मिलने को दुनिया में क्या न मिला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
मिलने को दुनिया में क्या न मिलामझधार में नाखुदा न मिला ।
सब को दिखाई थी राह मगर
मंज़िल का अपनी पता न मिला ।
हमने बनाये थे घर तो कई
इक दिन हमें आसरा न मिला ।
ढूंढा किताबों में हमने बहुत
जीने का पर फ़लसफ़ा न मिला ।
चलता रहे साथ साथ मिरे
अब तक वही हमनवा न मिला ।
मिल के रहें लोग सब जिस में
उस घर का "तनहा" पता न मिला ।
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