हमें आज खुद से हुई तब मुहब्बत ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हमें आज खुद से हुई तब मुहब्बतकिसी दिलरुबा की मिली जब मुहब्बत ।
गये भूल जैसे सभी लोग जीना
कहो जा के उनसे करें सब मुहब्बत ।
नहीं मिल रहा है सभी ढूंढते हैं
मिलेगा खुदा जब बनी रब मुहब्बत ।
चले जो मिटाने वो खुद मिट गये थे
कोई लाख चाहे मिटी कब मुहब्बत ।
सिखाया है उनको यही बोलना बस
कहेंगे हमेशा मेरे लब मुहब्बत ।
नहीं नफरतों से मिलेगा कभी कुछ
उसे छोड़ कर तुम करो अब मुहब्बत ।
किसे चाहते हो किसे दिल दिया है
कहेगी किसी से किसी शब मुहब्बत ।
वही ज़िंदगी प्यार जिसमे भरा हो
है जीने का "तनहा" यही ढब मुहब्बत ।
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