सितंबर 17, 2012

मिलने को दुनिया में क्या न मिला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मिलने को दुनिया में क्या न मिला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मिलने को दुनिया में क्या न मिला
मझधार में नाखुदा न मिला।

सब को दिखाई थी राह मगर
मंज़िल का अपनी पता न मिला।

हमने बनाये थे घर तो कई
इक दिन हमें आसरा न मिला।

ढूंढा किताबों में हमने बहुत
जीने का पर फ़लसफ़ा न मिला।

चलता रहे साथ साथ मिरे
अब तक वही हमनवा न मिला।

मिल के रहें लोग सब जिस में
उस घर का "तनहा" पता न मिला। 

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