां मुसाफिर हैं
पर नहीं किसी ने राह तक दिखाई है।
अब नहीं मिलेंगे इंतज़ार मत करना
कह गया है कोई , ज़िंदगी पराई है।
छोड़ उस जहां को आ गये यहां "तनहा"
क्या हसीं नज़ारा ,जब हुई रसाई है।
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