मरने से डर रहे हो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
मरने से डर रहे होक्यों रोज़ मर रहे हो।
अपने ही हाथों क्यों तुम
काट अपना सर रहे हो।
क्यों कैद में किसी की
खुद को ही धर रहे हो।
किस बहरे शहर से तुम
फ़रियाद कर रहे हो।
कातिल से ले के खुद ही
विषपान कर रहे हो।
पत्थर के आगे दिल क्यों
लेकर गुज़र रहे हो।
1 टिप्पणी:
Waahh waahh👌
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