हादिसे दिल पे आते रहे ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
हादिसे दिल पे आते रहेदास्तां हम सुनाते रहे।
बेगुनाही भी थी इक खता
हम सज़ा जिसकी पाते रहे।
मौत हमसे रही दूर ही
लाख हम ज़हर खाते रहे।
हमने सपने संजोए थे जो
ज़िंदगी भर रुलाते रहे।
तंग आकर करूं ख़ुदकुशी
लोग इतना सताते रहे।
दिल बहल जाये कुछ इसलिये
शायरी में लगाते रहे।
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