सितंबर 12, 2012

दर्द अपने हमें क्यों बताये नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दर्द अपने हमें क्यों बताये नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दर्द अपने हमें क्यों बताये  नहीं
दर्द दे दो हमें ,हम पराये  नहीं ।

आप महफ़िल में अपनी बुलाते कभी
आ तो जाते मगर , बिन बुलाये  नहीं ।

चारागर ने हमें आज ये कह दिया
किसलिए वक़्त पर आप आये नहीं ।

लौट कर आज हम फिर वहीं आ गये 
रास्ते भूल कर भी भुलाये  नहीं ।

खूबसूरत शहर आपका है मगर
शहर वालों के अंदाज़ भाये  नहीं ।

हमने देखे यहां शजर ऐसे कई
नज़र आते कहीं जिनके साये  नहीं ।

साथ "तनहा" के रहना है अब तो हमें
उनसे जाकर कहो दूर जाये  नहीं ।



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