लिखे खत तुम्हारे नाम दोस्त ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
लिखता रहा नाम तुम्हारेहर दिन मैं खत
अकेला था जब भी
और उदास था मेरा मन
जब नहीं था कोई
जो सुनता मेरी बात
मैं लिखता रहा
बेनाम खत तुम्हारे नाम।
जानता नहीं
नाम पता तुम्हारा
मालूम नहीं
रहते हो किस नगर की
किस गली में तुम दोस्त।
मगर सभी सुख दुःख अपने
खुशियां और परेशानियां
लिखता रहा नाम तुम्हारे
बेनाम खत तुम्हारे नाम।
सोचता हूं शायद तुम भी
करते हो ऐसा ही मेरी तरह
लिखते हो मेरे लिए खत
तुम भी यही सोच कर।
लिखता रहा सदा तुम्हीं को
तलाश भी करता रहा तुम्हें।
फिर आज दिल ने चाहा
तुमसे बात करना
और मैं लिख रहा हूं
फिर ये खत नाम तुम्हारे।
तलाश भी करता रहा तुम्हें।
फिर आज दिल ने चाहा
तुमसे बात करना
और मैं लिख रहा हूं
फिर ये खत नाम तुम्हारे।
मिलेंगे हम अवश्य
कभी न कभी तो जीवन में
और पहचान लेंगे
इक दूजे को।
तुम तब पढ़ लेना मेरे ये
सभी खत नाम तुम्हारे
और मुझे दे देना इनके
वो जवाब जो लिखते हो
तुम भी हर दिन सिर्फ मेरे लिये
मेरे दोस्त।
( इक दोस्त की तलाश मुझे हमेशा से रही है। मेरा लेखन उसी की खोज को लेकर है। )
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