जिन के ज़हनों में अंधेरा है बहुत ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
जिन के ज़हनों में अंधेरा है बहुतदूर उन्हें लगता सवेरा है बहुत।
एक बंजारा है वो , उसके लिये
मिल गया जो भी बसेरा है बहुत।
उसका कहने को भी कुछ होता नहीं
वो जो कहता है कि मेरा है बहुत।
जो बना फिरता मुहाफ़िज़ कौम का
जानते सब हैं , लुटेरा है बहुत।
राज़ "तनहा" जानते हैं लोग सब
नाम क्यों बदनाम तेरा है बहुत।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें