चल रहे हैं धूप में छाया करो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
चल रहे हैं धूप में छाया करोगेसुओं को हमपे लहराया करो।
जैसे सूरज को छिपाती है घटा
उस तरह आंचल का तुम साया करो।
और भी हो जाएंगे पत्ते हरे
प्यार की शबनम से नहलाया करो।
प्यास के मारों को तुम झरना बनो
यूं न दरिया बन के बह जाया करो।
तिनके चुन चुन कर बने हैं घौंसले
बिजलियो उनपर तरस खाया करो।
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