हां किया प्यार मैंने ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
किया तो होगातुमने भी कभी न कभी
किसी न किसी से प्यार ।
धड़कता होगा
तुम्हारा दिल भी
देख कर किसी को ।
मुमकिन है
कर दिया हो तुमने
इज़हार मोहब्बत का
अथवा हो सकता है
रख ली हो
दिल की बात दिल में
समाज के डर से
या इनकार के डर से ।
मगर मैं जानती हूं
ऐसा हुआ होगा
ज़रूर जीवन में एक बार
स्वाभाविक है ये
सभी को हो ही जाता है
एहसास प्यार का ।
आज जब मैंने कर लिया
प्यार का एहसास
और कर दिया परिणय निवेदन
करना चाहा स्वयं को समर्पित ।
उसे जिसे चाहा मेरे मन ने
तो क्यों मान लिया गया
एक अपराध उसे ।
क्यों दे दिया गया
मेरे प्यार की
पावन भावना को
चरित्र हीनता का नाम ।
क्या इसलिये
कि देना नहीं चाहता
पुरुष समाज नारी को कभी भी
अधिकार चुनने का ।
पहल करने का अधिकार नहीं है
औरत को
हर पुरुष चाहता है
नारी से मूक स्वीकृति
अथवा अधिक से अधिक
इनकार वह भी शायद
क्षमा याचना के साथ ।
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