झूठ को सच करे हुए हैं लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
झूठ को सच करे हुए हैं लोगबेज़ुबां कुछ डरे हुए हैं लोग।
नज़र आते हैं चलते फिरते से
मन से लेकिन मरे हुए हैं लोग।
उनके चेहरे हसीन हैं लेकिन
ज़हर अंदर भरे हुए हैं लोग।
गोलियां दागते हैं सीनों पर
बैर सबसे करे हुए हैं लोग।
शिकवा उनको है क्यों ज़माने से
खुद ही बिक कर धरे हुए हैं लोग।
जितना उनके करीब जाते हैं
उतना हमसे परे हुए हैं लोग।
आज़माया उन्हें बहुत "तनहा"
पर न साबित खरे हुए हैं लोग।
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