सपने हमारे सच अगर होते नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सपने हमारे सच अगर होते नहींहम मुस्कुराते हैं कभी रोते नहीं ।
हैं तीरगी से प्यार करने लग गये
अब रात भर कुछ लोग हैं सोते नहीं ।
हो राह ग़म की या ख़ुशी की हो डगर
बस ज़िंदगी में नाखुदा होते नहीं ।
तुम मत समझ लेना उसे इक बागबां
जो फूल चुनते हैं मगर बोते नहीं ।
जीना यहीं है और मरना भी यहीं
पर ज़िंदगी में और समझौते नहीं ।
"तनहा" रहो आज़ाद उनकी कैद से
जैसे भी हो, अपनी खुदी खोते नहीं ।
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