जाग जाओ बहुत सो लिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
जाग जाओ बहुत सो लियेदिन चढ़ा ,आंख तो खोलिये।
रौशनी कब से है मुन्ताज़िर
खिड़कियां ज़ेहन की खोलिये।
बेगुनाही में खामोश क्यों
बोलिये और सच बोलिये।
राह में था अकेला कोई
बढ़ के साथ उसके हम हो लिये।
हम को कोई न ग़म था मगर
ग़म पे औरों के हम रो लिये।
खुद को धोखा न देना कभी
आप अपने से सच बोलिये।
ज़िंदगी का करो सामना
राज़ "तनहा" सभी खोलिये।
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