सभी कुछ था मगर पैसा नहीं था ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सभी कुछ था मगर पैसा नहीं थाकोई भी अब तो पहला-सा नहीं था।
गिला इसका नहीं बदला ज़माना
मगर वो शख्स तो ऐसा नहीं था।
खिला इक फूल तो बगिया में लेकिन
जो हमने चाहा था वैसा नहीं था।
न पूछो क्या हुआ भगवान जाने
मैं कैसा था कि मैं कैसा नहीं था।
जो देखा गौर से उस घर को मैंने
लगा मुझको वो घर जैसा नहीं था।
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